खुसरो फाउंडेशन की संगोष्ठी से उठी आवाज, हमें रहना है एक साथ

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-09-2022
खुसरो फाउंडेशन की संगोष्ठी से उठी आवाज, हमें रहना है एक साथ
खुसरो फाउंडेशन की संगोष्ठी से उठी आवाज, हमें रहना है एक साथ

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली

हर धर्म का आदर करना ही भारतीयता है.यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हजारों साल पहले हम जानते थे कि दूसरे धर्मों का सम्मान कैसे किया जाता है. विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ कैसे रहते थे.

 तथ्य यह है कि भारतीयता की भावना धर्म के बिना पूर्ण नहीं है, लेकिन आज स्थिति बदल गई है. वातावरण बदल गया है. लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह राजनीति का धर्म है. असली धर्म नहीं है.
 
यदि अतीत को वापस लाना है, तो हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को पांच बातें सिखानी होंगी. उन्हें उस जीवन का हिस्सा बनाना होगा, जिसमें सत्य, प्रेम, अहिंसा और आचार संहिता शामिल है.ये गुण हमें दुनिया के लिए एक उदाहरण में बदल देंगे. हमने धार्मिक सहिष्णुता खो दी है. यह छोटी बात नहीं है. इसेे वापस लाना आसान नहीं होगा.
 
ये निष्कर्ष राजधानी दिल्ली के लोधी रोड स्थित इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में खुसरो फाउंडेशन और आईआईसीसी द्वारा आयोजित मुसलमान-हिंदू धर्म और भारतीयता पर एक आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं के विचारों से निकला है. इसमें देश की कई प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया. 
 
इस अवसर पर खुसरो फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर अख्तर उल वासे ने अपने उद्घाटन भाषण में अतिथियों का स्वागत किया. कहा कि वर्तमान युग में, जो हमारे लिए चिंता का विषय है, भारत में विभिन्न संप्रदायों के बीच दूरी है. बेशक, विभिन्न धर्मों के बीच नफरत का माहौल परेशान कर रहा है, इसलिए हमने खुसरो फाउंडेशन की स्थापना की.
 
इसके तहत हम लोगों को सेमिनार, व्याख्यान और साहित्य के माध्यम से यह बताने की कोशिश करते हैं कि हम सभी गंगा-जमुनी संस्कृति के मानने वाले हैं. इसी में भारत का कल्याण निहित है.
 
प्रो. अख्तर उल वासे ने कहा कि समाज में बढ़ रही नफरत और दुश्मनी को खत्म करने का हमारा प्रयास है. यह किसी भी सूरत में सही नहीं है.प्रो. संजय द्विवेदी (महानिदेशक, भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली) ने उद्घाटन बैठक में भाग लेते हुए अपने भाषण में कहा कि देश की आजादी को 75 साल बीत चुके हैं, लेकिन आश्चर्य की बात है कि हम अभी भी कहते हैं कि ब्रिटिश हमें विभाजित कर गए.

हिंदुओं और मुसलमानों के आधार पर अंग्रेजों ने हमें लड़ने को मजबूर किया. हमें विभाजित किया. यह कहना कहा तक सही है? अंग्रेज हमें आपस में लड़वा रहे थे तो क्या हमारी बुद्धि कुंद हो गई थी ?
 
उन्होंने कहा कि इन हालातों के बावजूद भारत दुनिया में जिस स्थिति में खड़ा है, वह अपने आप में मिसाल है. हम एक नेता के तौर पर दुनिया के सामने खड़े हैं. अगर हम इसे समझ लें तो ये हालात अपने आप बदल सकते हैं.
 
उन्होंने आगे कहा कि देश प्रेम में शब्दों को लिखने वाले हजरत अमीर खुसरो ने भारत को स्वर्ग बताया.क्या भावनाएं, क्या प्यार और सम्मान था उनके शब्दों में. हम यह नहीं भूल सकते कि हजरत अमीर खुसरो हिंदी के पहले कवि थे.
 
उन्होंने कहा कि आज की स्थिति में हमारे बंटवारे के कारण बताने के लिए अनगिनत लोग हैं, लेकिन हमें एक होना होगा. बहुत कम लोग इसे समझा सकते हैं. सच कहूं तो एकता तो हर कोई चाहता है, लेकिन उसकी बात कोई नहीं करता.कोशिश तो होती है लेकिन जिंदा नहीं होती. कई लोग ऐसे हैं जो कलह और भ्रम पैदा करते हैं, जो मेहनत करते हैं वह बहुत मजबूत होते है.
 
उन्होंने कहा,मैं चाहता हूं कि खुसरो फाउंडेशन, के परचम के तहत शुरू की गई श्रृंखला और प्रयास को और अधिक तीव्रता दी जाए. बंद कमरों से सड़कों, स्कूलों, कॉलेजों और अन्य स्थानों पर अधिक जोर दिया जाए.
 
भारत में सभी लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. सभी जुड़ना चाहते हैं, लेकिन कुछ लोग जो मुट्ठी भर हैं, वे हमें एक के रूप में नहीं देखना चाहते, लेकिन हम उन्हें सफल नहीं होने देंगे.
 
अपने संबोधन में उन्होंने इतिहास के विभिन्न चरणों का उदाहरण दिया. कहा कि 1857 का युद्ध भारतीयों ने बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में लड़ा था, जो एक मुसलमान थे.
 
इसी तरह उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में निर्वासन में पहली स्वतंत्र भारत सरकार के अध्यक्ष राजा महेंद्र प्रताप थे और प्रधामंत्री बरकतउल्ला भोपाली थे. आंतरिक मंत्री ओबैदुल्ला सिंधी थे. भारत ऐसे ही बना है. यह निश्चित रूप से विभाजन से नहीं बना है. 
 
(आईपीएस) एडीजीपी, मिजोरम ने कहा कि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और ऐसे माहौल से बाहर आए जो मूल रूप से आत्मसात करने में विश्वास करता है. इसकी पहचान करता है. इसलिए हम सभी को हर स्थिति में एकजुट होना चाहिए.
 
राष्ट्रीय एकता, एकजुटता और भाईचारा ही हमारी ताकत है.अंत में खुसरो फाउंडेशन के निदेशक सिराजुद्दीन कुरैशी ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया.
 
इससे पहले, मुख्य भाषण प्रसिद्ध लेखक शमीम तारिक ने दिया. अपने भाषण में उन्होंने भारत में विभिन्न धर्मों पर प्रकाश डाला. कहा कि भारतीयता की भावना धर्म के बिना पूर्ण नहीं है, जिसके लिए हम अनगिनत उदाहरण दे सकते हैं. हमारे सामने उसके नमूने हैं
 
धार्मिक विचारधारा के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि मुसलमान जिस धर्म को मानते हैं, उसमें मानवता को दर्जा दिया गया है.मैं आपको एक बात और बताऊंगा कि इस्लाम दूसरे धर्मों के बारे में क्या कहता है.
 
धर्म में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपका विश्वास आपके साथ है और उनका विश्वास उनके साथ है. यानी विश्वास पर कोई आपत्ति नहीं है और कोई उंगली उठानी चाहिए. धर्म या आस्था पर कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता.
 
शमीम तारिक ने कहा कि मौलाना अखलाक हुसैन कासमी ने लिखा था कि ईश्वर ने दुनिया के कोने-कोने में पैगंबर भेजे हैं. अगर पैगंबर अलग-अलग देशों में आए तो ऐसा नहीं है कि वे अरबी ही बोलेंगे.
 
उन्होंने कहा कि देवबंद के अनुसार, कारी मुहम्मद को दारुल उलूम देवबंद के हजरत मौलाना मुहम्मद कासिम ने लिखा था कि भारत में हिन्दू राष्ट्र के धर्मगुरु श्री राम और कृष्ण जी को बुरे शब्दों में याद नहीं किया जाना चाहिए.
 
कार्यक्रम की पहली बैठक की अध्यक्षता करते हुए डॉ. जेएस राजपूत (पूर्व निदेशक और अध्यक्ष एनसीईआरटी) ने अपने भाषण में कहा कि हर धर्म का सम्मान करना भारतीयता है, लेकिन आज यह राजनीति से प्रभावित है. बरसों पहले हम जानते थे कि एक-दूसरे के विश्वास का सम्मान कैसे किया जाता है. विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ कैसे रह सकते हैं.

आज देश में माहौल बदल गया है. सोच और विचारधारा बदल रही है. इन हालात में हमने जो खोजा है वह कोई छोटी बात नहीं है.वह जिला मुख्यालय जाते थे, तब बैलगाड़ी में यात्रा करते थे और जब ईदगाह के सामने से बैलगाड़ी गुरती तो, लोग ईदगाह की तरफ देखते और मुबारकबाद देते थे.
 
खुसरो फाउंडेशन ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम समय की जरूरत है. उन्होंने आयोजकों से अपील की कि बच्चों का दिमाग साफ करने के लिए इस तरह के कार्यक्रम स्कूलों में किए जाएं.
 
प्रो. इक्तार मुहम्मद खान (इस्लामिक अध्ययन विभाग, जामिया मिलिया इस्लामिया के अध्यक्ष) ने कहा कि खुसरो फाउंडेशन की यह पहल सराहनीय है. हमें इस आंदोलन को सार्वजनिक स्तर पर बढ़ावा देना होगा. मुहम्मद इकबाल और अन्य ने अपने लेख प्रस्तुत किए.
 
इस बीच, दूसरे सत्र में गालिब अकादमी के अध्यक्ष प्रो जी आर कंवल और प्रो. इब्न कंवल (पूर्व अध्यक्ष, उर्दू विभाग, डीयू), चंद्रभान ख्याल, शान काफ निजाम, फारूक अर्गली, मुहम्मद कामरान वासे और अन्य ने पेपर प्रस्तुत किया.