मोहम्मद अकरम/ हैदराबाद
हमारा देश गंगा-जमुनी संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है.यहां हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में शिरकत कर खुशियां बांटते हैं.हैदराबाद के रहने वाले एक खानदान के लोगों ने ऐसी ही सामाजिक सौहार्द की मिसाल पेश की है. शहर के कारवान असेम्बली इलाके के दयानंद का खानदान 20 सालों से रमजान के पाक महीने मे इफ्तार का आयोजन कर रहा है.
दो साल पहले दयानंद के देहांत के बाद इस काम को उनकी पत्नी कस्तूरी देवी और लड़के संकोरी दीपकऔरसंकोरी शिवा कुमार अपने पिता की वसीयत के अनुसार हर साल पाबंदी के साथ मस्जिदों में इफ्तारी का आयोजन करते हैं.
मस्जिद में इफ्तार करने पहुंचा दयानंद का परिवार
बीते दिनों दिवंगत दयानंद के घर के सभी लोग (पुरुष और महिलाएं) शहर के मेहंदी पटनम इलाके के कारवान में मौजूद मस्जिद ए मोहम्मदी पहुंचा और लोगों के साथ इफ्तार किया. मौके पर मस्जिद के अध्यक्ष उसमान बिन मोहम्मद अल हाजरी, मौलाना शफीक आलम खान जामयी, शहरी अध्यक्ष, जमीयत ए अहले हदीस और लोगों ने पगड़ी बांध कर उनका स्वागत किया.
आवाद द वॉइस से बात करते हुए दयानंद जी के लड़के संकोरी शिवा कुमार ने बताया, “ये परंपरा मेरे दादा शंकर कृष्णा के वक्त से चली आ रही है. वह अपने समय मे मस्जिदों में हर साल इफ्तारी की व्यस्था करते थे, समाज के सभी वर्गों के लोगों में बगैर किसी भेदभाव के समाजिक उत्थान के लिए काम करते थे, उनके देहांत के बाद पिता जी इस नेक काम को कर रहे थे, अब पिता जी के दुनिया से चले जाने के बाद हमलोग इस काम को कर रहे हैं. देश के अंदर हालात कैसे भी बन जाए ये हमारा ख्वाब है जिसे हम पूरा करते रहेंगे.”
वह आगे कहते है कि देश के अंदर हिंदू मुसलमान कैसे अलग हो सकते हैं? हम एकदूसरे की खुशी और गम में शिरकत करते हैं. लोगों कुछ भी कहे लेकिन भाईचारे को खत्म नहीं किया जा सकता है.
शिवा बताते हैं कि अगर हमारे अच्छे संस्कार आने वाली नस्लों को मिलेगा तो वह भी इस पुण्य काम के लिए सिलसिला को जारी रखेंगे.
जमीयत-ए-अहले हदीस के शहरी अध्यक्ष मौलाना उसमान बिन मोहम्मद अल हाजरी कहते हैं, “ये हमारे देश की साझी संस्कृति है जो सदियों से चला आ रहा हैं. हमारे समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं हैं जो सामाजिक सौहार्द के लिए काम कर रहा हैं और करना चाहते हैं लेकिन हमारा मुस्लिम समाज इससे दूर है या यू कहें कि जुड़ना नहीं चाहते हैं. देश के अंदर जो हालात है ऐसे में ऐसे लोगों की सख्त जरूरत है.”
दयानंद का परिवार बेशक शहर में कई सालों से इफ्तार के इंतजाम करता है, पर उन्हें इसके प्रचार करने की जरूरत नहीं महसूस होती. हालांकि, ऐसे खबरों को प्रचार की काफी जरूरत है क्योंकि ऐसे लोगों की समाज में बहुत जरूरत है जो समाजी ताने-बाने को बरकरार रखने के लिए काम करते हैं.
शहर में कई ऐसे लोग है
अब्दुल कादिर बताते हैं कि पुराने शहर में इफ्तार के समय बहुत सारे हिन्दू भाई ऐसे है जो इफ्तार के लिए मस्जिद सामान भेजते हैं किसी को बताते नहीं है. वह सामने नहीं आना चाहते हैं. मस्जिद से बहुत लगाव रखते हैं. समाज में ऐसे लोग है जो अमन और भाईचारे पर विश्वास रखते हैं.