नाना के घर के लिए ‘मुसाफिर’ थे किशोर कुमार

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
किशोर कुमार के बारे में जानकारी देते हुए रत्ना मुखर्जी
किशोर कुमार के बारे में जानकारी देते हुए रत्ना मुखर्जी

 

आर रंजन / भगलपुर ( बिहार )
 
वर्ष 1987 के अक्टूबर में किशोर कुमार ने भारतीय सुगम संगीत की दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन उनके यादगार नग्में आज भी युवा दिलों की धड़कनों को बढ़ा देती हैं.

किशोर कुमार का गाना मुसाफिर हूं यारों...न घर है न ठिकाना. वाकई कहने को गाना है मगर भागलपुर शहर के लिए वे वास्तव में मुसाफिर ही थे. कभी-कभार भागलपुर आने पर अपने नाना सतीषचंद्र बनर्जी के राजवाटी स्थित मकान को गुलजार कर दिया करते थे.
 
 बेशक आज के युवाओं को उनकी यादों की फेहरिस्त का पता न हो, मगर एक जमाना था जब किशोर कुमार की तरोताजगी उनके गानों की तरह भागलपुर की गलियों में भी बसती थी. 
 
यूं तो उनका ठिकाना खंडावा था, लेकिन नाना घर भागलपुर में था. जी हां ...! यहां बात हो रही है तबके आभास कुमार गांगुली की, जो बाद में भारतीय सिनेमा के मशहूर गायक किशोर कुमार कहलाए. 
 
किशोर कुमार के नाना का घर भागलपुर के आदमपुर मुहल्ले में राजबाटी के नाम से चर्चित था. अंग्रेजों ने शिवचंद्र बनर्जी को राजा की उपाधि दी थी जिनके सुपुत्र थे किशोर कुमार के नामा सतीशचंद्र बनर्जी. उनके दो लड़के और दो लड़कियां थे. बड़ी लड़की गौरी और दूसरी वीणा थी. 
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गौरी देवी को तीन लड़के अशोक कुमार, किशोर कुमार, अनूप कुमार और एक लड़की सती रानी थी. उनकी दूसरी लड़की वीणा देवी को एक लड़का अरुण कुमार मुखर्जी, जो संगीतज्ञ थे और जिनकी छोटी लड़की रत्ना मुखर्जी हैं. 
 
 
रत्ना मुखर्जी भागलपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष रहीं हैं. सेवानिवृत होने के बाद  बिहारी-बंगाली समाज की अध्यक्ष हैं. 
 
रत्नी मुखर्जी की जुबानी

रत्ना मुखर्जी बताती  हैं कि जब वह पांच साल की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया. उसके बाद वह अपनी मां के साथ खंडवा अपनी मौसी के घर रहने के लिए चली गईं.
 
पिताजी के गुजरने के बाद अशोक कुमार जो पूरे परिवार में एक संत पुरूष के सामान थे, उनके सानिध्य में रहने के लिए रत्ना की मां अपने दो बेटियों को लेकर चली गईं.
 
1955-60 तक मुंबई में अशोक कुमार के पास रहने के बाद भागलपुर चली आईं. रत्ना बताती है कि अशोक कुमार और उनकी पत्नी बहुत अच्छी थे, जबकि किशोर कुमार बहुत बिंदास किस्म के इंसान थे. काफी मूडी भी थे. उनका मन जो कहता था, वही करते थे.
 
मूडी और पान के शौकीन

रत्ना बताती हंै कि एकबार हमलोग मुंबई में कार में सवार होकर अपने घर की ओर लौट रहे थे कि रास्ते में ट्रैफिक सिग्नल के समीप एक व्यक्ति खोमचे में सामान बेच रहा था.
 
तभी किशोर कुमार ने अपने चालक से पूछा कि उसमें क्या है ? उसने बताया कि मसूर दाल का कोई आइटम बेच रहा है. तभी किशोर कुमार को कुछ याद आया और चिल्लाकर बोले, अरे, मुझे मैसूर जाना है और उन्होंने तुरंत चालक को आदेश दिया कि एयरपोर्ट ले चलो, और वे मैसूर चले गए.
 
रत्ना बताती हैं कि किशोर कुमार संगीत की धुन में इतना रम जाते थे कि उनके मन-मिजाज में संगीत का नशा रहता था. लेकिन उन्हें पीने-खाने की आदत नहीं थी. दारू-शारू कुछ भी नहीं लेते थे. उन्हें पान का पत्ता चबाने की आदत थी. मगर पार्टी-शार्टी में जाना, लोगों से मिलना-जुलना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था. आज उनकी यादें शेष हैं.
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अमित की गायकी में वह बात नहीं

वह बताती हैं, 2012 में किशोर दा का लड़का अमित कुमार भागलपुर आया था. सबसे उनकी मुलाकात हुई, लेकिन गाने के सुर में किशोर कुमार जैसी बात नहीं साबित हुइ.
 
पहले हमलोग गर्मियों की छुट्टी में मुंबई जाते थे तो सभी एक दूसरे से मिलते थे. संगीत और साहित्य पर खूब बातें होती थीं. घर का माहौल संगीतमय था. फिल्म निर्देशक विमल राय, जय मुखर्जी, काजल की मां का परिवार का वहां मिलना होता था.
 
1987 में किशोर दा गुजर गए. दो साल पहले उनकी पहली पत्नी भी गुजर गइं. अभी किशोर कुमार की चैथी पत्नी लीना  हैं.
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इधर, भागलपुर में किशोर दा के नाना घर के नाम पर केवल स्मृतियां बची रह गई हैं. मामा षानू और सील के बीच संपत्ति का बंटवारा होने के बाद वे लोग यहां अपनी जमीन बेचकर कोलकाता जा चुके हैं.

अब यहां ऐसी कोई बात नहीं रह गई है. भागलपुर में बंगाली समाज भी सिकुड़ गया है. किशोर दा के रिश्तेदार के नाम पर अभी मैं यहां रहती हूं. मैंने शादी नहीं की, लेकिन मेरे कई बच्चे हैं जिनके बीच रहकर अपना बाकी जीवन बिता रही हूं.

किशोर कुमार का वह गाना भागलपुर के लोगों के लिए बहुत मायने रखता है कि चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा न कहना...!