मोहम्मद अकरम/ हैदराबाद
हैदराबाद लजीज बिरयानी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है, जहां देशभर से लोग शौक से बिरयानी खाने पहुंचते हैं.अब ये शहर बिरयानी के साथ हलीम के लिए पूरी दुनिया में जाना जाने लगा हैं. अगर कोई रमजान के दिनों में हैदराबाद आया हो और हलीम नहीं खाया हो ये मुमकिन नहीं है.
हर साल हैदराबाद में 800 से ज्यादा जगहों पर हलीम तैयार की जाती हैं, एक अंदाजे के मुताबिक रमजान मुबारक के पाक महीने मे ये कारोबार 150 करोड़ से ज्यादा का होता है जो पूरे महीने चलता है.
हैदराबाद के इलाके सिकंदराबाद, पुराने शहर में कारोबारी हलीम तैयार करने के लिए भट्टिया बनाते हैं. लोग इफ्तार के बाद हलीम खाना पसंद करते हैं. हलीम बेचने के लिए रमजान में स्पेशल दुकान खोली जाती हैं.
भारत में हलीम की शुरुआत
हलीम बनाने की शुरुआत दरअसल अरब के यहां से हुई और भारत में ये अरब कारोबारियों के जरिये पहुंचा. हैदराबाद और इसके इलाके में हलीम बादशाह हुमायूँ के ईरान से वापसी के बाद शुरू हुआ और अकबर के दौर में ये मशहूर हुआ.
हैदराबाद दक्कन में सुलतान यूसुफ नवाब के दौर में इसे मेहमानों के बीच पेश किया जाता था. उसके बाद से ही हलीम लोगों का पसंदीदा बन गया, इसे तैयार करने में 8 से 12 घंटे लगते हैं.
कई तरह के मसाले का होता है इस्तेमाल
हलीम में कई तरह के मसाले इस्तेमाल होते हैं. इनमें चना दाल, अरहर की दाल, धुली मसूर की दाल, धुली मूंग की दाल, अदरक लहसुन का पेस्ट, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर, जीरा, काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, बड़ी इलायची, दालचीनी, गर्म मसाला, प्याज, हरी मिर्च,हरा धनिया, लाल मिर्च, धुली उड़द की दाल, घी, नींबू आदि शामिल हैं.
इफ्तार से सहरी तक रहती है दुकानों पर भीड़
दो साल के बाद जब मार्केट पूरी तरह खुल चुकी हैं और रमजान का पवित्र महीना चल रहा है तो ऐसे में हलीम के कारोबार में इजाफा देखा जा रहा है, सिकंदराबाद, मेंहदी पटनम, टोली चौकी, चारमीनार, मलकपेट समेत सभी इलाके में दो दो कदम पर हलीम की दुकान हैं जहां दूर से ही हलीम की खुशबू लोगों को अपनी तरफ़ खिचने लगती हैं.
हलीम की दुकान पर इन दिनों लोग लाइन में खड़े हो कर अपनी बारी का इंतजार करते हैं. एक दुकानदार ने आवाज द वॉइस को बताया कि रमजान के पवित्र माह में हलीम स्पेशल तैयार किया जाता हैं, हलीम की दुकान लगाने के लिए लोग साल भर इंतजार करते हैं.
इन दिनों इफ्तार के बाद से ही लोग दुकान पर आने लगते है जो सहरी के वक्त तक जारी रहता है. समाज के सभी लोग बड़े चाव से पसंद करते हैं क्योंकि हलीम शरीर मे ताकत पैदा करता है. दुकानदार आगे बताते है कि समाज के 60 प्रतिशत से ज्यादा गैर मुस्लिम हलीम खाते हैं और फैमली के लिए ले जाते हैं.
क्या कहते हैं दुकानदार
हलीम तैयार करने वाले मोहम्मद अफरोज बताते हैं कि हलीम बनाने के लिए रमजान से पहले भट्टिया तैयार की जाती हैं. हर रोज रात को बारह बजे हलीम के गोश्त को पकने के लिए आग पर रखा जाता है,
दिन मे गोश्त मे कई प्रकार के मसाले के साथ घंटो पीसा जाता हैं जिससे गोस्त अपनी असल शक्ल से अगल होकर रेशम जैसा हो जाता हैं. घंटों आग पर पकाने के बाद आखिर में देसी घी डाला जाता है जिसके बाद लोगों के बीच स्वादिष्ट हलीम बाजार मे लाया जाता है.
टोली चौकी के ही एक और हलीम के दुकानदार असगर ने बताया कि मैं साल के ग्यारह महीने बिरयानी बेचता हूँ लेकिन रमजान के दिनों में हलीम. क्योंकि रमजान मे लोग बिरयानी की जगह हलीम को अहमियत देते हैं, शाम की नमाज के बाद से ही लोगों का दुकान पर भीड़ शुरु हो जाता है जो सेहरी तक जारी रहता हैं.
हलीम खाने के लिए शहर के बाहर के लोग भी आते हैं. इसके अंदर बीस से ज्यादा प्रकार के मसाले का इस्तेमाल किया जाता है जिसके कारण उसकी खुशबू दूर तक जाती है. इस कारोबार को हम ने दस साल से किए हैं, रमजान में इससे लाखों की कमाई होती है. दो साल के बाद इसके बाजार मे रौनक लौटी हैं तो ऐसे में उम्मीद है कि इस बार हम जैसे कारोबारियों के लिए खुशियां लाए.
आप भी जब कभी हैदराबाद आए तो हलीम जरूर खाएं.