राकेश चौरासिया / नई दिल्ली
‘भारत का गणतंत्र’ यानि भारत देश का राष्ट्रीय ध्वज हर भारतीय का मान-सम्मान है. सन 1099 में राजा भोज के शासन के अवसान पश्चात, भारत में आक्रांताओं, मुगलों और अंग्रेजों के ऐतिहासिक उतार-चढ़ाव और दमन की कराहटभरी स्मृृतियां भारतीयों के मस्तिष्क में सुरक्षित हैं, लेकिन तिरंगे का दर्शन भारतीयों की सारी पीड़ा हर लेता है. तिरंगा भारतीयों में स्वशासन, सुराज और स्वराज का भाव उदीप्त करता है. इस तिरंगे की भी अपनी एक विकास गाथा है. कालक्रम में इसका कई बार परिष्करण और रूपांतरण हुआ.
किसी भी राष्ट्र की कल्पना उसके नेतृत्व, सीमांकन और ध्वज से होती है. भारत के वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में तीन रंग क्षैतिजाकार व क्रमानुसार केसरिया, श्वेत और हरित है. तीनों पट्टिकाएं समानुपाती हैं. मध्यमा श्वेत पट्टिका के बीच में सारनाथ मंदिर में स्थित सम्राट अशोक की लाट का ‘चक्र’ नील रेखांकन में शोभायमान है. लाट के मूल रूप में चार शेर हैं, जिनका मुख चतुर्दिश है और नीचे चक्र अंकित है. चक्र में 24 तलियां हैं. चक्र काल और विधि का द्योतक है. ध्वज की लंबाई तीन भाग और चौड़ाई दो भाग है.
जब निश्चित हो गया कि बरतानिया हुकूमत की चलाचली की बेला आ गई है और भारत का शासन 15 अगस्त 1947 को भारतीयों के हाथों में होगा, तो भारतीय ध्वज की संकल्पना के संदर्भ में नए सिरे से मंथन हुआ.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया, जिसे ‘ध्वज समिति’ के नाम से जाना गया. समिति के निर्णय के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को एक परिवर्तन के साथ राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाने की सहमति बनी कि चरखा के स्थान पर अशोक चक्र प्रतिष्ठित किया जाए.
इस ध्वज की डिजायन पिंगली वैंकैयानंद ने बनाई. इस परचम को अंततः भारतीय संविधान सभा की 22 जुलाई 1947 को संपन्न बैठक में स्वीकृत किया गया था.
वर्तमान तिरंगे की तुलना में भारतीय द्वारा अपनाया गया पहला राष्ट्रीय ध्वज पूर्णतः भिन्न था. इसमें लाल, पीले और हरे रंग की पट्टियां थीं. लाल पट्टी में सात कमल पुष्प निशान, पीली पट्टी में वंदे मातरम का अंकन और नीचे की हरी पट्टी में सूरज और चांद का चित्रण था. इसे कलकत्ता के पारसी बागान चौक में 7 अगस्त 1906 को फहराया गया था.
इसके बाद दूसरे ध्वज को पेरिस में 1907 में 46 साल की पारसी महिला स्वतंत्रता सैनानी मैडम भीकाजी कामा और कुछ अन्य निर्वासित क्रांतिकारी साथियों द्वारा फहराया गया. ये ध्वज उन्होंने जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी ‘इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस’ में भी फहराया था. इस कान्फ्रेंस में सभी देशों के ध्वजों के बीच भारत के लिए ब्रिटेन का झंडा लगना था, जिसका भीकाजी काम ने विरोध किया और भारतीय झंडा फहराया, जो फिर एक रिकॉर्ड बन गया. भीकाजी कामा ने अपने भाषण में कहा था कि दुनिया के कामरेडो, देख लो, यह है भारत का झंडा. इसे सलाम करो. इस ध्वज में पहले ध्वज की तुलना में यह अंतर था कि सबसे ऊपर की पट्टी में सप्तऋषि के द्योतक सात तारे अंकित थे.
फिर लोकमान्य तिलक और डॉ. एनी बेसेंट द्वारा 1917 में स्वराज आंदोलन के दौरान एक अन्य प्रकार का ध्वजारोहण किया गया, जिसमें पांच लाल और चार हरी पट्टियां थीं. बीच में सप्तऋषि स्वरूप सात तारे थे. ऊपरी-बाएं किनारे पर यूनियन जैक भी था. जबकि ऊपरी-दाएं कोने में सूर्य-चंद्र अंकित थे.
चौथे ध्वज को विजयवाड़ा में 1921 में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में आंध्र प्रदेश के एक युवक ने ध्वज प्रस्तुत किया, जिसमें हिंदू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करने वाले लाल और हरे रंग का प्रयोग हुआ था. गांधी जी के सुझाव पर इसमें यह परिवर्तन किया गया कि इसमें शांति और प्रगति के सूचक सफेद रंग को सबसे ऊपर जोड़ा गया. उसमें चरखा निशान भी दिया गया.
वर्ष 1931 में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार करने के लिए एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसके अनुसार ध्वज में पांचवां संशोधन हुआ. ऊपर केसरिया, मध्य में सफेद और नीचे हरी पट्टी दी गई. सफेद पट्टी में चरखा अंकित किया गया.
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने जिस तिरंगे को स्वीकार किया, वह पांचवें झंडे में कुछ बदलाव के साथ था. इसमें केवल चरखा के स्थान पर सम्राट अशोक के चक्र को अंकित किया गया है.
इसी तिरंगे का राष्ट्रीय पर्वों पर उत्तोलन किया जाता है. देश के गर्वित नौनिहाल इसी झंडे को हाथों में ले दौड़ लगाते ‘झंडा ऊचा रहे हमारा’ गाते हैं. इस ध्वज की परिणति के लिए आजादी के करोड़ों दीवानों ने अपने लहू से मां भारती का चंदन-वंदन किया और जिसके सम्मान में भारतीय सेना के 14 लाख जवानों सहित लाखों अन्य सरकारी और अर्द्धसरकारी सुरक्षाकर्मी जान हथेली पर लेकर राष्ट्र रक्षा रत हैं. हर भारतीय इसी तिरंगे के सम्मुख शीष झुका लेता है.
ध्वजारोहण के नियमः
- ध्वज संहिता 2002 की धारा-2 के अनुसार सभी निजी नागरिकों को अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है.
- किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्ट को राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचे स्थान पर नहीं लगाया जा सकता है.
- नियमानुसार इसे सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य ही फहराना चाहिए.
- ध्वज को आशयपूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए.
- इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दे या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है.
- इसे वाहनों के हुए ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता.
- तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता.