हेमा मालिनी के जन्मदिन पर जानिए धन्नो के साथ तांगा दौड़ाने वाली असली बसंती की कहानी

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 15-10-2022
हेमा मालिनी के साथ रेशमा
हेमा मालिनी के साथ रेशमा

 

शाहताज खान / पुणे

"भाग धन्नो भाग... आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है."15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई फ़िल्म शोले में बसंती का भागते हुए तांगे पर चढ़ना और तांगा दौड़ाने वाली हेमा मालिनी की बॉडी डबल स्टंट वूमेन रेशमा पठान थीं.

अगले शॉट में तांगे का खतरनाक एक्सीडेंट और दर्शकों के दांतों तले अंगुली दबा लेने वाले इस सीन का जोखिम रेशमा पठान ने उठाया था. जिसमें वह हकीकत में ज़ख्मी होकर अस्पताल पहुंच गई थीं. 

जोखिम भरे कामों के लिए मशहूर रेशमा पठान, बॉलीवुड की पहली स्टंट वूमेन हैं. इंडस्ट्री में उन्हें ‘शोले गर्ल’के नाम से जाना जाता है. 

संकल्प करो कुछ ऐसा      

रमेश सिप्पी और जावेद अख्तर के हाथों रेशमा पठान को सीसीएफए की ओर से लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया. रेशमा कहती हैं, “यह पुरस्कार मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है और फिर फ़िल्म इंडस्ट्री के जिन महान व्यक्तियों द्वारा मुझे यह सम्मान दिया गया उसने इस पुरस्कार का महत्त्व मेरे लिए बहुत बढ़ा दिया.” 

ओटीटी प्लेटफॉर्म ज़ी फाइव ने 2019 में जांबाज़ स्टंट वूमेन रेशमा पठान के हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में 50 सालों का सफ़र तय करने और उनकी बहादुरी को सलाम करते हुए बायोपिक फ़िल्म ‘द शोले गर्ल’बनाई.

इस फ़िल्म ने रेशमा पठान को दर्शकों के सामने ला खड़ा किया.                               

हां गर्व है मुझे मैं नारी हूं

रेशमा पठान कहती हैं, "एक खिलाड़ी 52 पत्ते, फ़िल्म में स्टंट डायरेक्टर अज़ीम गुरुजी ने मुझे पहला अवसर दिया था. जिसके लिए मुझे सौ रुपए पारिश्रमिक मिला था. जब मैं ने वो सौ रुपए अपने पिताजी को दिए तो उन्होंने मुझे और मेरी माता जी को बहुत पीटा था." 

रेशमा पठान याद करते हुए बताती हैं कि जब उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में क़दम रखा तब वह केवल 14 वर्ष की थीं और उस समय फ़िल्मों में काम करना अच्छा नहीं समझा जाता था. पिताजी को राज़ी करने में उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी थी.

न पुरुषों के जैसी तू है, ना पुरुषों से तू कम है

रेशमा बताती हैं, "पुरुषप्रधान जगत में मैंने अपना लोहा मनवाया. आज स्टंट करना पहले के मुकाबले बहुत आसान है. जब मैं ने स्टंट करना शुरू किया तो हम बिना किसी सपोर्ट के अभिनेत्रियों के जोखिम भरे सीन किया करते थे. शोले फ़िल्म में ही मैं मरते-मरते बची थी."

रेशमा कहती हैं कि उस बहादुरी ने मुझे फ़िल्म इंडस्ट्री में पैर जमाने का अवसर भी प्रदान किया. शोले के सीन के बाद उन्हें कई फ़िल्मों में काम मिला और वह आगे बढ़ती गई.                                               

हौसले से तक़दीर बदल दी

"उस समय अभिनेत्रियों के बॉडी डबल भी स्टंटमैन ही हुआ करते थे क्योंकि लड़कियां एक तो फ़िल्मों में कम ही आती थीं और ऊपर से जोखिम भरे रोल निभाना असंभव था. इसीलिए जब मैं ने जोखिम भरे सीन करना शुरू किया तो डायरेक्टर को काफ़ी आसानी हुई क्योंकि मर्द की बॉडी लैंग्वेज को रोल के मुताबिक़ ढालने में उन्हें समस्या होती थी. मेरे आने से यह समस्या का समाधान हो गया और धीरे-धीरे और लड़कियां भी फ़िल्मों में काम करने के लिए तैयार हो गई." 

रेशमा का कहना है कि जूनियर आर्टिस्ट से स्टंट एसोसिएशन का हिस्सा बनने में भी उन्हें बहुत मेहनत और अपने हक़ के लिए लड़ना पड़ा था लेकिन मैं ने हार नहीं मानी और समझौता भी नहीं किया और फिर एक दिन मैं पहली स्टंट वूमेन की हैसियत से एसोसिएशन का हिस्सा बनी.

तू हकीकत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं

रेशमा बताती हैं, "मैं बचपन से ही लड़कों की तरह बोलती थी. किसी से डरती नहीं थी. लड़ना झगड़ना और कहीं से भी कूद जाने में मुझे बहुत मज़ा आता था. मेरे करतब देखकर मुझे कुछ पैसे मिल जाते थे.

घर के हालात बेहद ख़राब थे. मैं ने चावल बेचा, कपड़ा लाकर बाज़ार में बेचा लेकिन जब सरकार ने पाबंदी हटा ली तो इन सामानों को लाकर बेचने का काम भी बंद हो गया तभी एक दिन मैं चौक पर कारों पर से जंप करने का स्टंट कर रही थी तब अज़ीम गुरुजी ने मुझे देखा और अपने दफ़्तर आने के लिए कहा. जहां मैं अपनी माताजी के साथ गई."

रेशमा को तब यह नहीं मालूम था कि वो एक स्टंट डायरेक्टर हैं. उस दिन अज़ीम गुरुजी ने रेशमा को दो रुपए दिए थे जिस ने रेशमा को हैरान कर दिया था.       

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे

हेमा मालिनी, श्रीदेवी, रति अग्निहोत्री, मीनाक्षी शेषाद्रि, लक्ष्मी छाया इत्यादि अभिनेत्रियों के लिए बॉडी डबल और स्टंट करते हुए रेशमा पठान ने साबित किया कि काम करना महत्वपूर्ण है. क्योंकि उनके खतरनाक स्टंट देख कर दर्शक जब ताली बजाते थे तो वह तालियां पर्दे पर मौजूद अभिनेत्री के लिए होती थीं. परन्तु सभी साथी कलाकारों से मिलने वाले सम्मान ने उनको किसी कमी का अहसास नहीं होने दिया. 

वह कहती हैं, "मैं अपना काम कर रही हूं. हम सब अपना अपना रोल निभाते हैं."

रेशमा पठान अब 69 साल की हो गई हैं और हाल ही में उन्होंने एक एड के लिए स्टंट किया है. उनका कहना है कि वह बैठना नहीं चाहतीं. जब तक काम मिलेगा वह करती रहेंगी. कल उन्हें पैसों के लिए काम करना था ताकि अपने परिवार को सुरक्षित और अच्छी जिंदगी दे सकें लेकिन आज वह अपने शौक़ के लिए काम करना चाहती हैं.