मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली
प्रख्यात उर्दू लेखक और ‘जशन बहार‘ की संस्थापक कामना प्रसाद पंडित गुलजार देहलवी द्वारा उपयोग की जाने वाली उर्दू भाषा के आकर्षण के बारे में बताते हुए कहा कि यह शुद्ध भारतीय भाषा है. इसे धर्म के आधार पर कभी बांधा नहीं जा सकता.
भाषा हमेशा धर्म के दायरे से बाहर रही है. कामना प्रसाद खुसरो फाउंडेशन के एक समारोह को संबोधित कर रही थीं. इस दौरान तलीफ हैदर की किताब उर्दू की तरवीज-ओ-इशात में गैर मुस्लिमों की खिदमत (उर्दू के प्रचार और प्रकाशन में गैर-मुसलमानों के लिए सेवाएं) का विमोचन किया गया.
उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा हमेशा से साझी सभ्यता की प्रतीक रही है. हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि भाषा को किसी धर्म की नहीं बल्कि धर्म को भाषा की जरूरत होती है. तथ्य यह है कि भारत में कई हिंदू और सिख कवियों ने अपनी मातृभाषा में नहीं, उर्दू में लिखा और प्रसिद्ध हुए.
कामना प्रसाद ने कहा कि भाषा अपने समय की सभ्यता को दर्शाती है. आज भी भारत में उर्दू के प्रति प्रेम व्याप्त है. उन्होंने कहा कि उर्दू मानवीय एकता की भाषा भी है.डॉ शेख अकील अहमद, निदेशक, उर्दू भाषा के प्रचार राष्ट्रीय परिषद, अतहर फारूकी, महासचिव, अंजुमन-ए-तरकी उर्दू, प्रख्यात कवि पीपी श्रीवास्तव रिंद और खुसरो फाउंडेशन के निदेशक सिराजुद्दीन कुरैशी और रंजन मुखर्जी भी उपस्थित थे.
खुसरो फाउंडेशन के निदेशक और प्रख्यात इस्लामी विद्वान प्रो. अख्तरुल-वासे ने इस मौके पर संगठन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. कहा कि इसका उद्देश्य समाज को एकजुट करना है.उन्होंने कहा कि तलीफ हैदर का काम लोगों को एकजुट करने के मिशन के अनुरूप है. लेखक जैसे युवा साथियों को लोगों को एकजुट करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए.
अख्तरुल-वासे ने कहा कि कामना प्रसाद उर्दू सभ्यता की प्रतीक हैं जिन्होंने उर्दू शायरी को जिंदा रखने में अहम भूमिका निभाई है.उन्होंने कहा कि भारत की वर्तमान स्थिति हम सभी को यह सोचने पर मजबूर करती है कि सामाजिक अंतरों को कैसे पटाना है.
तनावों और बार-बार होने वाले संघर्षों को समाप्त करना है. इसका सीधा सा जवाब है कि हम वो भूल गए हैं जो हमें याद रखने की जरूरत है. ईश्वर, पैगम्बरों और संतों के प्रति त्याग, तपस्या, समर्पण और सेवा की भावना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है.
गौरतलब है कि प्रो. अख्तरूल -वासे, रोहित खेड़ा, सिराज-उद्दीन कुरैशी और रंजन मुखर्जी ने जनवरी 2021में ‘खुसरो फाउंडेशन‘ कीस्थापना की थी.इस अवसर पर अपने संदेश में प्रख्यात कवि पीपी श्रीवास्तव रिंद ने खुसरो फाउंडेशन को इस पुस्तक को ऐसे समय में प्रकाशित करने के लिए बधाई दी, जब सभ्यता और भौतिकवाद के सभी तत्व अराजकता के इस युग में हैं. यह किताब बीते दिनों की यादों को जिंदा रखने का काम करेगी.
अतहर फारूकी ने न केवल खुसरो फाउंडेशन की पहल की सराहना की. यह इच्छा भी जताई कि यदि संभव हो तो अंजुमन-ए-तरक्की उर्दू भी भविष्य में फाउंडेशन के किसी मिशन में भाग ले सके. उन्होंने उल्लेख किया कि उर्दू का विकास और प्रचार भारत में उन लोगों द्वारा किया गया है जिनकी मातृभाषा उर्दू नहीं रही है. यह देश की सभ्यता और विरासत की सुंदरता को दर्शाता है.
उन्होंने कहा कि प्रो. अख्तरुल -वासे ने वादा किया है कि भविष्य में हम इस संबंध में मिलकर काम करेंगे. यह काम हम सभी का है. सभी को करीब लाने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है.समारोह के अंत में खुसरो फाउंडेशन के निदेशक सिराज कुरैशी ने अतिथियों का धन्यवाद किया और विश्वास दिलाया कि फाउंडेशन के ऐसे प्रयास भविष्य में और सफल होंगे.