बिहार के मुस्लिम संस्कृत विद्वान का दावा, सनातन और इस्लाम एक ही धर्म

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 12-01-2022
बिहार के मुस्लिम संस्कृत विद्वान का दावा
बिहार के मुस्लिम संस्कृत विद्वान का दावा

 

सुल्ताना परवीन/ पूर्णिया

मो. हफीजुर रहमान फरीदी चतुर्वेदी ने एक अनोखी किताब लिखी है, ‘महर्षि अग्नि का अवतारः हमारे अहमदे मुख्तार’. पूर्णिया, धमदाहा अनुमंडल के नीरपुर गांव के रहने वाले हफीजुर रहमान ने अपने शोध और अनेक ग्रंथों के अध्ययन के बाद जो महसूस किया है उसे इस किताब में लिखा है.

असल में, इस किताब को वह 1985 के आसपास ही पूरा कर चुके थे. लेकिन, माली हालत ऐसी नहीं थी कि किताब को छपवा पाते. किताब पूरी होने के 15 साल बाद यानी सन 2000 में किताब प्रकाशित हो पाई. तब सिर्फ दो हजार कॉपी ही छपी थी और उसके बाद उसका अगला संस्करण कभी नहीं छप सका.

हफीजुर रहमान कहते हैं, “पैसे होते तो कई और किताबें अब तक छप चुकी होती. पैसे के अभाव में ‘महर्षि अग्नि का अवतार:हमारे अहमदे मुख्तार’पहली और आखिरी किताब बन कर रह गई.”इस किताब में उन्होंने वेदों के हवाले से यह साबित किया है कि निस्वासत धर्म यानी सनातन धर्म इस्लाम ही है और गीता में भी मूर्ति पूजा को हराम बताया गया है.

 

संस्कृत से लगाव ने बढाया आगेः

हफीजुर रहमान को संस्कृत पढ़ने का बड़ा शौक था. वह कहते हैं संस्कृत उनके संस्कार में है. उनके पिता मो. अमाउर रहमान संस्कृत के बड़े विद्वान थे. रामचरित मानस उनको जबानी याद था. वह खुद को हाफिजे रामचरित मानस कहते थे. दादा अजबर अली भी संस्कृत के जानकार थे. उनके संस्कृत के ज्ञान और संस्कृत के प्रति उनकी लगाव को देखते हुए कामेश्वर सिंह मिथिला संस्कृत विश्वविद्यालय ने उनको आचार्य की उपाधि प्रदान की. लेकिन इस उपाधि से काफी विवाद हुआ.

संस्कृत के प्रति उनका लगाव ही है कि उन्होंने अपने बेटों को संस्कृत पढ़ाया. संस्कृत को आगे बढ़ाने के लिए एक संस्थान भी शुरू किया, लेकिन पैसे की कमी के कारण वह आगे नहीं बढ सका.

 

चारों वेद के हैं ज्ञाता इसीलिए हैं चतुर्वेदी

संस्कृत से लगाव होने के कारण हफीजुर रहमान ने बहुत सारे ग्रंथों को पढ़ा है. चारों वेदों और वाल्मीकि रामायण का भी अध्ययन किया है. इन्हीं किताबों को पढ़ने के दौरान उनको ‘महर्षि अग्नि के अवतार हमारे अहमदे मुख्तार’किताब लिखने का आईडिया आया. वह कहते हैं, “जब महर्षि अग्नि का अवतार... लिखने का कम बनाया, उसके बाद कुछ और ग्रंथों का अध्ययन किया। ताकि अधिक से अधिक साक्ष्य जुटा सकें.”

 

आर्थिक तंगी से हमेशा हुआ सामना

पिता मो. अताउर रहमान 22 साल तक सरपंच रहे,उसके बाद भी आर्थिक तंगी से जूझते रहे. मैट्रिक की परीक्षा 1984 में देनी थी, लेकिन फार्म भरने के लिए पैसे नहीं थे. इसलिए परीक्षा छोड़नी पड़ी.”हफीजुर रहमान कहते हैं कि पैसा हुआ तब 1985 में फार्म भरे थे मैट्रिक की परीक्षा का. लेकिन पढ़ने का शौक ऐसा कि इतिहास और अंग्रेजी दोनों ही विषयों में एमए किया. बाद में एलएलबी भी किया जिससे उनका गुजारा चलता है.

 

आर्थिक अभाव में छपवा नहीं सके किताब

हफीजुर रहमान कहते हैं कि इन्होंने कहानी, कविता, उपन्यास और दूसरी कई किताबें लिखीं, लेकिन पैसे के अभाव में छपवा नहीं सके. घर पर छत नहीं थी इसलिए कई किताबों की पांडुलिपियां बारिश में भीगकर गल गईं. उन्होंने 300 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं. ‘मेरा गांव,मेरा देश’नाम से उपन्यास लिखा है. वह कहते हैं कि जब ईश्वर एक है तो धर्म अलग अलग क्यों?इस विषय पर शोधपरक किताब ‘एक ईश्वर,एक धर्म’नाम से 1995 में लिखा. लेकिन यह किताब भी छप नहीं सकी.

 

चारों वेद, 18 पुराण पढ़कर लिखा महर्षि अग्नि

हफीजुर रहमान बताते हैं कि महर्षि अग्नि के अवतार हमारे अहमदे मुख्तार को लिखने के लिए उन्होंने चारों वेदों का अध्ययन किया. इसके अलावा 18 पुराण, 27 सूक्त, 27 नीति, महाभारत, गीता और वाल्मीकि रामायण को पढ़कर इस बात को साबित किया कि महर्षि अग्नि ही मोहम्मद साहब हैं.

उन्होंने किताब में संस्कृत के श्लोकों को लिखकर और उसकी व्याख्या कर अपनी बात को साबित किया है. वह कहते हैं कि पांचों वक्त नमाज पढ़ने का तरीका गीता में लिखा है. वह आगे कहते हैं, “नमाज दरअसल संस्कृत का शब्द है जो नम: और अज् के योग से बना है. जिसका अर्थ होता है ईश्वर के आगे शरीर को झुकाना. यही साष्टांग है, यही सजदा है.”वह कहते हैं, संस्कृत के श्लोकों से उन्होंने साबित किया है कि भगवान राम और भगवान कृष्ण ने हुजूर हजरत मोहम्मद का जिक्र किया था.

 

समाजी भेदभाव खत्म करने के लिए पढ़े संस्कृत

हफीजुर रहमान कहते हैं कि वैदिक संस्कृत तो सबके लिए है. इस भाषा को हर एक आदमी को पढ़ना चाहिए. इससे समाजी भेदभाव खत्म होगा, आपसी भाईचारे को बढ़ावा मिलेगा.

आज को जो माहौल है उसे बदलने के लिए लोगों को संस्कृत पढ़ना चाहिए. अपने बारे में हफीजुर रहमान कहते हैं कि एक आंख की रोशनी चली गई है. इसके कारण अब कोर्ट का काम भी ठीक से नहीं कर सकते हैं.

सिविल की ड्राफ्टिंग कभी-कभार कर लेते हैं. बहस के लिए कभी कभार ही जा पाते हैं. डाक्टरों ने आंख का ऑपरेशन करवाने को कहा. लेकिन पैसे के अभाव में ऑपरेशन नहीं करवा सके हैं. अभी कुछ महीने पहले घर की छत ढाल दी है. अब जो पांडुलिपियां बच गई हैं, उसे आने वाले दिनों में शायद बच्चे छपवा सकेंगे.