चेन्नई / श्रेष्ठा तिवारी
“उनके साथ मेरी पहली अनौपचारिक मुलाकात विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र की यात्रा के दौरान त्रिवेंद्रम (1989) में हुई थी. यह वो समय था, जब एएसएलवी विफल हो गया था. मैंने उस समय ‘वनथाई अल्लापोम (आकाश को मापें)’ नामक एक पुस्तक लिखी थी और उसकी एक प्रति उन्हें भेजी थी.
इस यात्रा के दौरान उन्होंने पुस्तक को याद किया और चाय के समय के दौरान इसके बारे में पूछताछ की. ऐसा हुआ कि मुथैह नाम का एक और व्यक्ति था, जिसे डॉ कलाम ने मुझे समझ लिया और पुस्तक की सराहना करने लगे.
बाद में उन्हें पता चला कि मैंने ही किताब लिखी है और जब मैं उनसे मिला, तो उन्होंने मेरी सराहना की.” यह कहना है पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के साथ लगभग 40 वर्षों तक काम करने वाले वैज्ञानिक नेल्लई एस मुथु का.
- नेल्लई एस मुथु ने 1963 से 1980 के बीच डॉ कलाम के साथ काम किया. जब डॉ कलाम एक परियोजना निदेशक के रूप में इसरो में थे, तब मुथु 1973 में मदुरै विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद एक वैज्ञानिक के रूप में शामिल हुए.
-उनके संपर्क में बने रहे और कई मौकों पर मिले, जब डॉ कलाम डीआरडीओ में चले गए.
- विज्ञान पर कई किताबें लिखी हैं और उनका अनुवाद किया है और विशेष रूप से कलाम पर 4 किताबें लिखी हैं.
-मुथु तमिल में ‘इंडिया 2020 विजन’ पुस्तक का अनुवाद करने वाले पहले व्यक्ति थे और डॉ कलाम पर भारतीय भाषा में जीवनी लिखने वाले पहले व्यक्ति होने के लिए खुद को सम्मानित मानते हैं.
-एपीजे अब्दुल कलाम फाउंडेशन के सलाहकार बोर्ड के सदस्यों में से एक हैं.
नेल्लई एस मुथु बताते हैं, “इसी पुस्तक के लिए मुझे दिवंगत तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि (कलाईनार) से सम्मानित किया गया. अब तक लगभग 160 पुस्तकों का लेखन / अनुवाद किया है, जिनमें से सर्वश्रेष्ठ अनुवादक के रूप में लगभग 5-6 पुस्तकों के लिए तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री पुरस्कार प्राप्त हुए हैं.
अब्दुल कलाम के साथ बिताए अपने पलों को याद करते हुए वे कहते हैं, “1997-2008 के बीच जब भी वे श्रीहरिकोटा गए, ज्यादातर मौकों पर उनसे मुलाकात हुई. उनके चेन्नई दौरे के दौरान भी, अन्ना यूनिवर्सिटी में मैं उनसे कई मौकों पर मिला हूं. श्रीहरिकोटा में ऐसी ही एक यात्रा के दौरान, मुझे याद है कि मैंने उनसे पूछा था, ‘कई लोगों ने आप पर आत्मकथाएं / जीवनी लिखी हैं, लेकिन आप पर एक लिखना मेरा निजी सपना है.’ जिसके लिए उन्होंने कहा ‘आपको पूरी आजादी है ..’ किताब को बाद में अरुवियल अरैग्नर अब्दुल कलाम (वैज्ञानिक विद्वान अब्दुल कलाम) के रूप में प्रकाशित किया गया था.”
नेल्लई एस.मुथु द्वारा बच्चों के लिए ‘इंडिया 2020’ का मिल अनुवाद
उन्होंने बताया कि 2002 में, ‘इंडिया 2020 विजन’ की पुस्तक लॉन्च से पहले, मुझे इसका अनुवाद करने का अवसर मिलने से पहले बहुत कुछ इसके पीछे चला गया. आधिकारिक तौर पर, उनकी सभी किताबें और अनुवाद एक निश्चित निजी प्रकाशन गृह द्वारा किए गए थे.
लेकिन उन्होंने कभी भी ‘इंडिया 2020’ किसी को नहीं दी, क्योंकि यह अनुवाद करने के लिए प्रकृति में बहुत तकनीकी था और उन्हें पेशेवर अनुवादकों द्वारा इसका अनुवाद करने में संदेह था, जिसका उन्होंने विशेष रूप से तत्कालीन प्रकाशक न्यू सेंचुरी बुक हाउस से उल्लेख किया था, जिन्होंने डॉ कलाम से संपर्क करने के लिए संपर्क किया था.
कलाम ने इस पुस्तक का अनुवाद करने के लिए मेरा नाम सुझाया. वह चाहते थे कि एक विषय विशेषज्ञ इसका अनुवाद करे. बाद में पब्लिशिंग हाउस को पता चला कि डॉ कलाम और मेरे बीच साझा उदाहरणों का इतिहास था और उसी कारण से मेरे द्वारा इसका अनुवाद करने की मंजूरी दी गई.
एक ही मंच पर नटराजन, तत्कालीन एनसीईआरटी निदेशक, वाईएस राजन, ई सुंदरमूर्ति, तमिल विश्वविद्यालय के कुलपति जैसे कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति के दौरान उनके द्वारा 1 जून 2002 को चेन्नई में पुस्तक का विमोचन किया गया.
मुथु याद करते हैं, “मुझे याद है कि मैंने माइक पर ये शब्द कहे थे ‘पहली बार देश के एक वैज्ञानिक के हाथों में सौंपते हैं’ जिसके लिए डॉ कलाम ने मुझे उसी मंच पर चुप कराया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, क्योंकि मैं पहले ही बोल चुका था. यह कहते हुए,
मैंने कलाम के साथ एक तमिल शब्द नाटक ‘ओप्पडाइकलम’ (आइए घोषणा करें) का इस्तेमाल किया, जिसे बहुत सराहना मिली और बाद में डॉ कलाम ने उसी मंच पर अपने भाषण में सराहना की. उन्होंने अपने अनुवाद द्वारा पुस्तक को उसी तरंग दैर्घ्य और विचारों के कारण जीवन दिया है, जो वह मेरे साथ साझा करते हैं.”
मुथु ने कहा कि पहले अग्नि प्रक्षेपण के दौरान, मैंने एक लेख लिखा था, जो कवि भारतीयर के तीन-पंक्ति वाले तमिल श्लोक से शुरू हुआ था- ‘मेरे पास एक छोटी सी आग है, लेकिन पूरी बात यह नहीं है कि आग छोटी है या बड़ी, आग आग है.’ लेख की इन शुरुआती पंक्तियों ने डॉ कलाम को प्रभावित किया और उन्होंने सिर्फ एक शब्द ‘शाबाश’ कहा.
उन्हें भारतीय कवि और उनकी कविताओं का बहुत शौक था. इसके बाद उन्होंने मुझे एक हस्तलिखित हस्ताक्षरित पत्र (स्याही से) भी भेजा, जिसमें मेरे लेख में दो व्याकरण संबंधी गलतियों की ओर इशारा किया गया और लेख के लिए मेरी सराहना की गई.
कलाम से अपनी आखिरी मुलाकात के बारे में मुथु बताते हैं कि 2004 में, अपनी बेटी की शादी से ठीक दो हफ्ते पहले, मैं अपनी बेटी और दामाद को उनका आशीर्वाद लेने के लिए गवर्नर हाउस, चेन्नई ले गया था. मेरी उनसे आखिरी मुलाकात 2013 में दिल्ली में हुई थी.
यह उपवास का पवित्र महीना रमजान उस वर्ष जुलाई के दौरान था. मुझे दिल्ली तमिल संगम द्वारा आमंत्रित किया गया था, जहां मुझे वैज्ञानिक तमिल साहित्य कार्यों पर एक कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया था.
बाद में उस शाम को जब उन्हें पता चला कि मैं दिल्ली में हूं, तो उन्होंने मुझे राजाजी मार्ग पर आमंत्रित किया, जहां मैं उनके साथ शाम की सैर पर गया और मुझे याद है कि वह उस महीने भी उपवास कर रहे थे. 2015 में जब उनका निधन हुआ, मैं बैंगलोर में था और उनका अंतिम संस्कार करने के लिए दिल्ली के लिए उड़ान भरी थी.
मुथु कहते हैं, “उनके पास हास्य की एक बड़ी समझ थी और कई मौकों पर वह खुद को हंसे बिना व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते थे. यहां तक कि सार्वजनिक सभाओं / भाषणों में भी उन्होंने चौंकाने वाली टिप्पणियों को क्रैक करने का मौका लिया.
ऐसी ही एक घटना थी, जब श्रीहरिकोटा के एक तकनीकी अधिकारी ने उनसे एक जनसभा में पूछा था कि ‘भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, तो आप कैसे मानते हैं कि 2020 तक भारत एक विकसित राष्ट्र होगा?’ इसके लिए डॉ कलाम की तत्काल प्रतिक्रिया ने सभी को स्तब्ध कर दिया था कि ‘मैं ऐसे विषयों पर बहुत निर्दोष हूं.’ हालांकि बाद में उन्होंने महिला शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर देते हुए अपनी बात समाप्त की.
इसरो में सवाल करने की संस्कृति को याद करते हुए मुथु बताते हैं कि एक चीज और है, जिससे मैं व्यक्तिगत रूप से उनसे प्रेरित हूं, वह थी वह महत्व, जो उन्होंने उन लोगों को दिया, जिन्होंने उनसे सवाल पूछे. उस समय इसरो में यही संस्कृति थी, जो ‘हमेशा सवाल पूछने’ पर जोर देती थी.
वह उन लोगों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे, जो हमेशा आँख बंद करके उनसे सहमत होते थे, बस उन्हें खुश करने के लिए. इसके बजाय वह व्यक्तिगत रूप से उन लोगों को बुलाते और चर्चा करते थे, जिन्होंने गलतियों को इंगित किया या किसी भी परियोजना पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दी, जिस पर उन्होंने काम किया.
हाईस्कूल के महत्व के बारे में वे बताते हैं कि मैं आज कलाम को अपने गुरुओं में से एक मानता हूं और छात्रों के बीच विज्ञान को लोकप्रिय बनाना उनका उपहार था. उनका हमेशा से मानना था कि छात्रों के जीवन में हाई स्कूल के वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं, जहां वे अपने लिए निर्णय लेते हैं. इससे पहले, वे हमेशा शिक्षकों / माता-पिता पर निर्भर रहते हैं.
डॉ कलाम के अनुसार इन वर्षों के दौरान हाईस्कूल महत्वपूर्ण है. उन्होंने मुझे हमेशा स्कूली छात्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा. जिसके चलते अब तक मैं लगभग 600-700 स्कूलों के छात्रों के साथ उनके विचार साझा कर चुका हूं.
वे याद करते हैं कि कलाम को वीणा बजाना भी बहुत पसंद था और उन्हें संगीत का भी शौक था.