द्रौपदी मुर्मू : एक शांत और सौम्य शख्यिसत

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 21-07-2022
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना तय है
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना तय है

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

गुरुवार 21 जुलाई का दिन कई मायनों में ऐतिहासिक होगा. देश के प्रथम नागरिक के पद पर दो दलित समुदाय की शख्सियतों के आसीन होने के साथ ही, लगभग सभी धार्मिक समूहों (हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई) का भी प्रतिनिधित्व रहा है. पर अभी तक किसी जनजातीय समुदाय का प्रतिनिधित्व राष्ट्रपति पदके लिए नहीं हो पाया था. लेकिन भाजपा-नीत एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाकर इसे भी मुमकिन कर दिया.

बेशक, मुकाबले में यशवंत सिन्हा थे और सिन्हा की कद्दावर नेता रहे हैं. यह पहला मौका है, जब भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में दोनों प्रमुख उम्मीदवारों का नाता झारखंड से है. लेकिन सिन्हा के पीछे तो पूरा विपक्ष भी एकजुट नहीं हो पाया. इसलिए, एकतरफा समीकरण से द्रौपदी मुर्मू की जीत तय हो गई. ऐसी गणनाएं हैं कि द्रौपदी मुर्मू को 62 फीसद तक वोट मिल जाएंगे.

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द्रौपदी मुर्मू इससे पहले झारखंड की राज्यपाल होने के नाते सुर्खियों में रहती थी. हालांकि, उनका नम्र व्यवहार और व्यक्तित्व की गहराई कभी भी गलत वजहों से उन्हें खबरों में लेकर नहीं आया. 20 जून, 1958 को द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में मुखिया के घर पर हुआ. द्रौपदी मुर्मू संताल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु था. उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गांव के प्रधान रहे.

फिर उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की.

उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया. उनके दो बेटे और एक बेटी हुए. दुर्भाग्यवश दोनों बेटों और उनके पति तीनों की अलग-अलग समय पर अकाल मृत्यु हो गयी. उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहतीं हैं.

1979 से 1983 तक द्रौपदी मुर्मू सिंचाई विभाग में जूनियर असिस्टेंट के पद पर कार्यरत रहीं. 1994 से 1997 तक वह शिक्षक के रूप में काम कर रही थीं. आखिरकार, 1997 में वह राजनीति में आ गईं. वह रायरंगपुर नगरपालिका में भाजपा की पार्षद बनीं और इसी चुनाव में वह नगरपालिका अध्यक्ष भी बन गईं.

द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर सीट से 2000और 2009में भाजपा के टिकट पर दो बार जीती और विधायक बनीं.ओडिशा में नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और भाजपा गठबंधन की सरकार में द्रौपदी मुर्मू को 2000और 2004के बीच वाणिज्य, परिवहन और बाद में मत्स्य और पशु संसाधन विभाग में मंत्री बनाया गया था.

उन्होंने मंत्री के बतौर क़रीब दो-दो साल तक वाणिज्य और परिवहन विभाग और मत्स्य पालन के अलावा पशु संसाधन विभाग संभाला. तब नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) और बीजेपी ओडिशा मे गठबंधन की सरकार चला रही थी.

साल 2009 में जब वे दूसरी बार विधायक बनीं, तो उनके पास कोई गाड़ी नहीं थी. उनकी कुल जमा पूंजी महज 9 लाख रुपये थी और उन पर तब चार लाख रुपये की देनदारी भी थी.

उनके चुनावी हलफनामे के अनुसार, तब उनके पति श्यामचरण मुर्मू के नाम पर एक बजाज चेतक स्कूटर और एक स्कॉर्पियो गाड़ी थी. जबकि, इससे पहले वह चार साल तक मंत्री पद पर रह चुकी थीं. उन्हें ओडिशा में सर्वश्रेष्ठ विधायकों को मिलने वाला नीलकंठ पुरस्कार भी मिल चुका है.

साल 2015 में जब उन्हें पहली बार राज्यपाल बनाया गया, उससे ठीक पहले तक वे मयूरभंज जिले की भाजपा अध्यक्ष थीं. वह साल 2006 से 2009 तक उन्होंने भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है. साथ ही वह भाजपा की आदिवासी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं है.

द्रौपदी मुर्मू के पति बैंक कर्मचारी थे. द्रौपदी मुर्मू के दो बेटे थे लेकिन पहले उनके पति और फिर दोनों बेटों का असमय निधन हो गया. अब इनकी बेटी इतिश्री मुर्मू हैं जो बैंक में काम करती हैं.

अपने परिवार को इस तरह बिखरने के बाद, द्रौपदी मुर्मू ने खुद को समाजसेवा में झोंक दिया.

द्रौपदी मुर्मू मई 2015में झारखंड की 9वीं राज्यपाल बनाई गई थीं.उन्होंने सैयद अहमदरजा की जगह ली थी.झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने का खिताब भी द्रौपदी मुर्मू के नाम रहा,साथ ही वह किसी भी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनने वाली पहली आदिवासी भी हैं.वे झारखंड में सबसे लंबे वक़्त (छह साल से कुछ अधिक वक़्त) तक राज्यपाल रहीं.

द्रौपदी मुर्मू नेराष्ट्रपति पद के लिए 24 जून, 2022 को अपना नामांकन किया, उनके नामांकन में पीएम मोदी प्रस्तावक और राजनाथ सिंह अनुमोदक बने.