राकेश चौरासिया / फरीदाबाद
इस औद्योगकि शहर में रमजान के रोजों के बाद आने वाली ईद-उल-फितर पर लोगों में उमंग और उल्लास जितना देखने लायक है, उतना ही खूबसूरत नजारा बड़खल गांव में दिखता है. यहां के एक व्यवसायी दशकों से मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों को ईद की दावत देते हैं और बड़े चाव से पकवान तैयार करवाते हैं, जहां शहर की तमाम हस्तियां शिरकत करती हैं. लोगों को इस दावत का इंतजार रहता है.
फरीदाबाद शहर के पश्चिम में बड़खल सदियों पुराना गांव है. किवदंती है कि इस ब्राह्मण बाहुल्य गांव के कुछ परिवारों ने कालांतर में इस्लाम धर्म अपना लिया था. इसके बावजूद सिजरा एक होने की वजह से यहां के सभी परिवारों में भाईचारा पूर्ववत बरकरार है.
इसी कदीमी गांव बड़खल के रहवासी और मशहूर व्यवसायी सरदार खान की दावत शहर की ऐसी इकलौती ऐसी दावत कही जा सकती है, जिनकी बैठक पर जबरदस्त गहमागहमी रहती है. इस दावत में कांग्रेस, भाजपा, इनेलो सहित तमाम दलों के नेता, अधिकारी, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य वर्गों के लोग जुटते हैं और लजीज व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं.
सुबह से शाम तक चलने वाली दावत की खास तैयारियां कई दिन पहले से की जाती हैं. हलवाई जुटते हैं और तमाम तरह के पकवान बनाते हैं. सामिष पकवानों में मटन और चिकन के पकवान होते हैं, तो निरामिष व्यंजनों में शीरखुरमा और सेवईयां बनती हैं. इन व्यंजनों के निर्माण में हलवाई प्राण फूंक देते हैं, क्योंकि उनका जायका बेहद सुस्वाद होता है.
दावत में लोग व्यंजनों का लुत्फ तो उठाते ही हैं, बल्कि यह मौका शहर की बड़ी हस्तियों से दुआ-सलाम के लिए भी अहम होता है. दावत के बाद मनो-विनोद के साथ शहर से लेकर देश तक के राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा भी होती है.
इस बारे में सरदार खान ने आवाज-द वॉयस को बताया कि उनकी पैदाइश, बचपन, स्कूलिंग और धंधा-रोजगार यहीं का है. इसलिए शहर में प्यार और भाईचारा भी बेशुमार है. शुरुआत में वे ईद पर अपने गांव वालों और दोस्तों को बुलाते थे. मालिक के करम से धीरे-धीरे यह दायरा बढ़ता गया. अब यहां काफी रौनक होती है. उन्होंने कहा कि खुशियां बांटने से खुशियां बढ़ती हैं. इसलिए वे खासतौर पर अपने सर्कल के लोगों को आमंत्रित करते हैं. आजकल के हालात पर वे सिर्फ इतना कहते हैं कि यह सब सियासत हैं. मगर लोगों के दिल एक हैं.