इस्लामिक इतिहास में महिलाओं के योगदान पर 43 खंडों का शोध प्रकाशित

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 20-03-2021
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

मशहूर इस्लामी विद्वान शेख मोहम्मद अकरम नदवी का एक शोध हाल ही जेद्दाह में दार अल मिन्हाज (प्रकाशक) ने प्रकाशित किया है. 43 खंडों में प्रकाशित इस शोध में हदीस की महिला विदुषियों के बारे में 10,000 से अधिक विस्तृत ब्योरे दिए गए हैं. हदीस की व्याख्या करने वाली, आलिम, काजी, पत्नी, मां और बेटियों के तौर पर इन महिलाओं ने मुस्लिम समुदाय के विकास और विस्तार में सामाजिक, नैतिक और बौद्धिक स्तर पर योगदान दिया था.

'द कॉग्नेट' नामक वेबसाइट पर अपने एक लेख में रुश्दा फातिमा खान ने लिखा है, “अल-वफा बी अस्मां अल-निशा नाम का यह 43 खंडों वाला गहन कोश दो दशकों की मेहनत का नतीजा है जिसमें शेख मौहम्मद अकरम नदवी ने विभिन्न जीवनियों, पुरातन ग्रंथों और मदरसों के ग्रंथों और प्रासंगिक संदर्भ ग्रंथों के पत्रों का ब्योरा दिया है.”

जब शेख मोहम्मद अकरम नदवी ने यह काम शुरू किया तो उन्हें लगा कि ऐसी महिलाओं की संख्या महज 20 या ज्यादा से ज्यादा 30 होगी. लेकिन आज की तारीख तक वह पिछले 1400 सालों की 10,000 ऐसी विदुषियों की खोज कर चुके हैं.

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गौरतलब है कि अल-वफा बी अस्मा अल-निशा   का मतलब है हदीस की महिला व्याख्याकारों का जीवनी कोश और जिसका एक अन्य नाम अल-मुहद्दिदात  है.

शेख मोहम्मद अकरम नदवी ने लिखा है कि इस्लामिक इतिहास में, महिलाएं मजहबी ज्ञान केलिए खूब यात्राएं करती थीं और पूरे इस्लामिक दुनिया के प्रतिष्ठित मस्जिदों और मदरसों में उनका आना-जाना होता रहता था. और इसके जरिए वह हदीस के बारे में महत्वपूर्ण रूप से शिक्षण, व्याख्याओं में शामिल थीं.

इस अनजान इतिहास के बारे में खोज के लिए शेख मोहम्मद अकरम नदवी ने कक्षा की हाजिरी पुस्तिकाओं और इजहाज के ब्योरे ढूंढ निकालें हैं और इनमें महिलाओं को पुरुषों को पढ़ाने के लिए अधिकृत किए जाने का विवरण दर्ज हैं. इनमें ऐसी तारीफें भी हैं जिसे पुरुषों ने अपनी प्रतिष्ठित महिला शिक्षकों (उलेमा) के बारे में दर्ज किया है.

इस कोश के विविध दाखिलों में दसवीं सदी की बगदाद में पैदा हुई काजी के बारे में भी उल्लेख है जिन्होंने सीरिया और मिस्र की यात्रा की थी और वह दूसरी महिलाओं को पढ़ाती थीं. 12वीं सदी की मिस्र की एक महिला उलेमा या मुहद्दिदात का भी जिक्र इस कोश में है जिनके पुरुष छात्र ऊंटों पर लदे उनकी किताबों के जखीरे और उन किताबों पर उस विदुषी के अधिकार भरे ज्ञान से हैरत में रहते थे.

सातवीं सदी की मदीने की एक महिला अकादमिक रूप से काजी के पद तक पहुंची थी, जिन्होंने कुछ फतवे भी जारी किए थे और यह फतवे हज की परंपराओं और कारोबार को लेकर थे. इस कोश में कुछ प्रमुख काजियों का भी जिक्र है मसलन सातवीं सदी के दमिश्क की काजी उम्म अल-दरदा, जिनके छात्रों में दमिश्क के खलीफा भी थे.

ऐसा नहीं है कि यह सभी महिला विदुषियां पहले बिल्कुल ही अनजान थीं. इस्लामी विज्ञान, खासकर हदीस के क्षेत्र में उनके योगदान के बारे में मुस्लिमों को पता था, और इनमें पहला नाम पैगंबर साहब की पत्नी आयशा का आता है.

शेख मोहम्मद अकरम नदवी भारतीय मूल के हैं और उनका नाम दुनिया भर प्रमुख इस्लामी विद्वानों में लिया जाता है. उन्होंने पारंपरिक इस्लाम की विधिवत शिक्षा लखनऊ के नदवात अल-उलेमा  में ली है साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने अरबी साहित्य में पीएचडी भी की है. उन्होंने ऑक्सफोर्ड सेंटर फॉर इस्लामिक स्टडीज में कई साल बतौर फैलो भी बिताए हैं, जहां उन्होंने हदीस समेत कई अलहदा विषयों पर शोध कार्य किए हैं, इस्लामिक विज्ञान समेत उन्होंने करीब 30 किताबें लिखी हैं.

हालांकि उनका 43 खंडों वाला यह कोश अभी अरबी में ही है और उसका अंग्रेजी या उर्दू में तर्जुमा होना बाकी है पर उसका आमुख अभी अंग्रेजी और उर्दू में पढ़ा जा सकता है.