जश्न-ए-हिंदुस्तानः कहां बनता है देश का प्यारा तिरंगा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 14-08-2021
कैसे बनता है तिरंगा ( सभी फोटोः प्रतिभा रमन)
कैसे बनता है तिरंगा ( सभी फोटोः प्रतिभा रमन)

 

आवाज विशेष । जश्न-ए-हिंदुस्तान    

मंजीत ठाकुर/ प्रतिभा रमन

आजादी का दिन आते ही हर तरफ तिरंगे दिखने लगते हैं. हिंदुस्तान ही नहीं, बाहर के देशों में भी मौजूद जहां-जहां हिंदुस्तानी मौजूद हैं, वहां तिरंगा दिलों में रोमांच पैदा करने के लिए लहराता है.

सबकी निगाहें टिकी होती हैं, जब प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से तिरंगा लहराते हैं. फिर सभी मंत्रालयों, सरकारी भवनों पर भी राष्ट्रीय ध्वज लहराता है. लेकिन आपने कभी जानने की कोशिश की है कि यह ध्वज बनता कहां है और इसको बनाने के क्या कायदे कानून हैं? 

देश में कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्‍त संघ अकेली संस्‍था है जहां सरकारी इस्तेमाल के लिए झंडे बनाए जाते हैं.

हुबली में बनता है तिरंगा

संघ खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा सर्टिफाइड देश की अकेली अधिकृत संस्था है जो तिरंगे बनाती है. और इसका कामकाज भी छोटा नहीं है. एक प्रतिष्ठित अखबार के मुताबिक, 2016-17 में संघ ने 2.5 करोड़ रुपए की कीमत के झंडे की बिक्री की थी.

शिवानंद महापात्र कर्नाटक खादी ग्राम उद्योग संयुक्त संघ (केकेजीएसएस) के सचिव हैं, जिन्होंने अपने जीवन के 35साल यह सुनिश्चित करने में लगाए हैं कि भारतीय गर्व से झंडा लहराकर अपनी देशभक्ति का जश्न मनाएं. उन्होंने कहा, “2004में, यह इकाई भारत के खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा प्रमाणित राष्ट्रीय ध्वज की एकमात्र निर्माता बन गई. 2006में, यह भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा प्रमाणित होने वाला देश का एकमात्र निर्माता बन गया.”

संघ खादी ग्रामोद्योग द्वारा प्रमाणीकृत है

महापात्र के अनुसार, 1980में उत्तरी कर्नाटक में सूखे के बाद से, बीजापुर, बागलकोट, आदि के कई ग्रामीण - जो बिना नौकरी और बिना फसल के प्रभावित थे, इन खादी शेड में शामिल होने के बाद लाभान्वित हुए. उन्होंने कहा, "इस महासंघ के लिए लगभग 2000कर्मचारी काम कर रहे थे और उनमें से 90%महिलाएं थीं,"

उन्होंने कहा कि वे 2018-19में 3करोड़ रुपये से 3.5करोड़ रुपये के राजस्व के साथ काफी सफल रहे.संघ कर्नाटक में हुबली शहर के बेंगेरी इलाके में है. इसको हुबली यूनिट भी कहा जाता है.

कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग

कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्‍त संघका गठन नवंबर, 1957में हुआ था. इसने 1982से खादी कपड़ों का निर्माण शुरू किया था.

1957में, स्वतंत्रता सेनानी वेंकटेश मगदी ने इस खादी संघ की स्थापना दिवंगत महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए खादी के उपयोग को बढ़ावा देने के इरादे से की थी. पूरे भारत के खादी संगठन इस महासंघ से जुड़े थे. मगदी की इस पहल ने ग्रामीण समुदाय के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करने में मदद की क्योंकि वे खादी के कपड़े और उत्पादों के निर्माण के लिए एक साथ आए थे. हुबली में प्रधान कार्यालय ने छपाई, प्रसंस्करण और बिक्री का ध्यान रखा. 

हुबली में बनता है राष्ट्रीय ध्वज

2005-06में इसे भारतीय मानक ब्‍यूरो (बीआइएस) से प्रमाणित किया गया और इसने राष्‍ट्रीय ध्‍वज बनाना शुरू किया. देश में जहां कहीं भी आधिकारिक तौर पर राष्‍ट्रीय ध्‍वज इस्‍तेमाल होता है, यहीं के बने झंडे की आपूर्ति की जाती है. विदेशों में मौजूद भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों के लिए भी यहीं से तिरंगे बनकर जाते हैं. कोई भी ऑर्डर करके कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्‍त संघसे तिरंगा खरीद सकता है.

तिरंगा बनाने में बरती जाती हैं सावधानियां

हालांकि, ध्वज संहिता के मुताबिक, अलग-अलग स्थानों के लिए झंडे का आकार अलग-अलग होता है. सबसे छोटा 6:4इंच का तिरंगा बैठकों और कॉन्‍फ्रेंस वगैरह में मेज पर रखा जाता है. अति विशिष्ट व्यक्तियों के कारों में लगाने वाले ध्वज का आकार 9:6इंच होता है. राष्‍ट्रपति के विशिष्टएयरक्राफ्ट और ट्रेन के लिए इसका आकार 18:12इंच, कमरों में क्रॉस बार पर दिखने वाले झंडे 3:2फुट, बहुत छोटी पब्लिक इमारत पर लगने वाले झंडे 5.5:3फुट, शहीद सैनिकों को पार्थिव शरीर पर लिपटे तिरंगे का आकार 6:4फुट होता है.

संसद भवन और मंझोल आकार वाली सरकारी इमारतों के लिए इसका आकार 9:6फुट, गन कैरेज, लाल किले और राष्‍ट्रपति भवन के लिए यह आकार 12:8फुट के अनुपात में रखा गया है. बहुत बड़ी सरकारी इमारत के लिए तिरंगे का आकार 21:14फुट है.

कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्‍त संघमें बनने वाले तिरंगे की क्वालिटी की जांच बीआइएस करता है और इसमें थोड़ा सी भी चूक होने पर उसे खारिज कर देता है. इस तरह कुल तिरंगों में से लगभग 10फीसद रिजेक्‍ट हो जाते हैं. हर सेक्‍शन पर कुल 18बार तिरंगे की क्‍वालिटी चेक की जाती है.

राष्ट्रीय ध्वज को कुछ मानकों पर खरा उतरना होता है, मसलन, निर्धारित रंग के शेड से तिरंगे का शेड अलग नहीं होना चाहिए, केसरिया, सफेद और हरे कपड़े की लंबाई-चौड़ाई में नहीं जरा-सा भी अंतर नहीं होना चाहिए, अगले-पिछले भाग पर अशोक चक्र की छपाई समान होनी चाहिए. फ्लैग कोड ऑफ इंडिया, 2002के प्रावधानों के मुताबिक, झंडे की मैन्‍युफैक्‍चरिंग में रंग, साइज या धागे को लेकर किसी भी तरह का डिफेक्‍ट एक गंभीर अपराध है और ऐसा होने पर जुर्माना या जेल या दोनों हो सकते हैं.

हालांकि, COVID महामारी के कारण बिक्री में गिरावट आई है - 2020में 56लाख रुपये. इस साल राजस्व में मामूली वृद्धि देखी गई है - अब तक 92लाख रुपये. महापात्रे ने कहा, "कोई भी स्कूल और कॉलेज नहीं खुले हैं, और विशेषज्ञों द्वारा आसन्न तीसरी लहर की भविष्यवाणी की जा रही है, हम इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि क्या इस साल चीजें उज्ज्वल दिखेंगी."

हालांकि, कोविड महामारी की वजह से संघ और उसके कर्मचारियों पर भारी असर पड़ा है. महापात्र कहते हैं कि कई कर्मचारियों को 3महीने से वेतन नहीं मिला है. “कोविड का डर और टीकों की कमी के कारण संसाधनों की कमी हो गई है. केवल 1,500कर्मचारी हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं. और ऐसा लगता है कि वे केवल इसलिए इधर काम करने आते हैं क्योंकि तिरंगे का निर्माण करने पर गर्व है. वह इस राष्ट्र के गौरव को बुनते हैं. और मुझे यहां होने पर भी कम गर्व नहीं है.”

इधर, केंद्र सरकार ने राज्यों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि लोग प्लास्टिक के झंडे का इस्तेमाल न करें. भारत सरकार ने भी इस 75वें स्वतंत्रता दिवस को चिह्नित करने के लिए साल भर चलने वाले समारोहों की योजना बनाई है. केकेजीएसएस को तब तक राजस्व 4करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है. 

18 बार चेक होती है तिरंगे की क्वॉलिटी

महापात्रे कहते हैं, "कच्चे माल की खरीद, आपूर्ति की योजना, निर्माण और बिक्री के समन्वय से, हम साल भर काम करते हैं." जब हम 75वें स्वतंत्रता दिवस की शुरुआत कर रहे हैं, तो भारत को श्रद्धांजलि देने के लिए तिरंगा थामने का समय आ गया है.

कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्‍त संघके तहत तिरंगे के लिए धागा बनाने से लेकर झंडे की पैंकिंग तक में लगभग 1500 लोग काम करते हैं. इनमें लगभग 80-90 फीसदी महिलाएं हैं. तिरंगे को इतने चरणों में बनाया जाता है. धागा बनाना, कपड़े की बुनाई, ब्‍लीचिंग और डाइंग, चक्र की छपाई, तीनों पटिृयों की सिलाई, आयरन करना और टॉगलिंग (गुल्‍ली बांधना).

वैसे, तिरंगा महज सूती कपड़े और खादी से बनाया जाता है. और जानकार कहते हैं कि इसका कपड़ा जीन्स के कपड़े से भी मजबूत होता है. पर, असल बात यह है कि तिरंगे की भावना इन सब सांसारिक चीजों से कहीं मजबूत है जो हर हिंदुस्तानी को अपने तीन रंगों के मुहब्बत में बांध कर रखती है.