साकिब सलीम / नई दिल्ली
राजस्थान के उदयपुर में 28 जुलाई को बहुत बर्बर तरीके से इस्लाम के नाम पर दो कट्टरपंथियों ने एक दर्जी कन्हैया लाल की हत्या कर दी. उन्होंने उस व्यक्ति पर ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए उसका बेरहमी से गला रेत दिया. सोशल मीडिया पर आरोपियों ने खुद उनके द्वारा पोस्ट किए गए एक वीडियो में खुद को इस्लाम के रक्षकों के रूप में प्रतिष्ठित किया. भारत और अन्य जगहों पर इस्लाम के अनुयायियों ने इस कृत्य की स्पष्ट रूप से निंदा की है. आवाज-द वॉयस ने विभिन्न क्षेत्रों के कई पढ़े-लिखे मुसलमानों से संपर्क किया है और उनकी प्रतिक्रियाएं मांगी. इनमें इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं की ‘गलत व्याख्या’ किए जाने से हर कोई परेशान नजर आ रहा है.
प्रख्यात वैज्ञानिक पद्मश्री प्रो. सैयद एहतेशाम हसनैन ने कहा, ‘‘यह कृत्य पूरी तरह से इस्लाम के खिलाफ है. इसकी अधिकाधिक शब्दों में निंदा की जानी चाहिए.’’
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक रहमान अब्बास को लगता है कि इस्लाम की चरमपंथी व्याख्या को खारिज करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘उदयपुर की हत्या की घटना अमानवीय और बर्बर है. यह एक तरह से प्यार, भाईचारे और एकजुटता पर नफरत की जीत है. साथ ही यह उन कट्टरपंथी इस्लामवादियों की कहानी की जीत हो सकती है, जो मानते हैं और प्रचार करते हैं कि जो कोई भी ईशनिंदा करता है या पैगंबर का अपमान करेगा, उसे जीने का कोई अधिकार नहीं है, बिना किसी न्यायिक परीक्षण के हत्या कर दी जानी चाहिए. यह आख्यान इस्लाम की संकीर्ण व्याख्या का परिणाम है. सबसे पहले बिना किसी अगर-मगर के इसकी निंदा की जानी चाहिए. कोई भी सभ्य समाज इस चरमपंथी आख्यान के साथ आगे नहीं बढ़ सकता है.’’
डॉ. आदिल हुसैन, एक मानवविज्ञानी, जिन्होंने भारत में मुसलमानों के हाशिए पर जाने और सांप्रदायिक हिंसा पर काम किया है. वो सोचते हैं, ‘‘निन्दा के लिए मौत की भाषा प्रतिरोध की भाषा नहीं है. यह लगभग आतंकवाद है.’’
मत्स्य पालन विभाग, यूपी के उप निदेशक नूरुस सबूर रहमानी ने कहा, ‘‘किसी भी परिस्थिति में किसी भी धर्म या किसी भी समाज में निर्दोष हत्या को उचित नहीं ठहराया जा सकता है. इस घटना के समर्थन में कोई भी सभ्य इंसान कोई बहाना नहीं बना सकता था.’’
अंग्रेजी लेखिका, एनी जैदी के पास शब्दों की कमी पड़ गई और उन्होंने कहा, ‘यह भयावह है’, इससे अधिक टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
कम्युनिकेशन कैटलिस्ट के एडवरटाइजिंग गुरु सैयद अमजद अली ने कहा, ‘‘उदयपुर की घटना बेहद परेशान करने वाली है. और उन लोगों को दुर्लभतम से दुर्लभतम सजा दी जानी चाहिए. कोई भी धर्म इस बर्बर कृत्य की अनुमति नहीं देता है और हमारे जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में, स्पष्ट रूप से इसका कोई स्थान नहीं है. वे कुछ इस तरह की कल्पना कैसे कर सकते हैं, यह आपके दिमाग को हरा देता है. ऐसे भयानक कृत्यों के प्रति जीरो टॉलरेंस होनी चाहिए और इसलिए अदालतों को एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए.’’
कोलकाता स्थित सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता, सायरा शाह हलीम ने कहा, ‘‘घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और आतंकी कार्य है, इसकी मुसलमानों द्वारा व्यापक रूप से निंदा की गई है... इस तरह के बर्बर कृत्यों का सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है, ऐसे जघन्य अपराधों के अपराधियों को न्याय के दायरे में लाने की आवश्यकता है.’’
अलीगढ़ की एक स्वतंत्र लेखिका और पत्रकार हिना फातिमा खान का मानना है, ‘‘उदयपुर में एक व्यक्ति का सिर कलम करना तालिबानी कट्टरता का एक उदाहरण कहा जा सकता है.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘धार्मिक विचार, अभिव्यक्ति और विश्वास किसी की पहचान का हिस्सा हैं और संविधान हमें नागरिकों के रूप में इन अधिकारों की गारंटी देता है. लेकिन इसका मतलब कानून को हाथ में लेना नहीं है और न ही होना चाहिए. यह घटना कुछ भी समर्थन नहीं करती है. यह निंदनीय है और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए. साथ ही हमें एक-दूसरे की धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं का सम्मान करने के महत्व को दोहराना होगा. मेरा मानना है कि राजनीति और धर्म को अलग रखा जाना चाहिए.’’
दिल्ली के एक पत्रकार अर्श इकबाल ने कहा, ‘‘मैं उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल और दो बेटों के पिता की गोस मोहम्मद और रियाज द्वारा की की नृशंस हत्या की कड़ी निंदा करता हूं, क्योंकि किसी भी धर्म के किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी रूप में हिंसा अच्छी नहीं है और यह मानवता के खिलाफ शर्मनाक हरकत है. हमलावरों को कानून के मुताबिक सजा मिलनी चाहिए.’’
सीएफपीएस में एक शोध सहयोगी अमाना बेगम ने कहा, ‘‘एक मुसलमान के रूप में मुझे शर्म आती है कि एक कट्टरपंथी व्यक्ति ने इस्लाम की रक्षा के लिए एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या कर दी. यह मानवता, इस्लामी शिक्षा के खिलाफ है और मुसलमानों के बौद्धिक और राजनीतिक वर्ग को इस मुद्दे का समाधान करना चाहिए.’’
एएमयू के प्रो. नाजुरा उस्मानी (जूलॉजी) ने हत्या की निंदा करते हुए कहा, ‘‘हम अपने प्यारे नबी के लिए किसी भी अपमानजनक भाषा को बर्दाश्त नहीं कर सकते, लेकिन दूसरी तरफ हम उनके नक्शेकदम पर चलना पसंद करेंगे, जब वह खुद उस दौर में टारगेट थे. उन्होंने अपने विचार का समर्थन करने के लिए कुरान को आगे उद्धृत किया, ‘‘इस्लाम हत्या की बिल्कुल भी अनुमति नहीं देता है, बहस की जा सकती है, चर्चा की जा सकती है, लेकिन जो कोई भी इंसान को (किसी भी कारण से) मानव वध या पृथ्वी पर भ्रष्टाचार के बिना मारता है, वह ऐसा है, जैसे उसने सारी मानव जाति को मार डाला था ... (5ः32). पुण्य और ध्यान के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग करें और बुराई और आक्रामकता के उद्देश्य से एक दूसरे के साथ सहयोग न करें (5ः2).’’
दिल्ली स्थित न्यूरोबायोलॉजिस्ट डॉ. महिनो फातिमा का मानना है, ‘‘इस्लाम की ये संकीर्ण चरमपंथी व्याख्या धर्म की असली दुश्मन है. कट्टरता और अकारण हिंसा का इस्लाम में कोई स्थान नहीं है. पैगंबर लोगों को मारने के बजाय बातचीत के माध्यम से जीतने में विश्वास करते थे. यह हमारा कर्तव्य है कि हम पैगंबर की शिक्षाओं को लोकप्रिय बनाएं और अपने धर्म को चरमपंथी कट्टरपंथियों से बचाएं.’’
यहां जीवन के सभी क्षेत्रों के मुसलमानों ने अपनी राय व्यक्त की कि इस तरह की गैरकानूनी हिंसा का उनके धर्म में कोई स्थान नहीं है और उनके पैगंबर को शांति के दूत के रूप में पृथ्वी पर भेजा गया था. शांति का प्रचार करना हमारा कर्तव्य है, नफरत का प्रसार नहीं.