नाजकी खानदानः कश्मीर के शायर, ब्रॉडकास्टर और दानिश्वर

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 06-03-2022
नाजकी खानदानः कश्मीर के शायर, ब्रॉडकास्टर और दानिश्वर
नाजकी खानदानः कश्मीर के शायर, ब्रॉडकास्टर और दानिश्वर

 

एहसान फाजिली / श्रीनगर

1 जुलाई 1948 को, रेडियो की तरंगें पहली बार पूरे कश्मीर में फैल गईं. ‘‘आदाब. ये रेडियो कश्मीर श्रीनगर है.’’ रेडियो कश्मीर, श्रीनगर पर पहली ध्वनि थी, जो अब आकाशवाणी श्रीनगर है. वह प्रतिष्ठित और आश्वस्त करने वाली आवाज मीर गुलाम रसूल नाजकी की थी, जो एक प्रसिद्ध शायर और एक लेखक थे, जिनकी रचनाएं कई कश्मीरियों को साहित्यिक यात्रा शुरू करने के लिए प्रेरित करती हैं.

नाजकी के बारे में, कश्मीर के एक प्रसिद्ध नाटककार प्राण किशोर लिखते हैं, वो रेडियो कश्मीर और जम्मू स्टेशन के एकसाथ ब्रॉडकास्टर थे.

सातवीं पीढ़ी के इस वंशज नाजकी को यह सम्मान इसलिए नहीं दिया गया कि वह वरिष्ठ स्टाफ (रेडियो कश्मीर, जम्मू) के वरिष्ठ सदस्य थे, जिन्हें रेडियो कश्मीर जम्मू से स्थानांतरित किया गया था, बल्कि उन्हें एक महान शायर और विद्वान के रूप में उनके कद के कारण सम्मानित किया गया.

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नाजकी परिवार

प्राण किशोर लिखते हैं कि नाजकी साहब को 1950 में श्रीनगर में झेलम नदी में भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के नाव जुलूस की लाइव कमेंट्री प्रस्तुत करने का सम्मान भी मिला था. नाजकी ने नागपुर और इंदौर में आकाशवाणी के साथ भी काम किया था.

मीर गुलाम रसूल नाजकी अपने समय की एक प्रसिद्ध आवाज थे. विभिन्न भाषाओं कश्मीरी, उर्दू, फारसी और अरबी में उनकी शायरी देखने को मिलती है, जो बीसवीं शताब्दी में कश्मीर के साहित्यिक दृश्य पर हावी थी, जिसे अभी भी खजाना माना जाता है. नाजकी को उनके कार्यों के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया था.

16 मार्च, 1910 को जन्मे नाजकी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू, फारसी और अरबी में अपने प्रसिद्ध पिता मीर मुस्तफ नाजकी से उत्तरी कश्मीर के बांदीपुर शहर के पास मदार गांव में प्राप्त की. जहां से उनका परिवार बाद में श्रीनगर स्थानांतरित हो गया था. 16साल की उम्र में उन्हें सरकारी स्कूल में शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया और वे स्कूलों के निरीक्षक के पद पर पहुंचे.

नाजकी को स्वतंत्र भारत में ‘पहले कश्मीरी लेखक’ और कश्मीरी साहित्य में चहुमुखी काव्यात्मक रूप को पुनर्जीवित करने वाले पहले शायर के रूप में भी श्रेय दिया जाता है. कविता का यह रूप मूल रूप से तेरह और चौदहवीं शताब्दी के सूफी शायरों जैसे लाल डेड और नूरुदीन नूरानी उर्फ नुंड रेशी के दौरान शुरू हुआ.

उन्होंने विभिन्न विषयों पर और काव्य विधाओं जैसे रुबाई, अध्यात्मवाद, नैतिक दर्शन, गजल, सौंदर्यशास्त्र और व्यंग्य शैली में शायरी की. 

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नाजकी परिवार का रेडियो से जुड़ाव

उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं में उनकी दक्षता ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई और उन्हें श्रीनगर में रेडियो स्टेशन के पहले निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया. उनका निधन 16अप्रैल 1998को श्रीनगर में हुआ था.

उनकी साहित्यिक कृतियों में दीदा-ए-तार (उर्दू) नज्म 1948, नामरुद-नामा (कश्मीरी) शेर, आवाज-ए-दोस्त (कश्मीरी) नज्म, चिरागे राह (उर्दू) नज्म, कावे येनेवोल (कश्मीरी) नज्म, मताई-ए-फकीर (उर्दू) नज्म, कुलियात-ए-नाजकी (कश्मीरी) नज्म,, रूही गनी (उर्दू) गद्य, अब्दुल अहद नदीम (उर्दू) गद्य, वारक वरक रोशन (उर्दू) निबंध शामिल हैं.

नाजकी फाउंडेशन द्वारा हर साल मार्च या अप्रैल में उनकी पुण्यतिथि के साथ एक स्मारक समारोह मनाया जाता है. हालांकि, यह पिछले दो वर्षों के दौरान कोविड-19प्रोटोकॉल के कारण आयोजित नहीं किया जा सका.

साहित्य अकादमी से नाजकी के मोनोग्राफ (मूल रूप से कश्मीरी में डॉ अजीज हाजनी द्वारा लिखित) का एक अंग्रेजी अनुवाद भी हाल ही में प्रकाशित किया गया है.

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उनके बेटे अयाज रसूल नाजकी ने आवाज-द वॉयस को बताया, ‘‘कश्मीर के अधिकांश शायरों के उनके ख्याल या विषय में नाजकी ने कुछ प्रभाव डाला है. हमारे पिता के रूप में, हमने उन्हें करीब से देखा है और उने विशाल व्यक्तित्व की वास्तविक ऊंचाई को जाना है.’’

नाजकी का परिवार मूल रूप से श्रीनगर के कादी कदल का रहने वाला था. उसके वंशज मीर सैयद अली (बुखारी) से अपने वंश से वास्ता रखते हैं, जिन्होंने 15वीं शताब्दी की शुरुआत में बादषाह (बुद्धशाह) जैन उल आबिदीन के न्याय विभाग का नेतृत्व किया था. मीर गुलाम रसूल नाजकी मीर नाजुक के 7वें वंशज हैं.

अपने बचपन के दौरान, उनके पिता मीर मुस्तफा, फारसी और अरबी साहित्य से अच्छी तरह से वाकिफ थे. वे बांदीपुर के मादर गांव में स्थानांतरित हो गए, जहां मीर गुलाम रसूल नाजकी और छोटे भाई, गुलाम मोहम्मद नाजकी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की.

मीर गुलाम रसूल नाजकी की पत्नी गामरियो (बांदीपुर) के प्रसिद्ध फाजिली परिवार से थीं. उनके सात बेटे और एक बेटी थी, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्टता की विरासत को जारी रखा है.

उनके तीन बेटों ने अपने शानदार पिता का अनुसरण करते हुए और विभिन्न व्यवसायों को भी अपनाते हुए साहित्यिक यात्रा शुरू की है. सबसे बड़ी बेटी नादिरा ने प्रसिद्ध शिक्षक मोहम्मद सईद अंद्राबी से शादी की. वो एक पूर्व नौकरशाह से राजनेता बने नईम अख्तर की मां हैं. वह मुफ्ती मोहम्मद सैयद के मंत्रिमंडल में मंत्री थे और बाद में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने के बाद नजरबंद हुए.

पशु शरीर क्रिया विज्ञान के प्रोफेसर डॉ अयाज रसूल नाजकी एसकेयूएसटी में संकाय के डीन के रूप में सेवानिवृत्त हुए. वह एक शायर भी हैं, जिनके पास कश्मीरी कविता की दो प्रकाशित पुस्तकें, उर्दू कविता के तीन संग्रह और कश्मीरी कविता के दो संग्रह हैं. उन्होंने कम से कम 20 प्रकाशित कार्यों में से एक उपन्यास और यात्रा वृत्तांत भी लिखा है. सबसे छोटे, वकार रसूल, जम्मू-कश्मीर बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में जुड़े हुए थे.