पाकिस्तान में खुला किन्नरों का पहला मदरसा

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
छात्र को कुरान पढ़ा रही रानी खान
छात्र को कुरान पढ़ा रही रानी खान

 

गौस सिवानी, नई दिल्ली-इस्लामाबाद

ट्रांसजेंडर्स हमारी तरह ही इंसान हैं, लेकिन पाकिस्तान में उन्हें इंसान नहीं माना जाता, समाज उनसे नफरत करता है और बराबरी का दर्जा देने को तैयार नहीं है. इस समुदाय के लोग आज भी सम्मान के जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. रानी की कहानी भी संघर्ष से भरी है. उसने नृत्य किया, गाया, ताली बजाई और लोगों को रोजगार के लिए हंसाया. वे वेश्यावृत्ति नहीं करना चाहते. अब वे किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को नाचते गाते और तालियां बजाते हुए लोगों को आकर्षित करने का साधन नहीं बनने देंगे. इसी भावना के साथ उन्होंने दो साल पहले ट्रांसजेंडर लोगों के लिए एक मदरसा खोला है. यह पाकिस्तान का पहला ट्रांसजेंडर स्कूल है.

संघर्ष की कहानी

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मदरसे में पढ़ रहे छात्र


रानी खान खुद अपने मदरसे में पढ़ाती हैं. वह अपने सिर पर एक लंबी सफेद शॉल पहनती हैं और रोजाना कुरान पढ़ाती हैं. मदरसे में कढ़ाई और बुनाई भी सिखाई जाती है, ताकि ट्रांसजेंडर लोगों के पास भी कौशल हो और उन सभी को रोजगार मिल सके.

रानी खान ने अपने पूरे जीवन की बचत से यह मदरसा खोला है. जाहिर है, यह मदरसा ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. हालांकि उन्हें आधिकारिक तौर पर धार्मिक मदरसों में पढ़ने या मस्जिदों में प्रार्थना करने पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता है.

अधिकांश परिवार उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं. उन्होंने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया. रानी खान को भी 13साल की उम्र में उनके परिवार ने बेदखल कर दिया था और उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर किया गया था.

धर्म से निकटता

सत्रह साल की उम्र में, वह एक ट्रांसजेंडर समूह में शामिल हो गईं और शादियों में नृत्य करके पैसा कमाना शुरू कर दिया. वह अब लगभग पैंतीस साल की हैं. उन्होंने इस्लाम में शामिल होने और अपने जैसे अन्य लोगों की मदद करने के लिए पेशा छोड़ दिया.

उन्होंने दो कमरों का मदरसा खोला, पिछले साल अक्टूबर उन्होंने एक बच्चे के रूप में कुरान का अध्ययन किया, और एक धार्मिक मदरसा में पढ़ाया.

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नमाज पढ़ते छात्र


रानी खान ने कहा, “मैं इस दुनिया में और उसके बाद में अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए, भगवान को खुश करने के लिए कुरान सिखाती हूं.”

साथ ही, रानी का उद्देश्य तीसरे लिंग को समझाना है कि इस्लाम क्या है.

सरकार से कोई मदद नहीं मिली

रानी खान की शिकायत है कि उनके मदरसे को सरकार से कोई मदद नहीं मिली है. हालांकि, सरकारी अधिकारियों ने छात्रों को नौकरी खोजने में मदद करने का वादा किया है.

छात्रों को सिलाई और कढ़ाई सिखाई जाती है, ताकि वे कपड़े सिल सकें और मदरसा चला सकें.

वहीं इस्लामाबाद के उपायुक्त हमजा शफकत ने कहा कि मदरसा थर्ड जेंडर को मुख्यधारा में लाने में मदद कर सकता है. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगर आप दूसरे शहरों में भी इस मॉडल को अपनाएंगे, तो मदद मिलेगी.

यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान की 2017की जनगणना में दर्ज ट्रांसजेंडर लोगों की संख्या 10,000थी. हालांकि ट्रांस अधिकार समूहों का कहना है कि यह संख्या लाखों में है.

दिल की शांति  

मदरसे के छात्र समीर खान ने कहा, “जब मैं कुरान पढ़ता हूं, तो यह मेरे दिल को शांत करता है. समीर खान जीवन कौशल सीखना चाहता है. 19वर्षीय छात्र ने कहा कि यह अपमान भरे जीवन से बेहतर है.”

शिक्षा के साथ राशन

रानी के अनुसार, मदरसा स्थापित करने और छात्रों को लाने में उन्हें बहुत कठिनाई हुई. मदरसे के लिए कोई भी किराए पर घर लेने को तैयार नहीं था. इस्लामाबाद के एक उपनगर में घर ढूंढना बहुत मुश्किल था.

रानी खान का कहना है कि उन्हें धार्मिक शिक्षा के लिए मदरसे में ट्रांसजेंडर लोगों को लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी. शुरू में, कोई भी मदरसे में आने को तैयार नहीं था.

उन्होंने छात्रों को समझाने की पेशकश की कि सभी ट्रांसजेंडर लोगों को मासिक राशन दिया जाएगा. इसका असर हुआ और करीब 40छात्र आए, लेकिन कुछ ही दिनों में उनमें से आधे भाग गए.

रानी का कहना है कि अब उनके मदरसे में आने वाली सभी छात्राओं को मासिक राशन दिया जाता है और खर्चा खुद वहन करते हैं. उन्होंने कहा कि सभी को मासिक आधार पर मेकअप का सामान भी दिया जाता है.