ममानी महोत्सव: माइनस 20 डिग्री ठंड में लद्दाखियों ने ममानी व्यंजनों का लुत्फ उठाया

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 22-01-2021
पकवानों का आदान-प्रदान कर ममानी परंपरा निभाते हुए मुस्लिम महिलाएं
पकवानों का आदान-प्रदान कर ममानी परंपरा निभाते हुए मुस्लिम महिलाएं

 

 

  • लद्दाख में पारंपरिक ममानी फेस्टिवल आयोजित
  • महोत्सव में 35 पारंपरिक लजीज व्यंजन परोसे गए
  • बौद्ध धर्म से भी पुरानी है ममानी परंपरा
  • एक मुस्लिम व्यक्ति ने इस परंपरा को महोत्सव का आकार दिया

 

शोतोपा / कारगिल

जब देश में लोग पांच-सात डिग्री तापमान के मौसम में गजक, मूंगफली और रेवड़ी आदि तिलहन आधारित भोज्य पदार्थों का सेवन कर रहे होते हैं, तो लद्दाख की उत्सवधर्मिता भी देश के सुर में सुर मिलाने को आतुर हो जाती है. लद्दाखियों का उत्साह पारंपरिक ममानी खाद्य महोत्सव में देखते ही बनता है, जहां लद्दाखी माइनस 20-30 डिग्री की हाड़-कंपाती ठंड के बीच व्यंजनों का जायका लेने उमड़ पड़े.

कारगिल में हिमालयन कल्चरल हेरिटेज फाउंडेशन ने वालंटरी एजुकेशन एंड यूटिलाईजेशन सोसायटी के सहयोग से वार्षिक ममानी महोत्सव आयोजित किया. यह महोत्सव इसलिए भी खास बन गया, क्योंकि इस बार इसे के खारदुन चिकतां और प्रसिद्ध राजी खार में आयोजित किया गया.

इस महोत्सव में चिकतां के पार्षद मोहसिन अली मुख्य अतिथि और प्रसिद्ध स्कॉलर, कवि व प्रकृति प्रेमी बशीर अहमद वफा विशिष्ट अतिथि थे.

ये थे लजीज व्यंजन

लद्दाख की समृद्ध परंपराओं में ममानी फेस्टिवल सर्दियों के जाने और वसंत के आगमन की खुशी में आयोजित किया जाता है. यह एक तरह से खाद्य महोत्सव होता है, जिसमें मुस्लिम और बौद्ध समुदाय के लोगों ने भाग लेकर अपनी रली-मिली संस्कृति और भाईचारे का परिचय दिया. इस बार के महोत्सव में भांति-भांति के 35 पारंपरिक लजीज व्यंजन परोसे गए. इनमें ठुगपा, पोपोट (अनाज का सूप), हर्त्सरेप खुर (खमीर की रोटी), मरखोर आजुक (पूरी), पोली, दही, सुग्गो शामिल रहे.

ममानी का धार्मिक महत्व

लद्दाख का ममानी महोत्सव बौद्ध धर्म के प्रसार से भी पहले का है. तब लोग ल्हा नाम की विभिन्न शक्तियों की पूजा करते थे। ममानी के दौरान हर घर में एक या उससे ज्यादा व्यंजन तैयार किए गए और उन्हें ल्हा के नाम पर परोसा गया. उन्होंने इन व्यंजनों का अपने स्वजनों के बीच आदान-प्रदान किया और पुरखों का आदर भी किया.

ममानी महोत्सव में बौद्ध महिलाओं ने पारंपरिक व्यंजन बनाकर स्टॉल पर सजाए।

ममानी महोत्सव में बौद्ध महिलाओं ने पारंपरिक व्यंजन बनाकर स्टॉल पर सजाए.


कालांतर से इस महोत्सव में काफी परिवर्तन हुए हैं. इस महोत्सव में बौद्धों और मुस्लिमों के विभिन्न समुदायों के लोग कल्याण और सेवा के विभिन्न कार्य करते हैं. अपने पुरखों के लिए विशेष प्रार्थनाएं आयोजित करते हैं और इस महोत्सव के लिए विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ बनाते हैं.

अनायत अली शोतोपा ने की पहल

पिछले कुछ दशकों में ममानी महोत्सव फीका पड़ने लगा था. हालांकि कई समुदायों ने इसे मनाना जारी भी रखा हुआ था। 2016 में कारगिल के सांस्कृतिक एक्टिविस्ट और ऑल इंडिया रेडियो के संवाददाता अनायत अली शोतोपा ने इस पारंपरिक महोत्सव को फिर से कारगिल में बड़े पैमाने पर मनाने के लिए अपने कई रिश्तेदारों और मित्रों को इकट्ठा किया और इसे आयोजित किया.

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एक मुस्लिम महिला ममानी महोत्सव में पारंपरिक व्यंजन दिखाती हुई. 


इस महोत्सव का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महत्व यह है कि इसमें कई समुदायों के लोग इकट्ठे होते हैं और अपनी संस्कृति और विरासत को साझा ढंग से मनाते हैं और विभिन्न समुदायों के बीच संबंधों की हरारत देखने को मिलती है. जब वे एकसाथ निर्दोष हंसी से खिलखिलाते हुए एक-दूसरे के व्यंजनों का सुरुचिपूर्ण ढंग से आनंद लेते हैं.

यह महोत्सव लद्दाख के मुस्लिम और बौद्ध समुदायों के बीच संबंधों और सांप्रदायिक सौहार्द का पुल है. इससे सार्वजनिक जीवन के आम दिनों में भी भाईचारा महसूस किया जा सकता है. इसलिए हिमालयन कल्चरल हेरिटेज फाउंडेशन ने 2018 में इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए अनायत अली शोतोपा को साथ लेकर विभिन्न स्थानों पर यह महोत्सव आयोजित करने का निर्णय किया था. तब से इस महोत्सव के जरिए लोगों को जोड़ने का प्रयास लगातार जारी है.

तीन गांव हुए पुरस्कृत

इस महोत्सव में स्वाद, प्रस्तुतिकरण और वैरायटी के आधार पर व्यंजनों को पुरस्कृत भी किया जाता है. इस बार, कुकशो गांव ने प्रथम पुरस्कार जीता, तो खारदुम ने दूसरा और चिकतां-लुंगबा ने तीसरा पुरस्कार जीता. उन्हें प्रशंसा पत्र के साथ क्रमशः पांच हजार, तीन हजार और दो हजार रुपए का नकद पुरस्कार भी दिया गया.

ये थी ज्यूरी

इन व्यंजनों को पुरस्कृत करने लिए कोलकाता के अबीर गुप्ता, लेह के गुलजार और बशीर अहमद वफा ने निर्णय किया. जबकि अबरार, स्कॉलर अली वजीर, इफ्तिकार और फिरोज ने इस कार्यक्रम का डॉक्यूमेंटशन किए. समारोह में हगनीस के सरपंच हाजी अब्दुल हुसैन और शकर-चिकतां ब्लॉक के पंच, सरपंचों और नंबरदारों ने भाग लिया.

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एक मुस्लिम परिवार ने ममानी महोत्सव में पारंपरिक व्यंजन बनाकर स्टॉल पर सजाए.


मोहसिन अली ने अपने भाषण में अनायत अली शोतोपा और हिमालयन कल्चरण हेरिटेज फाउंडेशन का यह महोत्सव आयोजित करने के लिए आभार जताया। मोहसिन अली ने कहा, "इस तरह के महोत्सव लोगों और पुश्तैनी विरासत को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं."

सपना सच हुआ

अनायत अली शोतोपा ने ममानी महोत्सव शुरू करने की अपने कोशिशों की यादें ताजा करते हुए उम्मीद जताई कि यह महोत्सव एक दिन लद्दाख क्षेत्र के हर जिले में मनाया जाएगा. उन्होंने कहा कि इस साल उनका सपना सच हो गया कि जब लद्दाख प्रशासन ने ममाना महोत्सव को अपने वार्षिक कैलेंडर में शामिल कर लिया.