रत्ना शुक्ला/ नई दिल्ली
मुस्लिम और हिंदुओं का एक-दूसरे के धर्म स्थलों पर जाना भारत में आम है. लेकिन एक परिवार का एक ही समय पर दोनों मज़हबों के देवताओं को एक साथ पूजना और पूरे धार्मिक अनुष्ठानों को विधिवत तरीके से निभाना जबलपुर के दादा दरबार की खासियत है.
कहां है दादा दरबार
मध्य प्रदेश के शहर जबलपुर की यह ऐसी संस्कृतिक धरोहर है, जो आज के दौर में एक मिसाल है. यहां के गढ़ा शाही नाका क्षेत्र में रहता है कोस्टा परिवार, जहां नवरात्र और मुहर्रम साथ-साथ मनाए जाते हैं. लगभग 100 साल से चली आ रही इस परम्परा को इस परिवार ने ही नहीं, पूरे शहर ने आत्मसात किया है. कोस्टा परिवार के घर में स्थित देवालय में एक तरफ माँ दुर्गा विराजमान हैं तो दूसरी तरफ इमाम हुसैन और अजमेर वाले ख्वाजा गरीबनवाज़ का चिल्ला.
दादा दरबार का इतिहास
दादा दरबार के संरक्षक हीरालाल कोस्टा बताते है कि उनके पूर्वजों को इमाम साहिब ने स्वप्न के माध्यम से संदेश दिया कि वह आना चाहते हैं जिसके बाद से यह सिलसिला चल निकला. हीरालाल कोस्टा का दावा है कि हर पीढ़ी में परिवार के किसी एक सदस्य पर वह प्रकट होते हैं और उसी सदस्य पर माँ काली भी प्रकट होती है यानी एक ही व्यक्ति को मुख्य तौर पर दोनों स्थानो के अनुष्ठान पूरे करने होते हैं.
भारत की समन्वित संस्कृति के होते हैं दर्शन
हर साल मुहर्रम आते ही कोस्टा परिवार ताजिए बनाता है, जिसके बाद सवारी निकाली जाती है और सभी परंपरागत चीजों को निभाया जाता है. इस दौरान जुलूस में सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं.
नवरात्र के समय कोस्टा परिवार की तरफ से महाकाली की प्रतिमा की स्थापना की जाती है इस मौक़े पर मुस्लिम समुदाय के साथी पूरा सहयोग करते हैं. भंडारा प्रसाद वितरण से लेकर विसर्जन जुलूस में भी उनका पूरा योगदान होता है. कभी-कभी ऐसा मौका भी आता है जब दोनों त्योहार साथ-साथ आते हैं. ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है.
दादा दरबार के नाम से मशहूर इस जगह पर लोग मन्नत मांगने आते हैं और अर्जी लगाते हैं. मान्यता है कि एक बार जो यहां पहुंच जाता है उसकी पुकार जरूर सुनी जाती है.
अनूठी धार्मिक पद्धति से होती है पूजा और आह्वान
हीरालाल कोस्टा बताते हैं कि मुहर्रम के दौरान सबसे पहले हनुमान जी, काल भैरव और कुलदेवी का आह्वान किया जाता है. इसके बाद इमाम हुसैन साहिब और अजमेर वाले ख्वाजा गरीबनवाज़ का आह्वान किया जाता है. हीरालाल कोस्टा कहते हैं यह बात ही अपने आप सब कुछ कह देती है.
दादा दरबार का संदेश
संस्कारधानी जबलपुर का कोस्टा परिवार मानता है कि यह मालिक यानी ऊपरवाले का ही इशारा है कि वह एक है, बस उस तक पहुंचने के रास्ते अलग-अलग हैं. समय-समय पर वह सर्वोच्च सत्ता यह संदेश अलग-अलग तरीके से देना चाहती है और उनका परिवार भी एक माध्यम है ऊपरवाले का यह संदेश लोगों तक पहुंचाने के लिए.
इमाम हुसैन को हमेशा इन्साफ़, बराबरी और भाईचारे के लिए याद किया जाता है और उनके यही उसूल सभी सम्प्रदाय के लोगों में उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास जागते हैं. आपसी प्रेम और विश्वास की यह भावनाएं साल दर साल दादा दरबार के साथ और मजबूत हो रही हैं.