नसीम शिफाई की शिकायतः ‘कश्मीरी’ छोड़कर ‘उर्दू’ क्यों बोलते हैं?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 21-03-2022
नसीम शिफाई की शिकायतः ‘कश्मीरी’ छोड़कर ‘उर्दू’ क्यों बोलते हैं?
नसीम शिफाई की शिकायतः ‘कश्मीरी’ छोड़कर ‘उर्दू’ क्यों बोलते हैं?

 

एहसान फाजली / श्रीनगर

सहिया अकादमी पुरस्कार से सम्मानित एकमात्र कश्मीरी महिला नसीम शिफाई की शिकायत है कि स्थानीय लोगों द्वारा कश्मीरी भाषा की उपेक्षा की जा रही है, जो उनकी मातृभाषा है. वे अपने बच्चों के साथ उर्दू बोलना पसंद करते हैं.

उन्होंने वॉयस ऑफ अमेरिका को बताया कि उन्हें खेद है कि भाषा को उसके प्राकृतिक वक्ताओं से उचित समर्थन नहीं मिल रहा है. हर किसी को इसे पढ़ना चाहिए, यह हमारी भाषा है.

उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोगों में अपने बच्चों के साथ अपने घरों में उर्दू बोलने की सामान्य प्रवृत्ति है.

नसीम शिफाई ने तीन दशकों से अधिक समय तक कश्मीर में कॉलेज स्तर पर कश्मीरी पढ़ाई है.

उनका कहना है कि शुरुआत में वह उर्दू में लिखती थीं, लेकिन जल्द ही वह कश्मीरी की ओर आकर्षित हो गईं. अब तक उनके दो काव्य संग्रह दारचा मछरथ (खिड़कियाँ खुली हैं) और ना थसे ना अक्स, (न छाया और न ही दर्पण) प्रकाशित हो चुके हैं.

नसीम शिफाई को उनके कविता संग्रह ना थसे ना अक्स (न तो छाया और न ही दर्पण) के लिए 2011में कश्मीरी साहित्य में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

उनके दो और कविता संग्रह, एक नातिया कलाम और दूसरा हुसैनी कलाम, पूरा हो रहा है.

उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपनी जमीन और अपने लोगों की हूं और मैं आम आदमी, खासकर कश्मीरी महिलाओं का दर्द महसूस करती हूं और यह मेरे लेखन का हिस्सा रहा है.’’

एक महिला के रूप में, वह अपनी कविता में ‘कश्मीरी महिला के अंदर’ देखने की कोशिश करती है. वह महसूस करती हैं कि सामान्य तौर पर महिलाओं को कविता में बहुत कम जगह दी जाती है.

नसीम ने टिप्पणी की, ‘‘कश्मीर में हर महिला एक निर्माता है, क्योंकि वह गाती है और हर स्थिति में फुसफुसाती है, चाहे वह सुख हो या दुख.’’

इस तरह, वह कश्मीरी शादी के गीतों या किसी प्रियजन की मृत्यु का उल्लेख करती है. नसीम ने न केवल कश्मीर में बल्कि पूरे देश में महिला लेखकों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘जब वह (कश्मीरी महिला) एक बच्चे को गोद में रखती है, तब भी वह अपनी आंतरिक भावनाओं को मुक्त करती है, जो परिलक्षित होती है. वह अपने अस्तित्व को साबित करना चाहती हैं.’’

पिछले तीन दशकों से कश्मीर के हालात का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘एक महिला, एक बहन और एक मां होने के नाते मैं चीजों को महसूस करता हूं और यही लिखता हूं.’’

उनकी कविताओं को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा मिली है, नसीम शिफाई ने खेद व्यक्त किया कि उन्हें बाहरी पाठकों के लिए अपनी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद करने की आवश्यकता है.

उन्होंने जर्मनी, इटली, कोरिया और नेपाल में सांस्कृतिक और साहित्यिक सम्मेलनों में भाग लिया है.

कश्मीरी भाषा के विकास की गुंजाइश के बारे में नसीम शिफाई कहती हैं कि ‘‘आकाश हद है.’’

वह कहती हैं कि बाहरी लोग भाषा की समृद्धि के बारे में बहुत कम जानते हैं, हालांकि साहित्य अकादमी 1956से कश्मीर के लेखकों को पुरस्कार देती रही है.

गोवा के एक वरिष्ठ लेखक ने हाल ही में कश्मीरी भाषा की स्थिति के बारे में लिखा कि उन्हें बताया गया कि कश्मीरी भाषा बहुत कम जानी जाती है और पूछा कि यह कितनी सही है.

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने 32साल तक कश्मीरी कॉलेजों में पढ़ाई है और अब प्लस टू स्तर पर यह अनिवार्य है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘स्कूल स्तर पर, कश्मीरी पाठ्यक्रम को अपने आसपास की बुनियादी जानकारी पर ध्यान देने की जरूरत है, जो बच्चों को उनकी मातृभाषा की ओर आकर्षित करती है.’’

नसीम को 2010में बेस्ट टीचर अवॉर्ड से भी नवाजा गया था. नसीम शिफाई को साहित्य में उनकी सेवाओं के लिए राज्य पुरस्कार मिल रहा है. नसीम ने शुरुआती वर्षों में कश्मीरी में मास्टर डिग्री हासिल की, जब 1970के दशक के अंत में कश्मीर विश्वविद्यालय में कश्मीरी विभाग शुरू किया गया था.

शुरू में उर्दू शायरी की ओर रुख करने के बाद, उन्होंने जल्द ही कश्मीरी शायरी की ओर रुख किया और पीछे मुड़कर नहीं देखा.

वह कश्मीरी में कविता लिखने वाली एकमात्र कश्मीरी महिला हैं और जल्द ही एक प्रसिद्ध कवि बन गईं.

साहित्य में उनके योगदान के लिए गणतंत्र दिवस के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य पुरस्कार की घोषणा की गई.

उन्हें उनकी किताब ‘ना थसे ना अक्स’ के लिए 2011में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.

इसी पुस्तक के लिए उन्हें भारत और कोरिया की सरकारों द्वारा 2009में संयुक्त रूप से टैगोर साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

कुछ दिनों पहले, उन्हें पहला लाल डीड मेमोरियल अवार्ड (2020) दिया गया था, जिसे पुणे में एनजीओ सरहद द्वारा पेश किया गया था.

न केवल पुरस्कार, बल्कि उन्हें गर्व है कि रिसर्च स्कॉलर (अंग्रेजी साहित्य) ने उनकी तुलना समकालीन यूरोपीय महिला लेखकों से की है.