डॉ एपीजे अब्दुल कलाम क्यों मानते थे मुलायम सिंह को अपना गुरु ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 11-10-2022
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम क्यों मानते थे मुलायम सिंह को अपना गुरु ?
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम क्यों मानते थे मुलायम सिंह को अपना गुरु ?

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

मिसाइल मैन से मशहूर देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम,मुलायम सिंहयादव को अपना गुरु मानते थे. यूं तो मुलायम सियासत के माहिर खिलाड़ी रहे हैं, पर कलाम साहब के उन्हंे ‘उस्ताद’ मानने की दूसरी वजह थी. दरअसल, मुलायम सिंह यादव ने एपीजे अब्दुल कलाम को हिंदी सीखने मदद की थी.

स्वर्गीय कलाम के प्रेस सचिव रहे एस एम खान की पुस्तक द पीपल्स प्रेसिडेंट एपीजे अब्दुल कलाम में भी इसका जिक्र है. खान अपनी पुस्तक के बार में जहां भी चर्चा करते हैं, यह बताना नहीं भूलते कि मुलायम सिंह यादव ने बहुत हद तक कलाम साहब को हिंदी सिखाई थी, इसलिए वह उन्हें अपने अपना हिंदी शिक्षक मानते थे.
 
16 फरवरी 2004 को कलाम साहब मुलायम सिंह के पैतृक गांव इटावा के सैफई भी गए थे. इस दौरान कलाम साहब ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के गृह नगर सैफई स्टेडियम में जुटे 40,000 किसानों को संबोधित किया था. इस दौरान कलाम ने भारत के गांवों के महत्व के बारे में बात की थी. 
 
टाइम्स ऑफ इंडिया के 27 फरफरी 2017 की एक रिपोर्ट की मानें तो सैफई के मजमे में कलाम साहब ने स्वीकारा कि जो भी छोटी-छोटी हिंदी जानते हैं, 
वह मुलायम सिंह की बदौलत. उन्होंने इसके लिए मुलायम सिंह का धन्यवाद भी किया था. 
 
बताया कि मुलायम जब रक्षा मंत्री थे तब उनके बीच हिंदी पर चर्चा होती थी. उस समय कलाम साहब उनके वैज्ञानिक सलाहकार थे. खान की पुस्तक में कलाम साहब उत्तर प्रदेश को लेकर क्या राय रखते थे, इसका भी जिक्र है.
 
वैसे कलाम साहब अपनी एक पुस्तक में कानपुर में लोगों के गुटखाने पर नापसंदी का इजहार कर चुके हैं.खान कहते हैं कि कलाम साहब हिंदी और उर्दू के बहुत अच्छे जानकार नहीं थे.
 
जब भी हिंदी को लेकर कोई समस्या उत्पन्न होती थी, मुलायम सिंह से संपर्क करते थे. मई 2012 में लखनऊ में एक कॉन्क्लेव के दौरान कलाम ने कहा कि यू.पी
देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के उपाय सुझाए थे. इस दौरान 
 
उन्होंने एक सुझाव यूपी का स्किल मैप बनाने का भी दिया  था. कलाम साहब ने मुलायम सिंह यादव को भदोही के कालीन, मुरादाबाद के पीतल के बर्तन, फिरोजाबाद के के कांच के बने पदार्थ, मलिहाबाद के आम, मेरठ की कैंची, अलीगढ़ के ताले, खुर्जा की चीनी मिट्टी के बर्तन, कानपुर के चमरा कारोबार और लखनऊ के चिकनकारी कला, शिल्प और उत्पाद को वैश्विक बाजार में पहुंचाने के भी गुर दिए थे.
 
2002 में कार्यभार संभालने के बाद कलाम ने
लंबे समय से चली आ रही रस्मों में भारी सुधार किया था.