रक्षा बंधन की कहानी, महादेवी वर्मा की जुबानी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 22-08-2021
महादेवी और निराला की भूमिका में कलाकार (फोटोः सोशल मीडिया)
महादेवी और निराला की भूमिका में कलाकार (फोटोः सोशल मीडिया)

 

अरविंद कुमार/ नई दिल्ली

 

"महादेवी! दरवाजा खोलो!!

 "कौन?

" मैं, सूर्यकांत."

" अरे ,आप, निराला जी ! अंदर अंदर आइए .कैसे आना हुआ?

 "अरे तुम भूल गई.. आज रक्षाबंधन है ना!"

" हां  हां, बैठिए बैठिए"

-"नहीं पहले तो मुझे दुइ  रुपये दो."

 "दो रुपये क्यों"?

" एक रुपया  मुझे तांगे वाले को देना है और एक रुपया    तुम्हें रक्षाबंधन के बाद देना है."

निराला और महादेवी वर्मा का यह संवाद हिंदी साहित्य की एक अनूठी  ऐतिहासिक घटना है. महादेवी वर्मा इस घटना को कभी नहीं भूली जीवन  और वह लोगों को बार-बार सुनाकर कर हंसती थी .महादेवी वर्मा के  जीवनी कार दूधनाथ सिंह  ने अपनी किताब में इस किस्से का कुछ ऐसा ही  जिक्र किया है.

दरअसल  ,यह घटना हिंदी साहित्य एक भाई और एक बहन के बीच अद्भुत प्रेम की घटना है जो राखी के दिन व्यक्त होती है लेकिन इसके पीछे एक करुणा जनक कहानी छुपी हुई है. करुणा जनक इसलिए की भाई इतना  फक्कड़ कि  उसके  पास पैसे नहीं होते थे  कि वह बहन को राखी का इनाम दे सके लेकिन वह हर साल अपनी बहन से राखी बंधवाता जरूर था.

दरअसल निरला को जो भी पैसे मिलते थे उसे वे गरीबों पर लुटा देते थे और महादेवी जब हर साल उन को राखी बांधती तो भाई बहन से पैसा लेता था. ये दोनों हिंदी साहित्य की  किवंदती बन गए.  महादेवी वर्मा  केवल निराला को ही राखी नहीं बांधती थी  बल्कि वह पंत और मैथिलीशरण गुप्त को भी राखी बांधती  थी लेकिन निराला को  राखी बांधने का जो प्रसंग है वह बिल्कुल अनोखा  और दिलचस्प लेकिन यह प्रसंग बहुत कुछ कहता  भी है. महादेवी वर्मा ने निराला पर एक संस्मरण  भी लिखा है .उसकी   कुछ पंक्तियां आपके लिए प्रस्तुत है:

 "उस दिन मैं बिना कुछ सोचे हुए ही भाई निराला जी से पूछ बैठी थी, "आप के किसी ने राखी नहीं बाँधी?" अवश्य ही उस समय मेरे सामने उनकी बंधन-शून्य कलाई और पीले, कच्चे सूत की ढेरों राखियाँ लेकर घूमने वाले यजमान-खोजियों का चित्र था. पर अपने प्रश्न के उत्तर में मिले प्रश्न ने मुझे क्षण भर के लिए चौंका दिया."

'कौन बहन!  हम जैसे भुक्खड़ को भाई बनावेगी?' , उत्तर देने वाले के एकाकी जीवन की व्यथा थी या चुनौती यह कहना कठिन है. पर जान पड़ता है किसी अव्यक्त चुनौती के आभास ने ही मुझे उस हाथ के अभिषेक की प्रेरणा दी जिसने दिव्य वर्ण-गंध-मधु वाले गीत-सुमनों से भारती की अर्चना भी की है और बर्तन माँजने, पानी भरने जैसी कठिन श्रम-साधना से उत्पन्न स्वेद-बिंदुओं से मिट्टी का श्रृंगार भी किया है."

निराला को राखी बांधने के बारे में वह कहती हैं---

"मेरा प्रयास किसी जीवंत बवंडर को कच्चे सूत में बाँधने जैसा था या किसी उच्छल महानद को मोम के तटों में सीमित करने के समान, यह सोचने विचारने का तब अवकाश नहीं था. पर आने वाले वर्ष निराला जी के संघर्ष के ही नहीं, मेरी परीक्षा के भी रहे हैं. मैं किस सीमा तक सफल हो सकी हूँ, यह मुझे ज्ञात नहीं, पर लौकिक दृष्टि से नि:स्व निराला हृदय की निधियों में सब से समृद्ध भाई हैं, यह स्वीकार करने में मुझे द्विविधा नहीं. उन्होंने अपने सहज विश्वास से मेरे कच्चे सूत के बंधन को जो दृढ़ता और दीप्ति दी है वह अन्यत्र दुर्लभ रहेगी."

महादेवी जी ने आगे यह भी लिखा है

"संयोग से तभी उन्हें कहीं से तीन सौ रुपए मिल गए. वही पूँजी मेरे पास जमा कर के उन्होंने मुझे अपने खर्च का 'बजट' बना देने का आदेश दिया. जिन्हें मेरा व्यक्तिगत रखना पड़ता है, वे जानते हैं कि यह कार्य मेरे लिए कितना दुष्कर है. न वे मेरी चादर लंबी कर पाते हैं, न मुझे पैर सिकोड़ने पर बाध्य कर सकते हैं, और इस प्रकार एक विचित्र रस्साकशी में तीस दिन बीतते रहते हैं."

----, नमक से लेकर नापित तक और चप्पल से लेकर मकान के किराए तक का जो अनुमान-पत्र मैंने बनाया वह जब निराला जी को पसंद आ गया, तब पहली बार मुझे अपने अर्थशास्त्र के ज्ञान पर गर्व हुआ. पर दूसरे ही दिन से मेरे गर्व की व्यर्थता सिद्ध होने लगी. वे सबेरे ही आ पहुँचे. पचास रुपए चाहिए - किसी विद्यार्थी का परीक्षा-शुल्क जमा करना है, अन्यथा वह परीक्षा में नहीं बैठ सकेगा. संध्या होते-होते किसी साहित्यिक मित्र को साठ देने की आवश्यकता पड़ गई. दूसरे दिन लखनऊ के किसी तांगे वाले की माँ को चालीस मनीआर्डर करना पड़ा. दोपहर को किसी दिवंगत मित्र की भतीजी के विवाह के लिए सौ देना अनिवार्य हो गया. सारांश यह कि तीसरे दिन उनका जमा किया हुआ रुपया समाप्त हो गया और तब उनके व्यवस्थापक के नाते यह दानखाता मेरे हिस्से आ पड़ा."

रक्षा बंधन की यह कहानी युगों तक याद रखी जायेगी .एक ऐसा फक्कड़ दानवीर भाई था जिसके हाथ मे पैसे नही होते थे.वह महाकवि निराला था और बहन आधुनिक युग की मीरा थी.