खूबसूरत कश्मीरी शॉल से अपनी सर्दियों को बनाएं और भी ज्यादा स्टाइलिश

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 18-11-2022
खूबसूरत कश्मीरी शॉल से अपनी सर्दियों को बनाएं और भी ज्यादा स्टाइलिश
खूबसूरत कश्मीरी शॉल से अपनी सर्दियों को बनाएं और भी ज्यादा स्टाइलिश

 

ओनिका माहेश्वरी/नई दिल्ली 
 
सर्दियां आते ही कबर्ड में रखे शॉल और स्वेटर बाहर निकल आते हैं. यंगस्टर्स में शॉल स्टाइल स्टेटमेंट भी है. डिजाइनर शॉल आपको एक क्लासी लुक दे सकता है. जब शॉल का जिक्र आया है तो कश्मीरी शॉल्स की लोकप्रियता जगजाहिर है.

कश्मीर भारत का वह राज्य है जहां से प्राचीन समय में अन्य देशों तक जाने के लिये मार्ग आसानी से मिल जाता था. कश्मीर घाटी की एक सदियों पुरानी कला को कश्मीर शॉलों में देखा जा सकता है. 
 
आवाज द वॉयस के माध्यम से कश्मीर के अनंतनाग में शॉल का व्यापार करने वाले शाहिद उर्फ़ साहिल से कश्मीरी शॉल्स पर विस्तृत जानकारी ली गई. साहिल कश्मीरी के नाम से पुरे कश्मीर में वे जाने जाते हैं. जिन्होनें बताया कि सभी कश्मीरी शॉल्स कश्मीर में हाथ से ही बनाई जाती हैं.
 
शाहिद ने बताया कि वैसे तो शॉल हाथ और मशीन दोनों से बनाई जाती है, लेकिन बेहतर हाथों से बनी शॉल होती है. तकनीक से बनने वाले शॉल में दो से तीन साल तक का समय भी लगता है.
 
इसका पूरा डिजाइन पहले तैयार करना पड़ता है, फिर उसे सूई धागे से बनाया जाता है. एक शॉल में कम-से-कम तीन बकरों के ऊन का इस्तेमाल होता है और हर बकरे से लगभग 80 ग्राम अच्छी ऊन मिल जाती है. 
 
 
एक बड़ी शाल को बनाने के लिए 3 बकरों से निकाली गई ऊन का इस्तेमाल किया जाता है. एक बकरे से लगभग 80 से 170 ग्राम तक ऊन प्राप्त होती है.
 
शाहिद ने बताया कि इनका मिनिमम रेट 5000 रुपए है जिनका वजन बाकी आम शॉलों के मुकाबले काफी हल्का होता है क्यूंकी कश्मीरी शॉल में ऊन और रुई का मिश्रण एक बैलेंस्ड मात्रा में किया जाता है. जिससे उनकी गर्माहट होती है.
 
शाहिद ने बताया कि 200 CM प्लस लॉन्ग x 30 CM प्लस चौड़ा, वज़न: 325-335 Grm. 100% प्योर पश्मीना शॉल कारीगरी के शानदार उदाहरण के साथ कला का अद्भुत पीस कश्मीर से आता है और इसके डिज़ाइन के माध्यम से कश्मीर की सुंदरता को प्रदर्शित करता है. 
 
 
शाहिद अपनी मां के 27-28 साल पुराने कश्मीरी शॉल के कारोबार को 9 वर्षों से चला रहें हैं. उन्होनें बताया कि उनकी मां यासमीना शादी से पूर्व से ही इन सुन्दर कश्मीरी शॉल का कारोबार  करती थीं.
 
शाहिद ने बताया कि वे फरीदाबाद के अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेला, कश्मीरी मेला में भी अपनी शॉलों का प्रदर्शन कर चुके हैं. उनकी शॉलों को लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है और वे खुद इनकी सप्लाई करने पटना, झारखण्ड भी जा चुके हैं. इनकी शॉल्स को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से भी लोग खरीदते हैं.
 
 
 
कितनी प्रकार की होती है कश्मीरी शॉल्स:

कश्मीर शॉल
 
 ये शॉल अत्यंत गर्म और मुलायम होती हैं. इन्हें विशेष रूप से पश्मीना बकरियों के ऊन से बनाया जाता है. ये शॉल दो प्रकार की होती हैं: कानी कर शॉल तथा कढ़ाई वाले शॉल.
 
 
पश्मीना शॉल 
 
कश्मीरी पश्मीना शाल व्यक्ति के लिए रॉयल्टी की निशानी होती है. असली पशमीना शाल छूने पर बेहद मुलायम और वजन में हल्की लगती है. पश्मीना का एक धागा सिर्फ14 से 19 माइक्रोन्स का होता है, यानि मनुष्य के बाल से भी छह गुना पतला. 
 
 
'कनी' शाल
 
इस शाल में डिजाइन फूल पत्ती वगैरह बुनाई के साथ ही बनाये जाते हैं. इस शाल को GI (Geographical Indication) tag मिला हुआ है. इस शाल के स्पेसिमिन लंदन और न्यूयॉर्क के म्यूजियम में रखे हुए हैं. इसको बुनने में मेहनत बहुत है. प्योर कनी शॉल 10,000 से कम नहीं मिल सकती.
 
 
सोजनी शाल 
 
सोजनी शाल एम्ब्रॉयडर्ड होते हैं. पहले सादा प्लेन पश्मीना शाल बुना जाता है. फिर कारीगर लोग उस पर एम्ब्रॉयडरी करते हैं. यह थोड़े सस्ते होते हैं. ₹25 से 45 हजार तक मिल जाते हैं. बिलकुल प्लेन बिना किसी एम्ब्रॉयडरी के चाहिए तो वो भी 20 हजार तक मिल जाते हैं.  
 
 
दुशाला
 
दुशाला का अर्थ ही दो शॉल है. इसे दो शॉलों को जोड़ कर बनाया जाता है. अकबर हमेशा इसे दो परत कर के पहना करते थे ताकि उसके अंदर की सतह ना दिखाई दे.
 
इसी के चलते दुशाला का जन्म हुआ. सम्राट अकबर कश्मीर के शॉल के एक बड़े प्रशंसक थे. उस समय के दौरान शॉल सोने, चांदी के धागे से किनारों पर डिज़ाइन बना कर बनाई जाती थी.
 
 
 
टिल्ला शॉल
 
टिल्ला कढ़ाई अपने शाही लुक के लिए जानी जाती है. ये शॉल शुद्ध कश्मीरी ऊन का उपयोग करके बनाए जाते हैं और शुरुआत में कढ़ाई के लिए सोने और चांदी के धागों का उपयोग किया जाता था.
 
 
नमदा और गब्बा शॉल
 
गब्बा शॉल की मूल सामग्री सादे रंग में रंगा हुआ ‘मिल्ड कंबल’ है. इसे ऊनी या सूती धागे के साथ कढ़ाई और डिज़ाइन किया जाता है. इनका रंग चटक होता है तथा इन्हें ज़्यादातर दीवान आदि के कवर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
 
 
बुनाई द्वारा निर्मित शॉल
 
यह एक त्रिकोणीय बुनाई द्वारा निर्मित शॉल है जो आमतौर पर गर्दन से बुनी हुई होती है. प्रत्येक शॉल में दो त्रिभुज साइड पैनल होते हैं, और पीछे से ये समलंब आकार की होती हैं.