मंसूरुद्दीन फरीदी
अगर कोई आपसे पूछे कि ‘मिसाइल मैन‘ कौन है, तो आप तुरंत ‘कलाम‘ कहेंगे. लेकिन अगर कोई आपसे पूछे कि ‘बर्ड मैन ’ कौन है, तो आप निश्चित रूप से हैरान रह जाएंगे या आपको ‘गूगल बाबा‘ की मदद लेनी पडे़गी. सालिम अली- देश के सबसे बड़े पक्षी विशेषज्ञ का नाम है.
उन्होंने भारत में पक्षी विज्ञान को एक नई ऊंचाई दी है. इसके बूते दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई और दुनिया को उनका अभिवादन करने के लिए मजबूर किया. कुछ समय के लिए जो चीजें एक पहेली सी थीं, उन्हें प्रकृति का रहस्य माना जाता था, जिस पर केवल अटकलें लगाई जा सकती थीं. डॉ सालिम अली ने उन तमाम रहस्यों को सामने लाने का काम किया.
वास्तव में, चाहे वह गौरेया हो या दुनिया का कोई और पक्षी, उनका जिक्र आते ही सालिम अली के नाम अपने आप जुबान पर आ जाता है, क्योंकि उन्होंने पक्षियों की दुनिया के बारे में जो खुलासे किए हैं, वे पक्षी प्रेमियों के लिए किसी खजाने से कम नहीं. अली का हर दिन पक्षियों की सेवा में बीतता था.
उनका जन्म 12 नवंबर, 1896 को मुंबई में हुआ था. वह बोहरा समुदाय से थे. अपने पिता मोइजुद्दीन और मां जीनतुल निसा की नौवीं संतान थे. उनके पिता का निधन तब हुआ, जब वह सिर्फ एक साल के थे.
मां का साया भी जल्द उठ गया. इसके उन्हें निःसंतान चाचा और चाची ने पाला. इस अनाथ बच्चे ने अपने बिखरे जीवन में कुछ ऐसा किया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.
शिकार से अनुसंधान तक
माना जाता है कि कभी-कभी शिकारी भी शिकार हो जाता है. यह बात सालिम अली के साथ भी हुई. वह पक्षियों के शिकार के लिए उत्सुक रहते थे. शिकार के कारण उन्हें पक्षियों में भी दिलचस्पी पैदा होने लगी. चाचा अमीरुद्दीन तैयब जी एक अच्छे शिकारी थे, जिनके साथ वे भी शिकार करने जाते थ.
उन्हें शिकार का जुनून था, लेकिन एक शिकार ने उनके जीवन को बदल दिया. वही व्यक्ति जो पक्षियों को लक्षित करने का आनंद लेता था, वह पक्षियों के जीवन में उलझ गया. उन्होंने पक्षियों के जीवन के परत को सुलझाना शुरू किया।
कहानी यह थी कि सालिम अली ने अपनी एयर गन से एक पक्षी को गोली मार गिराया. उन्हें वह चिड़िया बहुत पसंद थी. वह अपनी एक किताब में एक जगह लिखते हैं- मैंने अपने चाचा से इस पक्षी के बारे में पूछा. चाचा मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सदस्य थे, लेकिन पक्षी के बारे में कुछ नहीं बता सके. सालिम अली ने हार नहीं मानी. वह चाचा के साथ सोसाइटी पहुंच गए.
अपने साथ उक्त मृत पक्षी को कागज में लपेट कर ले गए. तब उन्हें पक्षी के बारे में कई जानकारियों दी गईं. उसके बाद से उनके दिल में इच्छा पैदा हुई कि पक्षियों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाए. उसके बाद उनकी खोज बंद नहीं हुई. हर दिन, उनकी आँखें पक्षियों पर रहती थीं. उन्हें पढ़ते रहे और दुनिया को उनके विवरण से परिचित कराते रहे.
जब वह अपने चाचा के साथ सोसाइटी गए, तो उसके सचिव, डब्ल्यूएस मिलार्ड, इतने प्रभावित हुए कि उन्हें लगा कि लड़का थोड़ा असहज है. कुछ जानने की उत्सुकता और कुछ तलाशने को लेकर चिंतित है. उसके बाद उन्होंने पक्षियों के क्षेत्र में सालिम अली को प्रशिक्षित करने की पेशकश की.
उन्होंने उनके जीवन को बदल दिया. लेकिन उनके साथ समस्या थी कि उनकी शिक्षा पूरी नहीं हुई थी। बड़ी कठिनाई से उन्होंने 1913 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. उन्होंने बर्मा में भी समय बिताया. वह 1917 में मुंबई लौट आए. फिर कॉलेज ऑफ कॉमर्स चले गए. फादर अल्बर्ट ब्लैटर ने उनकी आंतरिक रुचि को पढ़ा, जिसके बाद वे जूलॉजी का अध्ययन करने पर सहमत हुए.
शौक जो पागलपन बना
एक समय था जब जूलॉजिस्ट्स जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में एक पद पाने के लिए उत्सुक रहते थे, लेकिन सालिम ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके पास विश्वविद्यालय से विशेष डिग्री प्राप्त नहीं थी. दो साल बाद, वह शैक्षिक छुट्टी ले कर जर्मनी चले गए, जहां उन्होंने पक्षियों के बारे में जानकारी इकट्ठी करने में बिताया.
डॉ इरविन स्ट्रैसमैन के साथ पक्षियों का अध्ययन करने के बाद लौट आए. डॉ अरुण विश्व प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक रहे हैं और पक्षियों में सालिम अली की रुचि के गहरे समर्थक रहे हैं.
1930 में जब सालिम अली जर्नमनी से वापस आए, तब तक कॉलेज में उनका सत्र समाप्त हो चुका था. उसके बाद वह मुंबई के पास एक तटीय गांव कहिम में जाकर रहने लगे, जहां पक्षियों पर शोध करना जारी रखा. उन्होंने विभिन्न राज्यों में जाकर अध्ययन किया. हैदराबाद, ग्वालियर, भोपाल, हरियाणा गए. उसके बाद उन्हांेने पक्षियांे पर कई पुस्तकों की श्रृंखला शुरू की.
एयर गन की जगह दूरबीन
एयरगन के साथ शिकार करने वाले व्यक्ति ने कई शोधपत्र और किताबें लिखी हैं. उसके माध्यम से पक्षियों के स्वभाव को समझा जा सकता है. सालिम अली का पक्षियों पर पहला शोध पत्र 1930 में प्रकाशित हुआ था. फिर द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स 1941 में प्रकाशित हुआ, जो पक्षी विज्ञानियांे केलिए महत्वपूर्ण माना जाता है. उन्हें कई महत्वपूर्ण किताबंे लिखी हैं. उनकी मृत्यु 20 जून 1987 में हुई, पर आज भी उनका महत्व कम नहीं हुआ है.
सालिम अली को सम्मान
सालिम अली को 1958 में भारत का तीसरा पद्म भूषण और 1976 में दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया. पद्म भूषण और पद्म विभूषण के अलावा सालिम अली को 1967 में ब्रिटिश ऑर्निथोलॉजिस्ट संघ का स्वर्ण पदक मिला है. यह सम्मान पाने वाले वह पहले गैर-ब्रिटिश नागरिक थे.
(लेखक आवाज द वाॅयस उर्दू के संपादक हैं)