राकेश चौरासिया / नई दिल्ली-समस्तीपुर
समस्तीपुर जनपद में एक मंदिर ऐसा भी है, जिसका नामकरण एक शैव मुस्लिम महिला के नाम पर हुआ है. एक स्थान पर खुदाई के दौरान मुस्लिम महिला खुदनी बीबी को शिवलिंगम के दर्शन हुए, तो लोगों ने उसके नाम पर ही मंदिर का नाम श्री खुदनेश्वर महादेव मंदिर रख दिया. यहां शिवलिंगम के साथ शैवभक्त खुदनी बीबी की मजार की भी पूजा होती है.
भारत देश में सभ्यता और संस्कृति के विविध रंग हैं. कई ऐसे साझा किस्से भी हैं, जिन्हें सुन और देखकर आंखें हैरत से भर जाती हैं. गंगा-जमुनी तहजीब की कई मिसालें इस देश में देखने को मिलती हैं, लेकिन श्री खुदनेश्वर महादेव मंदिर का उदाहरण सर्वोत्कृष्ट दिखता है, जो एक भक्त और भगवान की गाथा है.
समस्तीपुर जिला मुख्यालय से करीब 17 किमी दूर सुल्तानपुर मोरवा गांव हैं. यहां पर यह मंदिर स्थित है, जो क्षेत्र के हिंदुओं और मुसलमानों के लिए समान रूप से श्रद्धा का केंद्र है.
इस मंदिर की कहानी 1320 से शुरू होती है. इस गांव में हिंदू-मुस्लिम सदियों से प्रेमपूर्वक रहते आए हैं.
यहां सैकड़ों साल पुरानी जनश्रुति आज भी जीवंत है कि यहां मुसलमानों की एक पुरखनी खुदनी बीबी हुआ करती थीं, जो जंगल में गाय चराने जाती थीं.
ग्राम्य जीवन में घरेलू जरूरयात के लिए कई प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है. एक दिन खुदनी बीबी मिट्टी लेने के लिए गांव के पास ही सघन वन क्षेत्र में पहुंचीं.
जब उन्होंने एक स्थान पर जमीन खोदनी शुरू की, तो वहां स्वयंभू शिवलिंगम दिखाई पड़ा. दौड़ी-दौड़ी खुदनी बीबी गांव पहुंची और बुजुर्गों को शिवलिंगम उद्गम की कथा बताई.
ग्रामीणों ने मौके पर पहुंचकर इस विस्मयकारी दृश्य को देखा और समवेत राय से वहां एक छोटा मंदिर बना दिया गया.
लोग वहां पूजा-पाठ करने लगे. कालांतर में इस मंदिर की महत्ता तब बढ़ने लगी, जब यहां लोगों की यहां मन्नतें पूरी होने लगीं. सैकड़ों किमी दूर के भी लोग यहां मन्नतें मानने आते हैं.
बाबा और बीबी की कृपा से बेऔलादों के आंगन में किलकारियां गूंजती हैं, तो असाध्य रोगियों को आरोग्य मिलता है. इसके अलावा भी लोग अन्य प्रकार की मन्नतों के लिए यहां आते हैं.
इस कहानी का सर्वोत्कृष्ट रूपक यह है कि खुदनी बीबी ने अपने जीवन काल में ही बच्चों से कह दिया था कि जब उनकी मृत्यु हो, तो उनके शव को शिवलिंग के पास ही दफनाया जाए.
खुदनी बीबी की इच्छा के अनुसार उनका शव शिवलिंगम से चंद फुट की दूरी पर ही दफनाया गया. जिस तरह शिवलिंगम के पास नंदी प्रतिमा विराजित होती है, उसी भांति यहां खुदनी बीबी की मजार है.
अभी भी मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंगम के साथ मजार अवस्थित है और श्रद्धालु शिवलिंगम के साथ इस मजार की भी पूजा करते हैं.
लोगों में तो यह भी आस्था बताई जताई है कि शिवलिंगम के साथ खुदनी बीबी की पूजा न की गई, तो मन्नत पूरी नहीं होती है.
ग्रामीण बताते हैं कि तब खुदनी बीबी को शिवलिंगम के पास दफनाने पर कोई झगड़ा-टंटा नहीं हुआ था. सभी गांव वाले इस बात पर सहमत थे कि शिवभक्त खुदनी बीबी की इच्छा को सम्मान मिलना चाहिए.
उसके बाद 700 सालों में कई प्रकार से मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा. सन 1858 में इसे भव्य आकार दिया गया. अब यहां अन्य देवी-देवताओं के मंदिर बन गए हैं. आवश्यकतानुसार मंदिर के विस्तार का कार्य लगातार चलता रहता है.
यहां के सावन के महीने में मेला लगता है और कांवड़िये बड़ी धूम-धाम से जलाभिषेक करते हैं.
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बन चुके श्री खुदनेश्वर महादेव मंदिर अब पर्यटन स्थल का भी रूप ले चुका है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी मंदिर में आकर जलाभिषेक किया और मजार पर मत्था टेका था. तब उन्होंने घोषणा की थी कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा. हालंकि इस योजना पर अभी कार्यान्वयन नहीं हो पाया है.