संगीत में गंगा-जमुनी तहजीब बहती है, उसमें हिंदू-मुस्लिम का भेद नहीं

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 20-06-2022
पंय हरिप्रसाद चौरसिया और उस्ताद जाकिर हुसैन
पंय हरिप्रसाद चौरसिया और उस्ताद जाकिर हुसैन

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

सोशल मीडिया के इस जमाने में सामुदायिक विभाजन काफी गहरा दिखने लगा है. जमीनी स्तर पर भले ही यह विभाजन न हो, लेकिन विभिन्न स्क्रीन्स (टीवी और मोबाइल) पर इसको गहरी खाई के रूप में दिखाया जाता है. ऐसे वक्त में सबसे बड़ी जरूरत है अपने देश की समृद्ध गंगा-जमुनी तहजीब को दोबारा सबको याद दिलाने की.

जब हम गंगा-जमुनी तहजीब की बात करते हैं तो इसमें सबसे बड़ा योगदान संगीत का है. हालांकि, कभी उर्दू को लेकर, कभी संस्कृत को लेकर समुदायों में भाषायी विभेद पैदा किया जा रहा है. कभी एक तबका चेतावनी देता है कि ‘संगीत-संध्या जैसे शरिया-विरोधी आयोजन मस्जिदों, ईदगाहों, मदरसों और क़ब्रिस्तानों से घिरे मैदानों में किए जाते हैं तो आने वाली पीढ़ियों पर अल्लाह का क़हर बरपेगा.’

इसमें मुस्लिमों को हिदायत दी गई कि वे न सिर्फ़ इस आयोजन का बहिष्कार करें, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने के लिए मनाएं.

दूसरी तरफ, कव्वालियों को हिंदू-विरोधी संगीत बताया जा रहा है.

जबकि सचाई यही है कि हिंदुस्तान की मिली-जुली संस्कृति में संगीत की एक समृद्ध विरासत है. हम भारतीय शास्त्रीय गायन  को हिंदुस्तानी और कर्नाटक शैली के रूप में जानते हैं न कि हिंदू या मुस्लिम संगीत के रूप में. संगीत तो वह धागा है जो दोनों समुदायों को जोड़का है.

गौहर जान अपने समय की सबसे बड़ी दरबारी गायिका मानी जाती हैं. और अगस्त, 1915 में ही उन्होंने एक होरी की रिकॉर्डिंग की, जिसमें पैगंबर साहब के मदीना में होली का त्योहार मनाने की बात कही गयी थी! गीत कुछ इस तरह था: ‘मेरे हजरत ने मदीना में मनायी होली.’

गौहर जान एक धर्मनिष्ठ मुस्लिम महिला थी और ऐसा गीत गाकर क्या उन्होंने ब्लासफेमी की थी? लेकिन उस वक्त ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं. क्योंकि ऐसा गीत ही भारत  की गंगा-जमुनी तहजीब की रवायत को आगे बढ़ाता हुआ नजर आता है.

एक और गीत है जिसको अपने जमाने के सबसे गायकों में शुमार बड़े गुलाम अली खान ने गाया है. वह भी एक भजन है, ‘हरि ओम तत्सत महामंत्र है, जपा कर, जपा कर.’

1952 में एक फिल्म रिलीज हुई जिसमें भारत भूषण थे. बैजू बावरा नाम की इस फिल्म में भी एक भजन था ‘मन तड़पत हरिदर्शन को आज.’

यह गीत भी भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का शानदार उदाहरण है. क्योंकि इस भजन के गीतकार थे शकील बदायुनी, संगीतकार थे नौशाद और पार्श्वगायन था मोहम्मद रफी का.

कव्वाली पर जिस तरह का विवाद हिंदूवादी संगठनों ने उठाया उन्हें भूलना नहीं चाहिए कि शंकर-शंभू नाम की कव्वाल जोड़ी ने शानदार कव्वालियां पेश की हैं.

अगर हम आज के दौर के मुस्लिम संगीतकारों की सूची बनाएंम तो कभी खत्म ही नहीं होगी. बॉलीवुड में नौशाद से लेकर एआर रहमान और मो. रफी से लेकर मो. अजीज और जावेद अली तक, सैकड़ों संगीतकार, गीतकार और गायक रहे हैं जिनके लिए प्राथमिकता संगीत की रही है. रहमान ने पिया गाजी अली और निजामुद्दीन औलिया पर जो शानदार संगीत रचा उतना ही कमाल का संगीत ओ पालनहारे या मेरे मनमोहना जैसे भजनो में भी दिया है.

ध्रुपद शैली के डागर खानदान, ख्याल गायकी के अधिकतर घराने मुस्लिम ही हैं. फ़ैयाज़ ख़ान, अब्दुल करीम ख़ान, अल्लादिया ख़ान, अलाउद्दीन ख़ान, विलायत ख़ान, बिस्लिमल्ला ख़ान, अमजद अली ख़ान, जाकिर हुसैन, अल्लारख्खा खां... सूची काफी लंबी है.