प्रो. अख़्तरुल वासे
स्वर्ग समान कश्मीर घाटी से ऐसी भयानक खबरें आने लगी हैं कि चिनार के पेड़ पीले पड़ गए हैं. डल झील ठिठुरती मालूम हो रही है.श्रीनगर में एक फार्मेसी के मालिक जिनकी इकबाल पार्क के पास एक दुकान थी और जो श्रीनगर के प्रसिद्ध व्यक्ति थे.गैर-मुस्लिम होने के बावजूद मुसलमानों में बहुत लोकप्रिय थे.उनका कितना सम्मान था इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में, जब पंडित कश्मीर से देश के अन्य हिस्सों में पलायन कर रहे थे.
माखन लाल बिन्द्रो, जो एक पंडित और एक प्रसिद्ध केमिस्ट थे, ने श्रीनगर नहीं छोड़ा.इसी प्रकार गुरुवार, 7 अक्टूबर को एक महिला प्रधानाध्यापक सुपिन्दर कौर तथा एक विद्यालय शिक्षक दीपक चन्द्र की हत्या कर दी गयी.
यह कोई रहस्य नहीं है कि इस हिंसा के पीछे वह आतंकवादी हैं जो सीमा पार से सैन्य प्रशिक्षण, भौतिक छूट और अपने लिए बौद्धिक भोजन प्राप्त करते हैं.कश्मीर में हिंसा की इस लहर में केवल गैर-मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, यह तथ्य भी चिंताजनक है,क्योंकि चरमपंथी सांप्रदायिक घृणा पैदा करना चाहते हैं.
इनमें से एक गुप्त रहस्य यह भी है कि कश्मीर के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ. फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती, हद यह कि हुर्रियत कांफ्रेंस से जुड़े लोग भी घाटी छोड़कर चले गए पंडितों की सम्मानजनक और शांतिपूर्ण वापसी के पक्ष में हैं.
उनके प्रयास को विफल बनाया जाये और वह पंडित जो घाटी में वापसी चाहते हैं उन्हें भयभीत करके वापसी से रोक दिया जाये. इसके अतिरिक्त कश्मीर को पुनः एक पूर्ण राज्य बनाने की चौतरफा मांग को भी छिन्न-भिन्न किया जा सके.
एक खतरा और भी है, और वह यह है कि कश्मीर के साथ देश के बाकी हिस्सों में भी हिंदू-मुस्लिम घृणा तेज हो और मुसलमानों को सांप्रदायिक दंगों का सामना करना पड़े.यहां यह स्पष्ट होना चाहिए कि कश्मीर में अब तक जिन तीन गैर-मुसलमानों की हत्या हुई है, वे राजनीतिक लोग नहीं थे.
वह व्यापार और शिक्षा से जुड़े थे.अतः उनको प्राणघातक हिंसा का निशाना बनाने का क्या औचित्य हो सकता है? इसके अतिरिक्त, जैसा कि कश्मीर के पुलिस महानिदेशक दलबाग सिंह ने कहा है कि इसका उद्देश्य हिंदुओं और मुसलमानों के बीच घृणा और मतभेद को जन्म देना है.
जब हमारे सैनिकों ने चरमपंथियों की तलाश में छापा मारा, तो हमारे पांच बहादुर जवानों को शहीद कर दिया गया, जो एक बड़ी त्रासदी है.ऐसा प्रतीत होता है कि सीमा पार से नियंत्रित किए जा रहे सिरफिरों के पास कश्मीर में शांति और व्यवस्था, कश्मीरियों के लिए सुरक्षा और शांति को सहन ही नहीं कर सकते.
वह यह भूल जाते हैं कि उनके आतंकी आचरण की आड़ में इस्लाम किसी मानव के जान से खेलने की अनुमति नहीं देता.वह यह भी भूल जाते हैं कि उनके पाकिस्तानी आका जो कुछ भी उन्हें सिखायें और बतायें, परन्तु दुनिया की कठिन से कठिन समस्यायों का समाधान गोली से नहीं बोली से ही होता है.
इसलिए उन्हें बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए.हिंसा के का चयन सदैव वही लोग करते हैं जिनकी सोच कमजोर होती है और जो यह भूल जाते हैं कि यह वाद-विवाद और तर्क-वितर्क का समय नहीं बल्कि बातचीज का समय है.
जहां तक पाकिस्तान की बात है, वह तो अपने नागरिकों का ध्यान वास्तविक समस्याओं से हटाने के लिये कश्मीर को बहाने के रूप में प्रयोग कर रहा है.यह कैसी रोचक बात है कि पाकिस्तान सवा करोड़ कश्मीरियों की चिंता है परन्तु 20 करोड़ भारतीय मुसलमानों की चिन्ता नहीं हैं, जिनके खिलाफ वह द्वेष व घृणा का वातावरण बनाता रहता है.
यह पाकिस्तान के द्वारा जानबूझकर किया जाता है जिससे भारतीय मुसलमानों को दो राष्ट्र की विचारधारा को स्वीकार न करने के लिए दंडित किया जाता रहे जिससे कि भारतीय मुसलमानों के प्रति इस देश के बहुसंख्यक आक्रोशित होते रहें और घृणा की आग सुलगती रहे.
घाटी में जो कुछ हो रहा है वह शांति और सुरक्षा को नष्ट करने का पाकिस्तानी षड्यंत्र है.जहां तक प्रश्न हम भारतीयों का है, हम कश्मीर को कश्मीरियों के साथ हर प्रकार के भेदभाव के बिना भारत का अभिन्न अंग मानते हैं.
कश्मीर और कश्मीरी हमारे सिर का ताज हैं.निःसन्देह! कश्मीरियों की कुछ शिकायतें हो सकती हैं, लेकिन जैसा कि हमने ऊपर कहा है, इन सभी मुद्दों का समाधान बातचीत के द्वारा किया जा सकता है.भारत के साथ कश्मीरियों की दोस्ती को किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है.
विभाजन के बाद उन्होंने जिस प्रकार से कबायलियों की आड़ में पाकिस्तानी घुसपैठ का सामना किया, कश्मीर में अलगाववाद को कभी सहन नहीं किया, धार्मिक आधार पर अलगाव की अनुमति नहीं दी, इस बात को हर कोई स्पष्ट रूप से जानता है.
जिस प्रकार से कश्मीर में गैर-मुस्लिम भाइयों और बहनों को निशाना बनाया गया, उसके कारणों को हमने प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर दिया है.हमें खुशी है कि कश्मीर के मुसलमान इस जघन्य खेल को समझ गए हैं.इसीलिए अब वह घाटी में रहने वाले अपने कश्मीरी गैर-मुस्लिम भाइयों और बहनों को मस्जिदों से बुला रहे हैं.
उन्हें आश्वासन दिला रहे हैं कि वह परेशान ना हों, अब घाटी में बसने वालों की बहुसंख्यक मुस्लिम रक्षा करेंगे. उन्हें किसी से डरने और कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है.हम इस प्रयास और प्रयत्न के लिये कश्मीरी भाइयों-बहनों का दिल से स्वागत करते हैं और बधाई देते हैं और उनसे विनम्रतापूर्वक यह आग्रह करते हैं कि वह आतंकवाद को खत्म करने के लिए केवल सरकार पर निर्भर न रहें बल्कि स्वयं आगे आयें और उन क्रूर कट्टरपंथियों को स्वयं दंडित करें.अगर ऐसा होता है तो कश्मीर एक बार फिर जन्नत-नज़ीर बन जाएगा.
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं)