एक नजर में मल्लिकार्जुन खड़गे का राजनीतिक सफर

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 19-10-2022
मल्लिकार्जुन खड़गे
मल्लिकार्जुन खड़गे

 

राजीव कुमार सिंह/ नई दिल्ली

ऐसे दो मौके आए हैं, जब अपने राजनैतिक करियर में मल्लिकार्जुन खड़गेमुख्यमंत्री की कुरसी तक पहुंच गए पर वह कुरसी फिसल गई. वही खड़गे इस बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने से बस एक कदम दूर हैं. ऐसा माना जा रहा है कि वह कांग्रेस के अनधिकृत अधिकृत उम्मीदवार हैं और सोनिया की पसंद हैं.

वह दक्षिण भारत से हैं इसलिए इससे पहले की हम खड़गे के बारे में जाने, जान लीजिए कि स्वतंत्रता के बाद दक्षिण भारत से अब तक कितने कांग्रेस अध्यक्ष हुए हैं.

आज़ादी के बाद दक्षिण भारत से कांग्रेस अध्यक्ष

पट्टाभि सीतारमैया-1948

नीलम संजीव रेड्डी- (1960-63)

के कामराज- (1964-67)

एस निजलिंगप्पा- (1968-69)

पीवी नरसिम्हा राव- (1992-96)

आइए अब जानते हैं खड़गे की जिंदगी के कुछ अन्य पहलुओं के बारे में.

नामः मपन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे

जन्मः 21जुलाई 1942

मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म 12 जुलाई 1942को दलित दंपत्ति मपन्ना और श्रीमती साईबाव्वा के घर हुआ. खड़गे का विवाह 13म ई, 1968 को राधाबाई से हुआ और उनकी दो बेटियां और तीन बेटे हैं. 2006 में, खड़गे ने कहा कि वह बौद्ध धर्म का पालन करते हैं.

बात साल 1945-46 की है. हिंदुस्तान की आज़ादी की लड़ाई अपने आखिरी पड़ाव पर थी. तत्कालीन हैदराबाद राज्य में एक जगह थी वर्वट्टी, जो अब कर्नाटक में स्थित है.  हैदराबाद के निज़ाम के कुछ सैनिक वर्वट्टी के एक गांव पहुंचे थे. घर के बाहर एक बच्चा खेल रहा था.

उम्र करीब तीन बरस रही होगी. पिता काम पर गए थे. घर में मां और बहन थे. निजाम के सैनिकों ने मां और बहन दोनों को जिंदा जलाकर मार डाला. बच्चा खड़ा-खड़ा सब देखता रहा. वह दर्दनाक दृश्य जीवन भर के लिए उसकी आंखों में कैद हो गया था.

कहा जाता है कि गरीब और दलित परिवार से आने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई में कोई कसर नहीं रखी. गुलबर्गा के नूतन विद्यालय से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने यहीं के सरकारी कॉलेज से कला से स्नातक की पढ़ाई की.

गुलबर्गा के सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज यहां से उन्होंने कानून की डिग्री ली और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने अपने इस करियर की शुरुआत न्यायमूर्ति शिवराज पाटिल की सरपरस्ती में की. शायद एक ऐसे तबके से आने के बाद उन्हें पता था कि दबा-कुचला जाना कैसा होता है, इसलिए उन्होंने अपने कानूनी करियर की शुरुआत में श्रमिक संघों के मुकदमों को तवज्जो दी और इन मुकदमों में जीत दर्ज की.

यही वजह रही कि श्रम मामलों और कानून में उनकी काबिलियत की वजह से मनमोहन सिंह सरकार में उन्हें श्रम मंत्री का पद दिया गया.

मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी आलाकमान के बहुत ही खास और वफादार माने जाते हैं. जब वे 27 साल के थे तभी से उन्होंने कांग्रेस पार्टी का दामन थम लिया.

साल 1969. कांग्रेस में ओल्ड गार्ड और इंदिरा गांधी के बीच संघर्ष चल रहा था.और इसी साल खड़गे ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. उस समय खड़गे की उम्र महज 27साल थी. खड़गे ने जीवन में पहली बार चुनाव कॉलेज में ही लड़ा था.   

तब उन्हें छात्रसंघ का महासचिव चुना गया था.तब देवराज उर्स का उन्हें सपोर्ट मिला, कर्नाटक के तब के वो बड़े नेता थे.  देवराज ने खड़गे को पहली बार विधानसभा का टिकट दिलवाया. 1972में खड़गे राज्य की गुरमितकल सीट से पहली बार विधायक चुने गए. ये तब मल्लिकार्जुन खड़गे की राजनीतिक करियर की महज शुरूआत थी. 1972के बाद खड़गे लगातार 9बार इसी सीट से विधायक चुनकर आते गए.

वह 40साल तक विधायक और 5साल सांसद रहे. उन्होंने लगातार 10 बार अभूतपूर्व तरीके से विधानसभा चुनाव जीते (1972, 1978, 1983, 1985, 1989, 1994, 1999, 2004, 2008, 2009)

वह 16फरवरी, 2021से कर्नाटक से राज्यसभा सांसद हैं.वह 16फरवरी 2021से 01अक्टूबर 2022तक राज्यसभा के विपक्ष के नेता थे. इससे पहले 2009 से 2019 तक वह कर्नाटक की गुलबर्गा सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे.

वह 2008 के कर्नाटक राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे.मल्लिकार्जुन खड़गे 2014के बाद से लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता थे.

ऐसा नहीं है कि मल्लिकार्जुन खड़गे राजनीति में आने के बाद समाज कल्याण और कमजोर लोगों के लिए लड़ना भूल गए हो. जैसे ये जज्बा उनके खून में ही था.

यही वजह है कि साल 1972 का चुनाव लड़ने के बाद उन्हें साल 1973 में उन्हें चुंगी उन्मूलन समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. ये समिति कर्नाटक राज्य में नगरपालिका और नागरिक निकायों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से बनाई गई थी. इसकी रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन देवराज उर्स सरकार ने कई बिंदुओं पर चुंगी की लेवी को खत्म कर दिया. 

12 साल पहले बतौर उनके खेल टीचर वे पढ़ाई में औसत रहने वाले स्कूल टीम के स्टार थे. वो फुटबॉल, हॉकी और कबड्डी बेहतरीन खेलते थे. वो जिला और डिवीजन लेवल पर स्कूल का प्रतिनिधित्व भी करते थे. इतने लंबे और शानदार राजनीतिक करियर वाले खड़गे हमेशा विनम्र बने रहे हैं.