देवव्रत घोषः असम में हिंदू-मुस्लिम सद्भाव का एक और प्रतीक

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 26-11-2021
देवव्रत घोषः
देवव्रत घोषः

 

अरिफुल इस्लाम / गुवाहाटी

भारत नाम की ‘अनेकता में एकता’ की भूमि में असम, हिंदू-मुस्लिम एकता और सद्भाव का एक आदर्श उदाहरण है. देश के इस उत्तर पूर्वी प्रांत में, जहां विभिन्न जातियों के 3.5 करोड़ लोग रहते हैं. मुस्लिमों और हिंदुओं का मंदिरों की देखभाल करना या हिंदुओं की मूर्तियों का निर्माण करना, मुस्लिम संतों के दरगाहों और मस्जिदों में जाना और उनकी देखरेख करना आम बात है.

ऐसा ही एक उदाहरण असम की राजधानी गुवाहाटी के लालगणेश इलाके के देवव्रत घोष हैं, जो कई सालों से गुवाहाटी में एक मुस्लिम संत की दरगाह की देखरेख कर रहे हैं.

घोष, पल्टन बाजार में गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के पास रेलवे खेजुर बागान कॉलोनी में, पीर बाबा मजहर के नाम से लोकप्रिय दरगाह की देखभाल कर रहे हैं. एक धर्मनिष्ठ हिंदू बंगाली घोष पलटन बाजार से लगभग 6 किमी दूर लालगणेश में रहते हैं. हर दिन दरगाह को साफ-सुथरा रखने के लिए जाते हैं और अगरबत्ती आदि जलाते हैं. यह एक प्रथा है, जो उन्हें अपनी दादी से विरासत में मिली है.

आवाज-द वॉयस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में घोष ने कहा, ‘पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के कई लोग रेलवे मजदूरों के रूप में काम करने के लिए 1931 से पहले गुवाहाटी चले आए थे. सभी प्रवासी कामगारों को रेलवे अधिकारियों ने पीर बाबा की समाधि के पास बसाया. मेरी दादी प्रवासी श्रमिकों में से एक थीं. पलटन बाजार स्टेशन के पास उस समय फूस के मकान में था. उस जगह पर पेड़ था और मकबरा उस समय केवल मिट्टी का था.

घोष बताते हैं, ‘मेरी दादी के अनुसार, बारिश होने पर एक भी बूंद मकबरे पर नहीं गिरती थी. एक रात लगभग 2 बजे मेरी दादी ने मकबरे के पास पेड़ पर एक मिट्टी का दीपक जला हुआ देखा. फिर उसे सपने में बताया गया कि जो लोग वहां बस गए हैं, उन्हें मकबरे की देखभाल करनी होगी, वरना वे वहां नहीं रह पाएंगे. तीन दिन बाद मकबरे में आग लग गई, लेकिन बगल के पेड़ के एक भी पत्ते को कोई नुकसान नहीं हुआ.’

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देवव्रत घोष


उन्होंने बताया, ‘आग की घटना के बाद, मेरी दादी और इलाके के कुछ अन्य लोगों ने एक दरगाह का आकार देने के लिए रेलवे कार्यशाला के अधिकारियों से उचित अनुमति के साथ पीर बाबा की कब्र पर एक टीन वाला घर बनाया. तब जौहर नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति ने पहली बार दरगाह पर दर्शन किए और मेरी दादी से कहा कि वे हर दिन इसी तरह की रस्में करें. मेरी दादी ने तब से दरगहा की देखभाल शुरू कर दी थी और अब मैं उनकी विरासत को जारी रख रहा हूं.’

ऐसी मान्यता है कि दरगाह में पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. और, यही कारण है कि गुवाहाटी सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों से अलग-अलग धर्मों के लोग इन दिनों पीर बाबा के दरबार में आते हैं.

इसी इलाके के राकेश दास ने कहा, ‘धार्मिक विश्वासों के बावजूद हम लंबे समय से दरगाह में पूजा कर रहे हैं. हम दरगाह की चमत्कारी शक्ति में विश्वास करते हैं. हमने देखा है कि जब भी कोई दरगाह में ईमानदारी से प्रार्थना करता है, तो उसकी प्रार्थना का निश्चित रूप से उत्तर दिया जाता है ... हम देवव्रत घोष को इतने वर्षों तक पूरी ईमानदारी के साथ दरगाह की देखभाल करते हुए देखते हैं. हम समय-समय पर दरगाह के रखरखाव की दिशा में भी मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं.’

विशेष तीर्थ वह स्थान है, जहां मुसलमान इस्लामी तरीके से प्रार्थना करते हैं और हिंदू पूजा करते हैं. हर साल चैत्र के शक कैलेंडर महीने में बाबा की दरगाह में शीतला पूजा की जाती है और दरगाह से जुड़े सभी लोग पूजा में शामिल होते हैं.