छठ पर्व, जो जाति और धर्म से परे लोगों को पवित्रता के बंधन से बांधता है

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
छठ पर्व, जो जाति और धर्म से परे लोगों को पवित्रता के बंधन से बांधता है
छठ पर्व, जो जाति और धर्म से परे लोगों को पवित्रता के बंधन से बांधता है

 

राजीव कुमार सिंह/ नई दिल्ली
 
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है. इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है. इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं, और वे पानी भी ग्रहण नहीं करते.
 
छठ पर्व, छइठ या षष्‍ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला पर्व है. सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है. कहा जाता है यह पर्व मैथिल, मगध और भोजपुरी लोगो का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है. 
 
बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे जाते हैं. धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है. 
 
छठ पूजा सूर्य, प्रकृति, जल, वायु और सूर्य की बहन छठी म‌इया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन बहाल करने के लिए धन्यवाद, छठी मैया, जिसे मिथिला में रनबे माय भी कहा जाता है, भोजपुरी में सबिता माई और बंगाली में रनबे ठाकुर बुलाया जाता है. पार्वती का छठा रूप भगवान सूर्य की बहन छठी मैया को त्योहार की देवी के रूप में पूजा जाता है. छठ पूजा चंद्र के छठे दिन काली पूजा (दीपावली ) के छह दिन बाद मनाया जाता है. मिथिला में छठ के दौरान मैथिल महिलाएं, मिथिला की शुद्ध पारंपरिक संस्कृति को दर्शाने के लिए बिना सिलाई के शुद्ध सूती धोती पहनती हैं.
 
छठ पूजा चार दिनों की अवधि तक चलने वाला पर्व है और इसके अनुष्ठान के नियम और पालन काफी ही शुद्ध और कठोर हैं. इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और अर्घ्य (प्रार्थना प्रसाद) देना शामिल है.
 
परवातिन- जो की मुख्य उपासक (संस्कृत पार्व से, जिसका मतलब 'अवसर' या 'त्यौहार') अमूमन महिलाएं होती हैं. लेकिन, बड़ी संख्या में पुरुष इस पर्व की उपासना करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है. छठ महापर्व के व्रत को स्त्री-पुरुष-बूढ़े-जवान सभी लोग करते हैं.
 
पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्यौहार है. यह त्यौहार नेपाली और भारतीय लोगों द्वारा काफी सौहार्द के साथ मनाया जाता है.
 
 
एक प्रचलित कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया, जो की उनकी पुत्री थीं. उन्होंने उनकी आराधना की थी. छठी मैया तब उनपर प्रसन्न होकर, उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र के होने का वरदान दिया था. फलस्वरूप अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी. 
 
ऐतिहासिक रूप से, मुंगेर सीता मनपत्थर (सीता चरण) सीताचरण मंदिर के लिए जाना जाता है जो मुंगेर में गंगा के बीच में एक शिलाखंड पर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने मुंगेर में छठ पर्व मनाया था. इसके बाद ही छठ महापर्व की शुरुआत हुई. इसीलिए मुंगेर और बेगूसराय में छठ महापर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.
 
छठ, षष्ठी का अपभ्रंश है. कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है. कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा.
 
छठ पूजा साल में दो बार होती है. एक चैत मास में और दूसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के नाम से भी जाना जाता है. षष्ठी माता की पूजा घर परिवार के सदस्यों के सभी सदस्यों के सुरक्षा एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं. यह प्राकृतिक सौंदर्य और परिवार के कल्याण के लिए की जाने वाली एक महत्वपूर्ण पूजा है. इस पूजा में गंगा स्थान या नदी तालाब जैसे जगह होना अनिवार्य है यही कारण है कि छठ पूजा के लिए सभी नदी तालाब की साफ-सफाई की जाती है और नदी तालाब को सजाया जाता है.
 
इस साल छठ व्रत की शुरुआत शुक्रवार 28 अक्टूबर, 2022 से नहाए-खाय के साथ हो रही है. छठ पूजा में नहाय खाय, खरना, अस्ताचलगामी अर्घ्य और उषा अर्घ्य का विशेष महत्व होता है.