हिंदुत्व है भारतीयता का प्रतीकः डॉ एसएन पठान

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
 डॉ एसएन पठान
डॉ एसएन पठान

 

मंसूरुद्दीन फरीदी /नई दिल्ली
 
हिंदुत्व कोई हिन्दू सभ्यता नहीं, यह कोई धार्मिक सभ्यता नहीं, बल्कि एक सामान्य सभ्यता है. विभिन्न धर्मों के मानने वाले इस भूमि पर रहते हैं. विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं. उनके बीच की समानता सामान्य सभ्यता है, जिसे हम हिंदुत्व कहते हैं. यह एक खूबसूरत तस्वीर है, जो देश के सांप्रदायिक सद्भाव को दर्शाती है.
 
ये विचार हैं नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ एसएन पठान के. उन्होंने आवाज द वाॅयस से बात करते हुए कहा कि हिंदुत्व का अर्थ है भारतीय एकता. मुस्लिम नफरत नहीं. बता दें कि श्री पठान की पुस्तक-‘हिंदुत्व का मतलब भारतीय यकजहती, मुस्लिम मुनाफरत नहीं’ का दो दिन पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विमोचन किया था.
 
इसके बाद डॉ. पठान ने  आवाज द वाॅयस से खास बातचीत की. उन्होंने कहाा कि यह भारत की खूबसूरती है कि इसने हर धर्म को फलने-फूलने का मौका दिया. चाहे वह इस्लाम हो या ईसाई मजहब. प्रत्येक धर्म को उसकी भूमि द्वारा अपनाया और संरक्षित किया.
 
गांवों में पनपती है हिंदू-मुस्लिम एकता

डॉ. पठान कहते हैं कि भारत वास्तव में गांवों में बसा है. यदि आप गांवों में रहते हैं तो आपको पता चलेगा कि हिंदू, मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग एक साथ कैसे रहते हैं. वे एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं. दर्द में सहभागी बनते हंै.
 
वह आगे कहते हैं कि हर गांव में कोई दरगाह होती है. आप देखेंगे कि ऐसी दरगाहों पर मुसलमानों के साथ बड़ी संख्या में हिंदू भी दिखाई देते हैं. अगर हिंदू मुसलमानों से नफरत करते हैं, तो ऐसा कभी नहीं होता.
 
सुदर्शन की विनम्रता

डॉ पठान कहते हैं कि जब मैं नागपुर विश्वविद्यालय का कुलपति था, उस समय कांग्रेस की सरकार थी. तब  मैं आरएसएस के प्रमुख सुदर्शन साहिब के संपर्क में आया. वजह थी उनकी नैतिकता और प्यार. यह उनकी नम्रता की निशानी थी कि उन्होंने एक बार मुझे फोन किया कि मैं तुमसे मिलने आ रहा हूं.
 
डॉ पठान ने कहा कि उसके बाद वह मेरे सरकारी आवास पर आते थे. विभिन्न विषयों पर बात करते थे. तथ्य यह है कि संघ के बारे में मेरे विचारों को बदलने में सुदर्शन जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 
 
मुहम्मद अजहर हयाती ने किया अनुवाद

डॉ. पठान की किताब मराठी में है, जिसका उर्दू में अनुवाद करने वाले मोहम्मद अजहर हयात असल में अंजुमन गर्ल्स कॉलेज ऑफ आर्ट्स के प्रिंसिपल रह चुके हैं. वह दस पुस्तकों के लेखक हैं. उर्दू साहित्य के बहुत शौकीन हैं.
 
उनका कहना है कि वास्तव में डॉ पठान को अपने जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव पर हिंदू पड़ोसियों और दोस्तों से मदद मिलती रही. उन्होंने कभी कोई लाचारी महसूस नहीं की. जब वे गांव में रहते थे,  सबसे पहले उनके हिंदू पड़ोसियों ने उनकी शैक्षणिक सफलता का जश्न मनाया.
 
उनका जन्म एक मजदूर वर्ग के परिवार में हुआ था. उनके पिता एक राजमिस्त्री थे. माँ ईंटें उठाती थीं. इन परिस्थितियों में डॉ. पठान शिक्षित हुए. जब भी आवश्यकता पड़ी, गांव के लोगों ने बिना किसी भेदभाव  उनकी मदद की. इसलिए आज वे उसी सांप्रदायिक सद्भाव के कायल हैं.
 
अजहर हयात कहते हैं कि इस किताब का अनुवाद करते हुए मुझे एहसास हुआ कि डॉ. पठान चाहते हैं कि हम एक-दूसरे पर भरोसा करें. खासकर मुसलमानों को बिना सबूत के किसी की मंशा पर शक नहीं करना चाहिए. प्यार, ईमानदारी और भाईचारे के माहौल में रहें.
 
मुहम्मद अजहर हयात का कहना है कि पुस्तक में भारतीय सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि हिंदुत्व किसी एक धर्म की सभ्यता का नाम नहीं है. एक सामान्य सभ्यता का सार है, जिसमें भारतीयता छिपी है.