मुस्लिम अपना रवैया थोड़ा बदल दें, हिन्दू भी बदल जाएंगे : केके मोहम्मद

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 12-02-2021
पुरातत्वविद केके मोहम्मद
पुरातत्वविद केके मोहम्मद

 

पुरातत्वविद केके मोहम्मद ताजमहल की खूबसूरती को दिन के अलग-अलग वक्त में देखने और उसे गुनने की हिमायत करते हैं, लेकिन साथ में यह भी जोड़ते हैं कि ताजमहल को तेजो महालय कहना बेवजह समस्या खड़ी करना है. लेकिन अयोध्या मामले में अहम किरदार निभाने वाले केके मोहम्मद साफ कहते हैं कि मुसलमानों को इस मामले में इतिहासकार इरफान हबीब और उनके कम्युनिस्ट गिरोह ने गुमराह किया और इसकी कीमत मुसलमानों को चुकानी पड़ी. वह कहते हैं कि हिंदुस्तान सेक्युलर इसलिए है क्योंकि यहां बहुसंख्यक हिंदू हैं.

अगर मुसलमान कट्टरता छोड़कर अपने रवैए में थोड़ा बदलाव लाएंगे तो कट्टर हिंदुओं को बदलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. देश के जाने-माने पुरातत्‍वशास्त्री केके मोहम्मद के साथ ‘आवाज द वायस’ हिंदी के संपादक मलिक असगर हाशमी से खास बातचीत की दूसरी और अंतिम किस्तः

सवाल: रिटायरमेंट के बाद आप हैदराबाद में रहे, आगा फाउंडेशन में रहे और आपने हुमायूं के मकबरे पर बहुत काम किया. तीन साल के सफर हैदराबाद का तजुर्बा कैसा रहा?

केके मोहम्मदः आगा खान फाउंडेशन एक ऐसा ट्रस्‍ट है, जो केवल हैदराबाद या भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में काम कर रहा है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और इजिप्ट में भी उनका काम चल रहा है. इसी तरह गरीब लोगों की शिक्षा पर काम चल रहा है. पूरे इंडिया में जो पुरातात्विक संरक्षण का काम भी कर रहे हैं.

उन्होंने ही हुमायूं के मकबरे को आज जैसी शक्ल दी है. यह संरक्षण का काम बहुत अच्छा हुआ है. एएसआइ इतना बेहतर नहीं कर पाता क्योंकि वहां सरकारी संगठन होने की वजह से वित्तीय बाधाएं हैं. उसमें आपको बहुत अच्छा मुगल म्यूजियम भी दिखेगा.

इसकी दूसरी कड़ी, जो हैदराबाद में गोलकोंडा किले के पास, सात मकबरे हैं. वहां पर भी रतीश नंदा के नेतृत्व में आगा खान ट्रस्ट की तरफ से हमने खुदाई और संरक्षण का काम किया है.

सवाल: जब भी किसी दूसरे देश के बड़े नेता आते थे उनको गाइड करने आपके सीनियरों की बजाए आपको ही क्यों भेजा जाता था?

केके मोहम्मदः बस कुछ संयोग है. पटना से मेरा तबादला जब आगरा हुआ, उसी समय परवेज मुशर्रफ आ रहे थे. उनके आने के 15- 20दिन पहले ही मेरा ट्रांसफर हुआ था. ताजमहल को तो उसके पहले भी मैं गाइड किया करता था. मैंने ताजमहल के बारे में काफी रिसर्च किया है. ताजमहल एक ऐसी इमारत है, जिसका सुबह एक मूड होता है,

दोपहर में दूसरा, शाम को तीसरा और रात में चौथा मूड होता है. इसी तरह बारिश होने वाली हो तब ताजमहल देखिएगा, बहुत खूबसूरत लगेगा. सबेरे ताजमहल बहुत शांत लगेगा. और उसी हिसाब से कुरान की आयतें भी जड़ी गई हैं. सुबह जो आपको सूरह मिलेंगे कुरान के, वह सूरत-अल-फजर है. फजर का मतलब सवेरे.. तो उसी तरफ का मूड है.

दूसरी तरफ आपको मिलेगा सूरत-उल-दोहा. दोहा का मतलब यह है कि दस बजे आपका क्या मूड में रहेगा, फिर वसशम्सो तजरी यानी सूरज जब अपने ऊरुज पर पहुंचेगा, वह क्या होगा फिर आपको कहीं पर भी सूरत-उल-लय, लय अरबी में रात को कहते हैं.  इसी तरह से कुरानी आयतों के आकार बदलते रहते हैं.

अंदर के हिस्से में गेटवे पर खड़े हो जाइएगा, वहां नीचे के अक्षर छोटे होंगे, ऊपर जाते-जाते बड़े होते जाएंगे, लेकिन आपको लगेगा यह बिल्कुल यूनिफार्म है. यह बिल्कुल वैज्ञानिक तरीका है. कारीगर जानते थे कि ऊपर जाते हुए लोग पढ़ नहीं पाएंगे, लेकिन आप बगैरे मुश्किल इधर से ऊपर का भी पढ़ सकते हैं.

सवाल: हड़प्‍पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता को आज के जमाने से कैसे जोड़ सकते हैं?

केके मोहम्मदः उस समय की शहर योजना बहुत अच्छी थी, जो आज भी हमारे बड़े-बड़े शहरों में नहीं है. उस जमाने में भी गंदा पानी जो एक सोक पिट पर जाया करता था, फिर नाली के जरिए बाहर जाता था. नाली सड़क को दोनों तरफ होती थी. ऐसी शहर योजना मेसोपेटोमियन, फारसी, मिस्र या चीनी किसी संस्कृति में नहीं मिलेगी.

सवाल: आज का नौजवान इतिहास को सिर्फ प्रतियोगिता परीक्षा के लिए पढ़ता है. इसे इस नजरिए से नहीं देखता कि आप जैसा बन सके. आप जैसा इतिहासकार  बनना हो तो क्‍या और कैसे पढ़ना होगा?

केके मोहम्मदः  पहली बात जुनून होना चाहिए इस विषय के लिए. यह काम आसान नहीं है. लाइब्रेरी में बैठकर आप यह काम नहीं कर सकते, इसके लिए घूमना पड़ेगा. बारिश-धूप सहने को तैयार हैं तभी आप आर्कियोलॉजिस्‍ट बन सकते हैं. दूसरा, आपका मुकाबला करने के लिए, पीछे खींचने के लिए एक आदमी और होना चाहिए, जैसा मेरे केस में हुआ. मैं अभी उन लोगों को सलाम करता हूं.

साथ में सेल्फ इंप्रूवमेंट की कुछ किताबें हैं. आप पढ़ते रहेंगे इससे आपकी एक मजबूत पर्सनैलिटी बनेगी. चट्टानों से लड़ने की आपमें हिम्मत बनी रहनी चाहिए.

सवाल: आपने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि अयोध्या में मंदिर के ऊपर मस्जिद बनाई गई है, उसके बाद विवाद पैदा हुआ. आपको गलत साबित करने की कोशिश की गई, लेकिन इसी तरीके से कुछ लोगों को बोलने का मौका मिल गया कि कुतुब मीनार भी शिवालय है, ताजमहल भी शिवालय है. इसका सच क्‍या है?

केके मोहम्मदः कुतुब मीनार में दो चीजें हैं, एक तो कुतुब मीनार. दूसरा, उसके बगल में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद. वह मस्जिद पहले मंदिर ही था. उसमें जैन मंदिर भी है, हिंदू मंदिर भी है तो आपको बहुत सारी मूर्तियां मिलेंगी. मूर्तियों को तोड़कर ही उन्होंने यह कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनाई. यह बात बिल्कुल सही है इसमें कोई शक नहीं है.

इस बारे में उस ज़माने की अरबी की किताब है, ताजुल मआसिर उसमें हसन निजामी ने यही लिखा है और बताया है कि मस्जिद के सामने एक कतबा भी है. पर यह जो कुछ चीजें हुईं गलत हुईं और वह इस्‍लामिक स्पिरिट नहीं है. इस्लाम में किसी दूसरे को बुरा कहना गलत है.

इस्लाम कहता है, अगर किसी से वाद-विवाद भी करना है, तो अच्‍छी तरीके से कीजिए, दूसरे के आइडोल्स को गाली भी नहीं दे सकते. लेकिन जो अफगान आए उन्‍होंने काफी गलत काम किया. उन्होंने काफी मंदिर तोड़े और इसको मानने में मुसलमानों को कोई झिझक नहीं होनी चाहिए. जाहिर है, उन लोगों ने गलती की थी, लेकिन उसके लिए आज का मुसलमान जिम्मेदार नहीं है.

पर मुसलमानों को एक और गलती नहीं करनी चाहिए, जो आजकल भी वह कर रहा है, वह है उन काम को जस्टिफाई करने की कोशिश. जस्टिफाई करने की कोशिश करेंगे. तो चीजें खराब हो जाएगी. कुछ लोग कहते हैं कि वहां दौलत लूटने के लिए तोड़ा, यह भी गलत है. या फिर कम्युनिस्ट लोग कहते हैं कि इसके पीछे आर्थिक कारण थे, यह सब करके जस्टिफाई मत करिए.

अंग्रेजों और पुर्तगालियों ने भी गलती की है, पर वह उसको जस्टिफाई नहीं करते. अगर आप जस्टिफाई करने की कोशिश करेंगे तो फिर हिंदू भी भड़क जाते हैं. वरना, हिन्‍दूइज्‍म बहुत अकोमोडेटिव रिलीजन है और मैं बहुत सम्मान करता हूं. क्योंकि आप ईश्वर में विश्वास कीजिए या मत कीजिए. शिव की पूजा करिए या विष्णु की, चाहे मंदिर में मत जाइए, फिर भी आप हिंदू ही रहते हैं. तो बहुत बड़ा रिलीजन हमें मिला है, इससे मुसलमानों को फायदा उठाना चाहिए.

वहां दूसरी इमारत है कुतुब मीनार, वह पूरी तरह से इस्‍लामिक इमारत है. इसके पहले अफगानिस्तान में भी इसी तरह के मीनार बनते रहे हैं. इसके पहले समरकंद में या तिरमिज में ऐसी मीनारें बनती रही हैं. लेकिन सबसे बड़ा मीनार हिन्‍दुस्‍तान में बना. वजह यह है कि हम लोग पत्‍थर में बहुत अच्छे-अच्छे मंदिर बनाते रहे थे.

खजुराहो के मंदिर के देखिए, बहुत ही खूबसूरत है. जो हमारे पास पत्थर के कारीगर और इस्लामी कंसेप्ट का जब मिश्रण हुआ तो बना कुतुब मीनार. हिंदुओं में जो कट्टरवादी है जो यह दावा करते हैं कि वह विष्णु मंदिर था तो यह यह गलत है. मैंने हिंदुस्तान में सौ से अधिक मंदिरों को सुधारा है पर मैंने अभी तक तेजो महालय का नाम नहीं सुना. मुझे क्‍या किसी को भी उसके बारे में पता नहीं.

और ताजमहल में है क्‍या, यह एक मिनारेट है. मीनारों का चलन हिन्‍दू पीरियड में या प्राचीन काल में नहीं था. मेहराबें हिन्‍दू काल में नहीं होती थीं. गुंबद तब्‍लीगी इस्‍लामिक है. सल्तनत काल यानी 1192से 1526तक के समय में सिंगल डॉम्‍ब यानी एक गुंबद हुआ करता था. दोहरा गुंबद पहली बार हुमायूं के मकबरे में बनाया गया था. हिन्‍दू एक्‍सट्रीमिस्‍ट का दावा है कि यह 11वीं शताब्‍दी का है. लेकिन 11वीं शताबदी में न मेहराबें होती थीं, न गुंबद होते थे, न पच्चीकारी का काम होता था, न मीनारों का. न ही ऑरनामेंटल सजावटी चीजें उकेरी जाती थीं.

ताजमहल के लिए हुमायू के मकबरे से गुंबद ले लीजिए, अकबर के सिकंदरा से मीनारें ले लीजिए, सलीम चिश्ती के मकबरे का जाली वर्क ले लीजिए और यह सारी चीजें आप एक जगह पर रख लीजिए तो ताजमहल हो जाएगा. तार्किक परिणति यही है. अगर इसे कोई मंदिर कहता है तो गैर-जरूरी तौर पर मुश्किल खड़ी करने के लिए कहता है.

सवाल: जब आपने कहा, अयोध्‍या में नीचे मंदिर है, तो मुसलमान बहुत नाराज हुए. बाद में सुप्रीम कोर्ट में जो फैसला आया, लगभग वही था. आपने एक प्रोफेशनल की हैसियत से अपना फर्ज निभाया, लेकिन लोग नाराज हुए. अब जब फैसला आ चुका है तो कुछ बदला या नहीं?

केके मोहम्मदः  पहले भी बहुत सारे लोग उस जमाने में थे जो दावा छोड़ने के लिए तैयार थे. लेकिन उनको इरफान हबीब की जो कम्युनिस्ट हिस्‍टोरियन लॉबी ने भड़काया है. उन लोगों ने कहा, छोड़िएगा मत, क्योंकि वहां प्रो. बीवी लाल ने खुदाई करके देखा, उनको कुछ नहीं मिला है इसलिए आप थोड़ा-सा भी समझौता मत करना. अगर अभी कंप्रोमाइज करेंगे तो हम, तो फिर वह लोग बहुत सारे क्लेम करेंगे, ऐसा उनको बताया. इरफान हबीब और उनका कम्‍युनिस्ट ग्रुप उन्हें गलत रास्ते पर ले गया और मुसलमानों को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी.

वैसे, इस बीच में इरफान हबीब और नदीम रिजवी ने एक और अभियान चलाया मेरे खिलाफ कि मैंने उस एक्‍सक्‍वेशन में पार्टिसिपेट नहीं किया था, और यह बात अखबार में दे दी. टाइम्‍स ऑफ इंडिया में ऐसी खबर छपवा दी नदीम ने. प्रो बीबी लाल, उस समय इंडिया में नहीं थे, अमेरिका में थे. उन्हें फिर ईमेल भेजना पड़ा फिर और अखबार को वह भी पब्लिश करना पड़ा. यह सब झूठ बोलने की इन लोगों की आदत बन गई है, तो इस तरीके से मुसलमानों को उस जमाने में गुमराह किया.

मुस्लिमों के लिए मक्का और मदीना जितना महत्वपूर्ण है, आम हिंदू के लिए अयोध्या भी उतना ही पवित्र है. आपको पाकिस्तान दे देने के बाद भी अगर आज हिंदुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष देश है, ओनली बिकॉज इट्स हिंदू मेजॉरिटी कंट्री, मुस्लिम मेजॉरिटी कंट्री होता यह कभी भी सेकुलर कंट्री नहीं होता. यह हम लोगों की, हकीकत है और इसको हमको मानना चाहिए. जहां मुमकिन है वहां मुसलमानों को समझौता करना चाहिए था लेकिन इरफान हबीब एंड गिरोह ने गुमराह किया है. वह गलती हुई है. मुसलमान पहले भी समझते थे बाद में भी वह समझ गया. बहुत सारे लोग समझ रहे कि वह गलत हुआ है.

सवालः नजरिया बदला कि नहीं बदला?

केके मोहम्मदः काफी बदला है. हिंदू समुदाय के कुछ लोग चरम की ओर इसलिए चले जाते हैं क्योंकि एज ए रिएक्‍शन टू मुस्लिम फेनेटिसिज्म...तो अगर मुस्लिम अपने रवैये को थोड़ा बदलेंगे, हिंदू भी बदल जाएंगे. हिंदू को बदलना कोई बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं है. साथ में यह भी कहूंगा कि हम जो समझते हैं कि सिर्फ हम ही सही हैं बाकी सारे लोग गलत हैं, सिर्फ हम ही जन्नत जाएंगे और बाकी लोग दोजख में जाएंगे, यह सब चीजें मॉडर्न जमाने में आप को बदलना ही पड़ेगा. यह सोच मुसलमानों को बदलनी होगी. एक नया भारत बनाने करने के लिए मुस्लिम-हिंदू-क्रिश्चियन सबको मिलकर आगे बढ़ना होगा.

सवाल: आजकल आप क्‍या कर रहे हैं?

केके मोहम्मदः जो काम किया है उसको किताबों की शक्ल दे रहा हूं. इसी पर सारा ध्यान लगाया है.