प्रसिद्ध नाटककार दया प्रकाश सिन्हा को हिंदी का साहित्य अकादेमी पुरस्कार

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 31-12-2021
पुरस्कृत नाटक सम्राट अशोक को वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है
पुरस्कृत नाटक सम्राट अशोक को वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
 
साहित्य अकादमी ने अपने प्रतिष्ठित वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा की है. इस घोषणा के अनुसार हिन्दी भाषा के लिए प्रसिद्ध नाटककार दया प्रकाश सिन्हा को वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित नाटक 'सम्राट अशोक' के लिए वर्ष 2021 के प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.  
 
पुरस्कृत नाटककार दया प्रकाश सिन्हा कहते हैं, "यह पहली बार हुआ है कि साहित्य अकादेमी द्वारा किसी नाटककार को सम्मानित किया गया है. नाटक एक द्विआयामी विधा है. सम्राट अशोक नाटक साहित्य भी है और इसका सफलतापूर्वक मंचन भी हो चुका है." 
 
इस पुरस्कार की घोषणा के बाद वाणी प्रकाशन ग्रुप चेयरमैन और प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "जयशंकर प्रसाद के बाद महत्वपूर्ण समकालीन नाटककारों में दया प्रकाश सिन्हा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है जो स्वयं निर्देशक और अभिनेता रहे हैं और यह पुरस्कार भारत की प्रमुख केंद्रीय साहित्यिक अकादेमी द्वारा श्रेष्ठ साहित्य के चयन का प्रतीक है." 
 
सनद रहे कि साहित्य अकादेमी पुरस्कार के इतिहास में ऐसा दूसरी बार हुआ है कि नाट्य विधा को पुरस्कृत किया गया है. पहला पुरस्कार रमेश कुंतल की ‘विश्व मिथक सरित सागर’ को 2017 में दिया गया था, जो वाणी प्रकाशन ग्रुप से ही प्रकाशित हुआ था.
 
हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ नाटककार दया प्रकाश सिन्हा की रंगमंच के प्रति बहुआयामी प्रतिबद्धता है. पिछले पचास वर्षों में अभिनेता, नाटककार, निर्देशक, नाट्य-अध्येता के रूप में भारतीय रंगविधा को उनका योगदान अद्वितीय है. दया प्रकाश सिन्हा अपने नाटकों के प्रकाशन के पहले, स्वयं उनको निर्देशित करके दुरुस्त करते हैं, इसलिए उनके नाटक साहित्य एवं कलागत मूल्यों को सुरक्षित रखते हुए मंचसिद्ध होते हैं.
 
सम्राट अशोक भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है जिस पर आज तक न जाने कितने उपन्यास, कहानियां, एकांकी और नाटक आदि लिखे जा चुके हैं और फ़िल्में बन चुकी हैं. इस नाटक 'सम्राट अशोक' में अब तक इस चरित्र पर लिखी गयी सभी रचनाओं से बिल्कुल अलग न तो यहां कलिंग युद्ध केंद्र में है, न अशोक और तिष्यरक्षिता या कुणाल और तिष्यरक्षिता प्रसंग को अहमियत गई है, और न ही अशोक द्वारा बौद्धधर्म को स्वीकार लेने की घटना को ही मुखरित किया गया है.
 
यह शायद पहला नाटक है, जिसमें अशोक के सिंहासन पर बैठने से लेकर उसके अन्तिम दिनों के क्षणों तक को समेटने की कोशिश की गई है, जब वह तुगलक और शाहजहाँ की तरह अपने ही कारागार में नितान्त अकेला होता जाता है.