बंगलुरू / प्रतिभा रमन
कर्नाटक में कलबुर्गी जिले के खजूरी गांव में मार्च 2021 में कोरानेश्वर संस्थान मठ ने इतिहास रच दिया. एक 61 वर्षीय प्रधान पुजारी मुरुगेंद्र कोरानेश्वर शिवयोगी ने एक 41 वर्षीय महिला को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया.
इसी गांव के हनुमंथप्पा नगारे और मथुराबाई की सबसे छोटी बेटी नीलालोचना ताई को उनके समर्पण के कारण मठ का प्रमुख बनाया गया.
12वीं शताब्दी के दार्शनिक और लिंगायत संत बसवन्ना के सिद्धांतों के अनुयायी शिवयोगी ने समानता के बारे में कथनी को करनी में परिवर्तित करने का निर्णय किया.
शिवायोगी कहते हैं, “यह एक प्रगतिशील कदम है. मुझे यकीन है कि इससे कई लोगों को झटका लगा होगा. लेकिन यह कोई आश्चर्य नहीं है. हम आनुवंशिकता के आधार पर उत्तराधिकारी नहीं चुन सकते. धर्म के प्रति किसी व्यक्ति के संबंध के आधार पर किसी का चयन करने पर मंथन किया गया.”
ताई ने मराठी माध्यम से कक्षा 10 तक पढ़ाई की है. बाद में उन्होंने कन्नड़ सीखी. उन्होंने बसवन्ना के सिद्धांतों का अध्ययन करने में 3 साल समर्पित किए. चूंकि मठ कर्नाटक की सीमा पर स्थित है और जो महाराष्ट्र के करीब है. इसलिए कन्नड़ और मराठी दोनों भाषाओं में ताई का ज्ञान उन्हें दोनों राज्यों के अनुयायियों को समझने और समझाने केयोग्य बनाता है.
मजे की बात यह है कि ताई की नियुक्ति से ठीक एक साल पहले मुस्लिम युवक को गडग के असुती स्थित लिंगायत मठ की शाखा कस प्रमुख चुना जा चुका है.
34 वर्षीय दीवान शरीफ रहमानसाब मुल्ला को 26 फरवरी, 2020 को इस मठ का प्रमुख नियुक्त किया गया था. जैसे ही मुल्ला ने यह खबर सुनी, उन्होंने कहा कि वह इस तरह के प्रगतिशील परिवर्तनों से प्रसन्न हैं. मुल्ला और ताई जैसे लोग बसवन्ना के सिद्धांतों के प्रशंसनीय प्रमाण हैं, जो कई पारंपरिक प्रथाओं को परिभाषित करते हैं.
मुल्ला ने कहा, “लोगों ने मुझसे पूछा कि इतने लंबे समय तक इस्लाम का पालन करने के बाद मैं इस मठ में कैसे आया. क्या हम सभी एक ही ईश्वर की जय नहीं करते हैं? हम सबको एक अच्छा गुरु चाहिए. हमारे भारत में कोई जाति नहीं है, क्योंकि हम सभी भारत माता की संतान हैं. हम सभी भारत माता के गर्भ में रह रहे हैं.”
मुल्ला बहुत लंबे समय से बसवन्ना की शिक्षाओं से प्रभावित थे. मुल्ला को 3 साल की अवधि में लिंगायत धर्म के विभिन्न पहलुओं को सीखने, समझने और उन्हें समझने के लिए प्रशिक्षित किया गया था.
मुल्ला का मानना है कि जो पुजारी किसी भी स्वार्थ से रहित होगा, वह भक्तों के हित में काम करेगा. कोई आश्चर्य नहीं कि उन्होंने अपने परिवार की एक एकड़ जमीन मठ के लिए दान कर दी है. कलबुर्गी और गडग के दोनों मठों के संतों ने ने परम्परागत मान्यताओं के विरुद्ध अपने दस्ताने उतार फेंके है.