गरीबी और अभाव के बीच पूर्वी असम के धान के खेतों से तयब्बुनिशां का एशियाई खेलों तक का सफर

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
तयब्बुनिशां का एशियाई खेलों तक का सफर
तयब्बुनिशां का एशियाई खेलों तक का सफर

 

इम्तियाज अहमद / गुवाहाटी

गरीबी, बुनियादी सुविधाओं की कमी, न कोच न फिजिकल ट्रेनर, न ही कोई उपकरण, खेल के बढ़िया मैदानों की कमी, कहने का गर्ज यह कि बाधाएं अनंत थीं लेकिन तयब्बुनिशां (Tayabun Nisha) ने हर बाधा पर जीत हासिल की और एशियाई खेलों (Asian Games) में पदक जीतने वाली असम (Assam)की पहली महिला एथलीट (Female athlete) बनी थी.

हैरत की बात नहीं कि वह असम (Assam) की एथलीटों के लिए एक मानदंड स्थापित कर दिया. बाद में, उन्हीं की राह ने स्प्रिंटर हिमा दास (Hima Das), तैराक मिठू बोरूआ (Mithu Boruah), टेबल टेनिस चैंपियन मोनालिसा बरुआ मेहता (Monalisa Borua Mehta) इक्का मुक्केबाज शिव थापा (Shiv Thapa), तीरंदाज जयंत तालुकदार (Jayant Talukdar) या पदक विजेता मुक्केबाज, ओलंपियन लवलीना बोरगोहेन (Lovelina Borgohen) को प्रेरित किया.

तयब्बुन निशां अपने दिवंगत पति शाहिद उल्लाह के साथ (बाएं) एक एथलीट के रूप में


पूर्वी असम के शिवसागर (Shivsagar) शहर के एक आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार से आने वाली इस महिला ने बेहद समर्पण और कड़ी मेहनत के साथ अपने लिए एक खास जगह बनाई है. जब उनके समकालीनों ने खेल के मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं की, तो तयब्बुनिशां (Tayabun Nisha) ने शिवसागर (Shivsagar) के दरबार मैदान में ईद स्पोर्ट्स मीट से शुरू होकर 1982 में दिल्ली एशियाई खेलों (Asian Games) में जगह बनाने में कामयाबी हासिल की.

वह आठवीं कक्षा की छात्रा थी, तब वह अनाथ हो गई थी, और तब तयबुन (Tayabun Nisha) ने न केवल अपने घर की देखभाल की बल्कि उनकी जितनी छोटी-मोटी खेती थी उसका जिम्मा भी उनपर आ गया. इन सबके बीच वह अभ्यास करने और खेल आयोजनों में भाग लेने के लिए भी समय निकालती रहीं.

अब 68 साल की उम्र में तयब्बुनिशां आवाज- द वॉयस के साथ बात करती हुई बताती हैं, “एक छोटी लड़की के लिए, विजेता के पुरस्कार के रूप में टॉफियों का एक पैकेट ईद, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि के अवसर पर दरबार फील्ड में आयोजित स्पोर्ट्स मीट में भाग लेने के लिए वास्तव में एक बड़ी प्रेरणा थी.

प्रतिष्ठित सर्वश्रेष्ठ एथलीट की ट्राफी जीतना एक सपना था, जिस पर मैं हमेशा निगाहें बनाए रखती. कई बार मेरी उम्र के कारण मुझे हिस्सा लेने से मना कर दिया जाता था. आयोजकों ने मुझे सीनियर्स के आयोजनों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी, जहां सर्वश्रेष्ठ एथलीट का पुरस्कार जीता जाना था.

इसलिए, मैं बड़े होने की तरह दिखने और सीनियरों के इवेंट में हिस्सा लेने के लिए मेखला चादर पहन लेती थी. इसने कई बार काम किया और मैंने कुछ मौकों पर प्रतिष्ठित खिताब जीता और मैं और भी अधिक प्रेरित हुई.”

अभी भी सक्रियः तयब्बुन निशां जिम में टिप्स देती हुई


लेकिन एक प्रमुख खेल आयोजक, दिवंगत रंजीत गोगोई (Ranjit Gogoi) ने इनकी प्रतिभा और क्षमता को पहचाना और 1960 के दशक के अंत में कुछ समय के लिए ऑल-असम अंतर-जिला एथलेटिक्स मीट में शिवसागर जिले का प्रतिनिधित्व करने के लिए उसे ले गए.

इस डिस्कस थ्रोअर को तब तक पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा जब तक कि वह एशियाई खेलों (Asian Games) में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए चली गई और यहां तक ​​कि जापान, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में विश्व के दिग्गज एथलेटिक्स मीट में भी शामिल हुई.

एक शॉट पुटर और भाला फेंक की खिलाड़ी के तौर पर छोटी तयबुन (Tayabun Nisha) को शुरू में उसके पिता ही प्रशिक्षित करते थे, जिनको खेलों में उनकी रुचि का पता था और वह उसे हर दिन खेल के मैदान में ले जाते थे. वह कहती है, “मेरे पिता मुझे अभ्यास अभ्यास के लिए प्रतिदिन खेल के मैदान में ले जाते थे. जब मैं भाला फेंक के लिए रन-अप लेती थी, तो वह मुझसे दूर ऊँचे ताड़ के पेड़ की फुनगी पर निशाना साधने के लिए कहते थे.”

तैयबुन अपनी शुरुआत के बारे में कहती हैं, “मैंने धान के खेत में अभ्यास अभ्यास के दौरान अपने एक चचेरे भाई की मदद से डिस्कस थ्रो की बुनियादी बातें सीखनी शुरू की. वह एक डिस्कस थ्रोअर था और मेरा काम डिस्कस को इकट्ठा करना और उसे वापस उसके पास फेंकना था. धीरे-धीरे, मैंने अपनी बांहों में ताकत जुटानी शुरू की और इसे खेल के मैदान में आजमाना शुरू कर दिया. यह काफी दिलचस्प निकला क्योंकि मैं रोज खुद में सुधार करती जा रही थी.”

1974 में, उन्होंने जयपुर में बारहवीं अंतर-राज्य एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीता और इसके लिए डिस्कस थ्रो में 12 साल के अटूट राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ा. यह किसी भी खेल में असम के लिए किसी महिला द्वारा जीता गया पहला पदक था.

वह बताती हैं, "यह एक बड़ी प्रेरणा थी. यह मेरे अथक समर्पण और कई बलिदानों के अथक प्रयास का परिणाम था. इस उपलब्धि से मुझे जो आत्मविश्वास मिला, उसने मुझे बड़े लक्ष्यों की ओर देखने में मदद की और इसका अंत एशियाई खेलों (Asian Games) में हुआ.”

अभी भी गुवाहाटी में अपने आवासीय परिसर में एक जिम ट्रेनर के रूप में काम कर रहीं तैयबुन कहती हैं, “मैंने एशियाई खेलों (Asian Games) के ट्रायल में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.पिछली रात मैं बुखार से पीड़ित थी और पूरी रात अल्लाह से अपने ठीक होने की दुआ करती रही.

राहत की एकमात्र बात थी कि चयन समिति में भोगेश्वर बरूआ (असम के अर्जुन पुरस्कार विजेता एथलीट) की मौजूदगी थी. लेकिन, अगर मैं परीक्षणों में प्रदर्शन नहीं कर सकती तो वह भी मेरी मदद नहीं कर पाते. जब मैंने अगले दिन अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ थ्रो किया, तो शिविर में मेरी रूममेट पीटी ऊषा ने कहा, 'भगवान ने इस लड़की की रात भर की प्रार्थना का जवाब दिया है.

पूरी रात उसने सोने के बजाय प्रार्थना की.'उसके बाद एशियाई खेलों (Asian Games) से पहले मुझे राष्ट्रीय शिविर में दो साल तक प्रशिक्षित किया गया. मैं चौथे स्थान पर रही और पदक से चूक गई. लेकिन, मुझे इसका कोई मलाल नहीं है. मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया था.”

सबके लिए प्रेरणाः तयब्बुन निशां हिमा दास के साथ (बाएं) और ओलंपिक पदकविजेता लवलीना के साथ


यह पूछे जाने पर कि वह एनएफ रेलवे की एक अधिकारी, दो बेटों वाली एक गृहिणी, अपने खेल करियर (अभ्यास और प्रतियोगिताओं), और सामाजिक प्रतिबद्धताओं के साथ अपने समय का प्रबंधन कैसे कर सकती हैं? इसके जवाब में वह कहती हैं, “मैं जल्दी उठने वालो में हूं.

मैं बचपन से हर दिन सुबह 3 बजे उठती हूं क्योंकि गांव में बैलों को धान के खेत में ले जाना मेरा काम था. मैं घर से बाहर जाने से पहले अपनी नमाज और कुरान पढ़ना कभी नहीं छोड़ती. मैं हर समय आगे बढ़ने वाली हूं और मुझे अपना काम करने के लिए किसी पर भरोसा करने की आदत नहीं है. मैं एक कठोर दिनचर्या पर टिके रहकर सब कुछ मैनेज कर लेती हूं."

लगभग 45 साल की उम्र तक अपने खेल करियर को आगे बढ़ाने की अपनी प्रेरणा के बारे में तयबुन (Tayabun Nisha) कहती हैं, “मेरे बचपन की प्रेरणा मेरे पिता और उनकी शिक्षाएं थीं. और, शादी के बाद, मेरे पति दिवंगत शाहिद उल्लाह ने मुझे प्रेरित किया. इन दो आदमियों ने मुझे अपने जीवन में कभी भी हतोत्साहित नहीं किया है."

दूसरों को प्रेरित करने के उद्देश्य से, तयबुन (Tayabun Nisha) असम में सभी प्रकार के खेलों के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं और जब तक वह कर सकती है तब तक इसे जारी रखने की उम्मीद करती हैं. इसके अलावा, वह जरूरतमंदों की सहायता के लिए समाजसेवा की गतिविधियों में शामिल रही हैं.

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