मोइनुल हक बिना कुछ बोले बहुत कुछ बोल जाते हैं

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
मोइनुल हक
मोइनुल हक

 

अरिफुल इस्लाम / गुवाहाटी
 
वह आपको मौन की शक्ति का एहसास करना सिखाते हैं. उत्तर पूर्वी भारत में एक माइम आर्टिस्ट मोइनुल हक अपने दर्शकों को यह एहसास दिलाते हैं कि उनके चारों ओर मौन केवल ध्वनि की अनुपस्थिति नहीं है. उन्होंने हमेशा साबित किया कि अवाक कही जाने वाली कहानियां शब्द की दुनिया जितनी शक्तिशाली हो सकती हैं. कभी-कभी, सही चेहरे के भाव और शरीर की भाषा के साथ रिकॉर्ड किए जाने पर वे और भी मजबूत हो सकते हैं, जैसा कि हक करते हैं.

अगर शब्द चांदी के हैं, तो मौन सोना है. अंतरराष्ट्रीय माइम कलाकार मोइनुल हक के मामले में यह कहावत पूरी तरह से लागू होती है. 63 वर्षीय प्रशंसित माइम कलाकार अपने वर्तमान मुकाम पर सरासर समर्पण और कड़ी मेहनत के साथ पहुंचे हैं.
 
मोइनुल हक ने किसी औपचारिक शिक्षाविद के माध्यम से माइम की कला नहीं सीखी. लेकिन उनके प्रयासों ने उन्हें दुनिया में स्थापित कर दिया. 2009 में, उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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उस समय उनकी आयु लगभग 50 वर्ष थी. वर्तमान में, मोइनुल हक भारत के साथ-साथ विदेशों में भी माइम के प्रतीक हैं. उन्होंने अब तक लगभग 6,000 शोज  किए हैं. उनके पास पूरे भारत में प्रशिक्षु हैं. अभी भी भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रशिक्षण ले रहे हैं.
 
आवाज-द वॉयस के साथ एक साक्षात्कार में, मोइनुल हक ने कहा, ‘‘मैं बचपन से लोगों को हंसाना पसंद करता था. मैं अपने स्कूल के दिनों से छोटे कॉमेडी शो और मोनो अभिनय शो हिस्सा लेता था.
 
फिर मैंने कॉमेडी शो में प्रदर्शन करना शुरू किया. कॉलेज समारोहों में अपनी कला दिखाई. उनका पहला स्टेज शो बैहाता चरियाली में था. भैया मामा के किशोर चैधरी, प्रबीन हजारिका और मैं एक साथ साउंड एंड कॉमेडी नामक एक समूह की स्थापना के लिए आए थे.
 
जब तक हमने अपना कॉलेज जीवन समाप्त किया, तब तक यह समूह बन गया. कॉमेडी शो में सुपरहिट रही. हम अपने कॉमेडी शो के जरिए सामाजिक मुद्दों को पेश करते रहे हैं. हमें उस समय बहुत सारे शो मिलने लगे.‘‘
 
वह बताते हैं,‘‘कॉमेडी शो में प्रदर्शन के दौरान, मुझे एहसास हुआ कि कुछ क्लासिक सीखना है. उस समय, हमारे कॉलेज के लेक्चरर भुबन लहकर सर ने मुझे माइम आर्ट पर एक किताब दी थी.
 
किताब पढ़ने के बाद मैंने फैसला किया कि इसमें करियर बनाऊंगा. मैं कुछ समय लेते हुए सब कुछ करता रहा. 1982 से 1991 तक, मैंने माइम सीखा. 1991 में, मैंने पहली बार रवीन्द्र भवन, गुवाहाटी में प्रदर्शन किया. उसी वर्ष मैंने अपनी माइम अकादमी शुरू की. फिर मैंने नए लड़कों को प्रशिक्षण देना शुरू किया. माइम आर्ट में लड़कियां भी किसी से कम नहीं.
 
माइम में औपचारिक शिक्षा लेने की इच्छा के बावजूद, वह घर की आर्थिक स्थिति के कारण ऐसा नहीं कर सका. हालांकि मोइनुल हक ने खुद ही माइम सीखना शुरू कर दिया.
 
सबसे पहले, उन्होंने अपने शारीरिक निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने माइम के लिए अपने शरीर को फिट और लचीला बनाया.अपने 40 साल के लंबे माइम करियर में आने वाली चुनौतियों के बारे में, मोइनुल हक ने कहा, ‘‘जब मैंने माइम शुरू किया, तो यह असम के लोगों के लिए एक नई कला थी.
 
शुरू में, लोग माइम को नहीं समझते थे. जब मैंने कपड़े पहने और अपनी पेंटिंग बनाई. फेस टू डू माइम, लोग सोचते थे कि क्या मैं बंदर नृत्य करने जा रहा हूं. लेकिन, अब लोग माइम को समझने लगे हैं.
 
आजकल, स्कूलों और कॉलेजों के कई प्रशिक्षु माइम से जुड़े हैं. मेरे कई प्रशिक्षुओं ने अलग-अलग पुरस्कार जीते हैं. दो में से मेरे छात्रों ने बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार भी जीता है. पांच ने प्रतिभा पुरस्कार जीता है. कई केंद्र सरकार के पुरस्कार जीतने में सफल रहे हैं.‘‘
 
मोइनुल हक की माइम अकादमी में बड़ी संख्या में छात्र हैं. हालांकि वह कोविड के कारण नियमित प्रशिक्षण नहीं दे पाए हैं. उनकी माइम अकादमी के कई छात्र आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों से आते हैं. वह गरीब परिवारों के सभी प्रशिक्षुओं को मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं और छात्रवृत्ति भी प्रदान करते हंै.
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अब तक मोइनुल हक विभिन्न सामाजिक मुद्दों को माइम के जरिए उठाते रहे हैं. उन्होंने बांग्लादेशी आव्रजन, टीआरपी, बाल श्रम, दहेज और कई अन्य मुद्दे शामिल हैं.
 
युवा पीढ़ी को सलाह देते हुए, कार्य संस्कृति में विश्वास रखने वाले कलाकार ने कहा, ‘‘नई पीढ़ी थोड़ा प्रयास करके अधिक पाना चाहती है. यह कार्य संस्कृति के लिए एक अच्छा संकेत नहीं है.
 
मैंने जो कुछ भी हासिल किया और जो कुछ भी मुझे आज मिला है या जो मैं हूं 40 साल के लंबे प्रयास के लिए जाना जाता है. मैंने अपने बहुत सारे अनुभव साझा किए हैं जो मैंने अपने प्रशिक्षुओं के साथ 40 वर्षों में एकत्र किए हैं. इसलिए, जो कड़ी मेहनत करते हैं वे निश्चित रूप से अपने जीवन में सफल होंगे.
 
मैं अभी भी अभ्यास करता हूं दिन में चार से पांच घंटे. अल्लाह केवल उन्हें देता है जो कड़ी मेहनत करते हैं. सोने में समय बिताने पर लोगों को कुछ नहीं मिलता है. दुनिया में बहुत सी चीजें हैं. हमें यह जानने की जरूरत है कि क्या देखना है. अगर कोई खुद को समर्पित करता है कोई भी कार्य, वह उस कार्य में अवश्य ही सफल होगा.‘‘
 
अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर, कलाकार ने कहा, ‘‘भविष्य की योजना एक स्टूडियो बनाने की थी. अल्लाह की मेहरबानी से, स्टूडियो बनाया गया है. अब, मेरी एक बड़ा सभागार बनाने की योजना है.‘‘