बिहार में छठ: पटना की नजमा बनीं नजीर, भागलपुर की बीबी यासमीन की आस्था बेमिसाल

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 30-10-2022
बिहार में छठ: पटना की नजमा बनीं नजीर, भागलपुर की बीबी यासमीन की आस्था  बेमिसाल
बिहार में छठ: पटना की नजमा बनीं नजीर, भागलपुर की बीबी यासमीन की आस्था बेमिसाल

 

राकेश चौरसिया /सेराज अनवर / पटना

बिहार के लोक आस्था के महापर्व की नजमा नजीर बन गई हैं. इसकी वजह है इनका दो दिनों से छठ के हर विधान को पूरी आस्था से पूरा करना. अब वह नहाय-खाय,खरना के बाद आज यानी रविवार को डूबते सूरज को अर्घ्य देने की तैयारी में जुटी हैं. 9 साल से छठ मना रही नजमा का कहना है, छठ मइया की कृपा से उनके 5 बच्चे हैं.

दिलचस्प बात यह है कि राजधानी पटना के जिस बैंक रोड में वह रहती हैं,वहां पीर बाबा की मजार है.छठ के मौके पर यहां का नजारा बड़ा दिलचस्प रहता है. एक ओर जहां लोग मुरादें पूरी होने के बाद चादरपोशी कर अकीदत से सजदे में सिर झुका रहे होते हैं.
 
ठीक मजार के बगल से एक संकरी गली नजमा खातून के घर जाती है.इनका घर मजार की दीवार से सटा है, जहां वो छठ प्रसाद के लिए गेहूं सुखाती नजर आईं.
 
जुमे को  वो मजार वाली इस गली से गंगा स्नान कर घर आईं और नहाय-खाय के साथ छठ मनाने का आगाज किया. छठ के प्रति मुस्लिम औरतों की यह आस्था सिर्फ पटना में ही नहीं,पूरे बिहार में देखने को मिल रहा है. 
 
भागलपुर के काजीचक खरादी टोला में मजहब की दीवार तोड़ते हुए यहां की महिलाओं ने छठ की पवित्रता का ख्याल रखते हुए मांसाहार को त्याग रखा है.
 
मुस्लिम महिलाएं प्रसाद के तौर पर प्रयोग किए जाने वाले बद्धि बनाने का काम करती हैं.हिन्दू-मुसलमानों की एक जैसी आस्था से छठ खुशनुमा हो गया है.चार दिवसीय इस महापर्व को पूरा बिहार बिना किसी भेदभाव के मनाता है.
 
रविवार की शाम में पहला अर्घ्य दिया जाएगा और सोमवार को उगते सूरज को अर्घ्य के साथ छठ सम्पन्न होगा.
 
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नजमा के छठ मनाने की कहानी ?

डेली बिहार की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक संतान की चाह लिए नजमा दरगाह से लेकर कई पीर के स्थानों पर भटकीं. हर जगह से हारने के बाद नजमा ने छठ मैया के सामने अपना आंचल फैलाया.
 
तब उनकी मुराद पूरी हुई.आज वह 5 बच्चों की मां हैं. नजमा बताती हैं , उसे संतान का सुख नहीं मिल पा रहा था. बच्चे तो हुए, लेकिन जीवित नहीं रहे. इसके बाद उन्हांेने कई पीर के पास जाकर मत्था टेका.
 
कई दरगाहों की खाक छानी. लेकिन कहीं कोई लाभ नहीं हुआ. फिर उन्हें किसी ने सुझाव दिया कि छठ पूजा करें तो पुत्र प्राप्ति होगी. इसके बाद उन्होंने छठ पूजा की.
 
पुत्र की प्राप्ति हुई. अब पांच पुत्र-पुत्री हैं. सभी स्वस्थ हैं. पुत्र की प्राप्ति के बाद से वह लगातार छठ पूजा करती आ रही हैं. हर बार वह छठ पूजा में जो मन्नत मांगती हैं, उनके मुताबिक, वह पूरी होती है. इससे उनकी श्रद्धा और बढ़ गई है.
 
पिछले 9 वर्षों से वो दरगाह के पीछे अपने घर में छठ व्रत कर रहीं हैं.आस्था ऐसी है कि कहती हैं , अंतिम सांस तक छठ करती रहेंगी.वह कहती हैं कि किस धर्म में लिखा है कि हिंदू के भगवान मुस्लिमों की पुकार नहीं सुनते या मुस्लिम के पीर-फकीर हिंदू की आवाज नहीं सुनते.
 
नहाय-खाय से शुरु होने वाले छठ महापर्व के पहले ही नजमा पूरी सफाई का ध्यान रखती हैं. छोटा सा घर है, लेकिन किचन से लेकर पूरा घर साफ रखती हैं. परिवार का कोई भी सदस्य प्रसाद के सामान को बिना नहाए नहीं छूता.
 
किचन में जहां प्रसाद बनता है,वहां भी बिना नहाए कोई नहीं जाता.इस दौरान हिंदू परिवारों की तरह उनके घर में कोई लहसन प्याज नहीं खाता. घर में कोई ऐसा भोजन नहीं बनता जिसमें लहसन प्याज डाला जाए.
 
इतना ही नहीं जिन बर्तनों में उनके घर हर दिन खाना पकाया जाता है, उसमें प्रसाद बनाने से परहेज किया जाता है.छठ महापर्व के लिए खाना पीना सब हिंदू रीति रिवाज से ही होता है.जिस तरह हिंदू परिवार की महिलाएं प्रसाद बनाती हैं.
 
खानों को लेकर परहेज करती हैं, इसका पूरा ध्यान रखा जाता है.छठ पूजा के खरना के दिन पूरे साफ-सफाई से आम की लकड़ी से प्रसाद बनाता है. प्रसाद बनाने में उनकी बेटियां मदद करती हैं.प्रसाद में ठेकुआ,खजूर बनाता है. अर्घ्य के दिन गाड़ी रिजर्व करके पूरे परिवार के साथ गंगा किनारे छठ घाट पर जाती हैं.
 
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अब नजमा बताने लगीं विधि विधान

नजमा हिंदू महिलाओं की तरह ही छठ व्रत करती हैं.जिस तरह से व्रती महिलाएं भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं, वैसे ही नजमा भी अर्घ्य देती हैं.अस्ताचलगामी सूर्य उपासना के साथ वह छठ के हर महात्म को अच्छी तरह मानती हैं.
 
उस हिसाब से पूजन अर्चन करती हैं. नजमा का कहना है कि वह शुरु में हिंदू व्रती महिलाओं को देखकर छठ सीखीं. अब तो इतना कुछ जान गईं हैं कि दूसरों को बताती हैं.
 
गंगा में स्नान करने के साथ पूरी उपासना वह विधि पूर्वक करती हैं. नजमा बताती हैं कि उनको अब छठ मैया पर काफी भरोसा है.उन्हें जो भी मिलौ छठ मैया से मिला. इस कारण से उन्होंने ठान लिया है कि जब तक सांस रहेगी छठ व्रत करती रहेंगी.
 
नजमा नफरत फैलाने वालों के लिए नजीर हैं.नजमा का कहना है कि जो लोग धर्म के नाम पर बवाल करते हैं, उनके खून लाल ही होते हैं.धर्म के नाम पर लड़ने का कोई मतलब नहीं है.
 
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काजीचक की मुस्लिम महिलाएं बनी मिसाल

कहा जाता है हिंदू धर्म में बद्धी (सूत की माला) का उपयोग ऐसे प्रसाद के तौर पर होता है, जो पूरे शरीर का रक्षा कवच माना जाता है. इस सूत की माला को पूरी निष्ठा और पाक-साफ तरीके से तैयार करने में भागलपुर के काजीचक की मुस्लिम महिलाओं का हाथ है.

मुस्लिम परिवार की महिलाएं छठ पर्व के लिए बद्धी का निर्माण करती हैं. उनके घर में एक महीने पहले से ही मांस और लहसुन -प्याज खाना वर्जित हो जाता है. ये लोग पाक -साफ होकर हिंदू धर्म की आस्था पर विश्वास करते हुए पूरी निष्ठा से बद्धी का निर्माण करती हैं.
 
बीबी यासमीन का परिवार छठ पूजा में कच्चे बांस के बने सूप पर चढ़ाने वाले बद्धी का निर्माण करता है. दिल्ली और कोलकाता से कच्चा माल किरची धागा मंगवा कर पूरा परिवार एक साथ छह महीने पहले से बद्धी निर्माण में जुट जाता हैं.
 
ये माला या सिकड़ी के आकार का चार लड़ियों वाला एक गहना होता है.इसकी दो लड़ी गले में होती हैं और दो दोनों कंधों पर से जनेऊ की तरह बाहों के नीचे होती हैं,जो छाती और पीठ तक लटकी रहती है.
 
इसका सप्लाई भागलपुर के अलावे नवगछिया, पूर्णिया, कटिहार, समस्तीपुर, मुंगेर, बांका जैसे इलाकों में बड़े पैमाने पर किया जाता है.भागलपुर के काजीचक, लोहापट्टी, हुसैनाबाद नाथनगर के तकरीबन 50 से 60 मुस्लिम परिवार महीनों छठ पूजा आने का इंतजार करते हैं.
 
इसे बनाने के लिए लोग महीनों पहले से जुट जाते हैं. बीबी यासमीन बताती हैं कि दादा परदादा के टाइम से बन रहा है. पवित्रता के लिए हम लोग एक महीने पहले से मांस-मछली और लहसुन-प्याज खाना छोड़ देते हैं, ताकि शुद्धता पूरी तरह बनी रहे. हमें ये काम करने में बहुत अच्छा लगता है.