किसी का जबरदस्‍ती मजहब बदलना इस्‍लाम में नहींः सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 05-02-2021
सैय्यद नसीरुद्दीन चिश्ती
सैय्यद नसीरुद्दीन चिश्ती

 

ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीं काउंसिल के चेयरमैन सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती मानते हैं कि राष्ट्र को सशक्त बनाने और तरक्की की नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए पहले अमन कायम करना होगा. वह कहते हैं कि जब देश में सुकून होगा और एक-दूसरे से मिलकर काम करेंगे तभी हमारा आत्मनिर्भर बनने का सपना पूरा होगा. ‘आवाज द वायस’ हिंदी के संपादक मलिक असगर हाशमी से खास बातचीत का पढ़िए दूसरा हिस्साः 

सवालः राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की आपने अपनी तरफ से क्या कोशिश की है?

सैय्यद नसीरुद्दीन चिश्तीः हमारी कोशिश है कि एयर कंडीशन रूम में बैठकर काम न करें. वीडियो कांफ्रेंसिंग से हमारा मैसेज है सूफीज्‍म का, वह नहीं पहुंचेगा. गांव-देहात जहां पर लोगों को मालूम ही नहीं है, सूफीज्‍म क्‍या है, हम वहां तक पहुंचना चाहते है. गांवों में या रोड पर चौपाल लगाकर सूफीज्‍म की तब्‍लीग की जाए. दरगाहों के पैगाम को वहां तक पहुंचाया जाए. मैं खुद अलग-अलग स्‍टेट में दौरे कर रहा हूं. वहां नौजवानों से मिलकर यही कहता हूं कि बुजुर्गाने दीन की तालीमात क्‍या है, उनकी शख्सियत, उनकी अजमत और ताकत क्‍या है, वह समझाता हूं.

जो बादशाह यहां तलवार के दम पर हुकूमत करने आए थे, उनके मजारों का कोई पता नहीं है, उनका कोई नामलेवा नहीं है. गरीबनवाज जैसी शख्सियत, उनके बाद जितने बुजुर्गाने दीन गुजरे, जो मोहब्‍बत दी और फकीरी में जिंदगी गुजारी, उनके मजारों पर लाखों, करोड़ों लोग आते है.

दरगाहों का राष्‍ट्र निर्माण में बहुत अहम रोल हो सकता है, बशर्तें तवज्‍जो दी जाए. दरगाहों के सज्‍जादानशीं से भी अपील करता हूं कि वह हमारे साथ आएं और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें. 

सवालः अभी चर्चा चल रही है जनसंख्‍या नियंत्रण को लेकर, इसे इस्‍लामिक नजरिए से आप कैसे देखते हैं?

सैय्यद नसीरुद्दीन चिश्तीः  देखिए मैं मुफ्ती तो नहीं हूं कि बोलूं कि इस्‍लामिक नजरिए से कैसे देखता हूं, लेकिन जो मौजूदा हालात हैं, उसे देखते हुए मेरा मानना है कि इंसान अपनी हैसियत से ही काम करे तो ज्‍यादा बेहतर है कि आज के दौर में एक बच्‍चे की परवरिश करना आसान होता है और वहीं आपके 10-15 बच्‍चे हैं, तो आपके बच्‍चों की पर‍वरिश में दिक्‍कत आएगी.

मजहबी मामले में मुफ्ती एकराम ही राय देंगे, लेकिन मेरी जाती राय सामाजिक नजरिए से देना चाहता हूं कि ज्‍यादा बच्‍चे होते हैं, तो उसका लालन-पालन कैसे करेंगे, खुद का भविष्‍य खराब और बच्‍चों का भी भविष्‍य खराब. इस कंपटीशन के दौर में तालीम नहीं दे पा रहे हैं, तो बच्‍चे आगे जाकर क्‍या करेंगे. हमें इस नजरिए से सोचना चाहिए.

सवालः क्या वक्‍त के हिसाब से मदरसों को मॉर्डनाइजेशन की, थोड़ी तब्‍दीली की जरूरत है?

सैयद नसीरुद्दीन चिश्तीः इसमें बहुत स्‍पष्‍ट मेरी राय है कि मौजूद वक्‍त जदीद टेक्‍नोलॉजी का है. मॉर्डन जमाना है. नए-नए टेक्‍नोलॉजी इंट्रोड्यूज की जा रही है. मदरसों में भी दीनी-तालीम के साथ मॉर्डन टेक्‍नोलॉजी पढ़ाई जानी चाहिए, ताकि मजहबी मामलात के साथ दुनिया की एजुकेशन में भी आगे बढ़ सके.

मॉर्डन एजुकेशन में इंजीनियरिंग है, कंप्‍यूटर से रिलेटेड है. डॉक्‍टरी है. इसमें हुकूमत से अपील करता हूं कि इसमें एक फेहरिस्‍त बनाकर तैयार की जाए, जो पुराने कदीमी मदरसे है, उनके लिए एक डेवलपमेंट प्‍लान लाया जाए, इंट्रोड्यूज किया जाए. ताकि बच्‍चों को तरक्‍की मिल सके. इस मुल्‍क में तमाम मजहब के लोग रहते हैं.

सबका साथ सबका विकास का हम नारा सुनते हैं और यह चल भी रहा है. इसमें कोई पार्शियालटी नहीं हो रही है. अगर मदरसे के बच्‍चे भी जदीद तालीम लेंगे तो हमारा मुल्‍क भी तरक्‍की करेगा और बच्‍चे भी इंजीनियर बनेंगे. अमेरिका, यूरोप में प्‍लेसमेंट होगा, तो हमारे मुल्‍क के लिए फायदेमंद रहेगा. इसलिए मदरसों का मॉर्डनाइजेशन होना बहुत जरूरी है.

सवालः सरकार की तरफ से आता है और माहौल बन रहा है कि हमें खुद आत्‍मनिर्भर होना पड़ेगा. इसके लिए स्किल एजुकेशन बहुत जरूरी है. आपको लगता है कि मुसलमानों को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए?

सैयद नसीरुद्दीन चिश्तीः स्किल डेवलपमेंट की बहुत सख्‍त जरूरत है और आत्‍मनिर्भर भारत का नारा जो लगाया गया है इस एजेंडे में कंधे से कंधा मिलाकर काम करना है और दुनिया को दिखाना है कि हमारा भारत आत्‍मनिर्भर है. हम इसमें काफी हद तक कामयाब हुए है. अल्‍लाह ने चाहा तो आगे भी कामयाब होंगे.

सवालः यह सवाल दरगाह से रिलेटेड है, लोग अजमेर में दरगाह जाते हैं और अपना अकीदा पेश कर चले आते हैं, लेकिन लोग जानना चाहते हैं कि इंसानी फलह के लिए क्‍या-क्‍या किया जा रहा है?

सैयद नसीरुद्दीन चिश्तीः देखिए हमारे यहां जो दरगाह का मैनेजमेंट है, उसके लिए दरगाह मैनेजमेंट एक्‍ट 1955 का बना हुआ है. इसमें अल्‍पसंख्‍यक मंत्रालय द्वारा गवर्न होती है. सीधे केंद्र सरकार से. मंत्रालय के तरफ से एक कमेटी बनाई जाती है, इसमें एक सीनियर ऑफिसर होते हैं, जो कमेटी मेंबर के साथ काम करते हैं.

सबसे पहले लंगर की बात करता हूं. यहां पर सुबह शाम लंगर तकसीम किया जाता है दरगाह कमेटी द्वारा. इसके अलावा जायरीन के लिए छोटी डिस्‍पेंसरियां चलाई जा रही हैं और उर्स के दौरान जो गरीब जायरीन आते हैं, उसके लिए 80 बीघा में एक विश्राम गृह डेवलप किया है, वहां पर वह रुक सकते हैं.

हाल में खानकाह के एक प्रॉपर्टी पर हमने पब्लिक टॉयलेट बनवाए हैं, पहले छोटी-मोटी थी. अब बड़े पैमाने पर यह सहूलियत है. निर्माण कार्य जारी है, इस महीने के आखिरी तक मुकम्‍मल हो जाएगा. इसके अलावा और भी काम कराए जा रहे हैं. इसके अलावा रमजान के मौके पर और ऐसे भी गरीबों की मदद की जाती है. काम सारे चल रहे हैं.

खानकाहों का जो निजाम है, जो तरीका है उसके हिसाब से सारे काम किए जा रहे हैं और भी डेवलपमेंट की जरूरत है और आपके मार्फत से हुकूमत से अपील करना चाहता हूं कि 1955 में बने एक्‍ट के वक्‍त हालात कुछ और थे और मौजूद वक्‍त में हालात चेंज हो चुके हैं. उस जमाने में गरीब नवाज की चौखट पर उर्स के वक्‍त पब्लिक आती थी और अब 12 महीने भीड़ रहती है.

दरगाह के एतराफ का जो एरिया है, उसका डेवलपमेंट होना बहुत जरूरी है. जिस पर हुकूमत तवज्‍जो दे. यह देश की बड़ी दरगाह है. सबसे बड़ा एदारा है. इसके डेवलपमेंट के लिए हुकूमत को सोचना चाहिए.

सवालः दरगाहों के अंदर जाने पर अकीदतमंदों को बहुत परेशानी होती है. आप ऐसा इंतजाम कर रहे हैं कि परेशानी न हो, या कम हो?

सैयद नसीरुद्दीन चिश्तीः कोशिश हम लोग करते हैं, हमारे यहां के जो इंतजमिया कमेटी है वह कर रही है, लेकिन मसला यह है कि पहले जायरीन एक दो मौके पर आते थे. एक ख्‍वाजा उस्‍मान हारुनी के उर्स के मौके पर या ख्‍वाजा गरीब नवाज के उर्स के मौके पर, लेकिन अब यहां 12 महीने जायरीन आते हैं. दरगाह का स्‍ट्रक्‍चर पुराना है.यहां पर काफी डेवलपमेंट की जरूरत है. दरगाह के आसपास की जो गलियां हैं, वहां पर पब्लिक को घूमने या जाने में बहुत दिक्‍कत होती है. उसके लिए एक लेआउट प्‍लान बनाने की जरूरत है.

हमलोग चाहते हैं कि हुकूमत दरगाह से जुड़े हुए लोगों की एक कमेटी बनाकर विचार विर्मश करे और सुझाव ले और एक बड़ा डेवलपमेंट काम करवाएं.

सवालः एक सवाल पड़ोसी मुल्‍क से जुड़ा है. वहां मंदिर को ढहा दिया गया और कंवर्जन का बड़ा मसला है. यहां भी यह मसला बन गया है. इसको कैसे देखते हैं?

सैयद नसीरुद्दीन चिश्तीः अधिकारिक तौर पर कहना चाहता हूं और मेरे वालिद सज्‍जादानशीं साहब ने भी इसकी घोर निंदा की है, जो वहां मंदिर को तोड़ा गया है. स्‍पष्‍ट रूप से कहना चाहता हूं कि पाकिस्‍तान एक मुस्लिम मुल्‍क है. उसकी ज्‍यादा जिम्‍मेदारी है कि शरई मसलों को पाबंदी के साथ फॉलो करे, उसको मानें.

किसी का जबरदस्‍ती मजहब बदलना हमारे इस्‍लाम में नहीं है. दूसरी बात किसी के मजहबी इदारे को नुकसान पहुंचाना हमारे इस्‍लाम में इजाजत नहीं है. किसी को मजहब के नाम पर परेशान करने की इजाजत नहीं है. अगर पाकिस्‍तान हुकूमत ऐसा कर रही है तो सख्‍त अल्‍फाज में उसकी निंदा करता हूं.

ऑल इंडिया सूफी सज्‍जादानशीं काउंसिल उसकी निंदा करती है. यह जो नया ट्रेंड चल रहा है एक दूसरे के मजहबी इदारों को तोड़ना और उसको नुकसान पहुंचाना का. यह हमारे आने वाले लोगों को गलत रास्‍ता दिखा रहा है. इससे एक दूसरे के प्रति घृणा और एक दूसरे के प्रति दुश्‍मनी बढ़ेगी.

मजहबी अलगाव पैदा होगा. इसलिए हम तो आपके चैनल के माध्‍यम से यूएनओ से अपील करते हैं दुनिया में शांति कायम किया जाए और दुनिया में कही भी जो रिलीजियस इंस्‍टीट्यूशंस है उनको प्रोटेक्‍शन देने की जिम्‍मेवाही वहां की हुकूमत है,उसे यूएनओ एनश्‍योर करें.

सवालः एक आखिरी सवाल, वैक्‍सीन को लेकर जो हराम हलाल का किस्‍सा शुरू हो गया है यह वाजिब है क्‍या?

सैयद नसीरुद्दीन चिश्तीः देखिए, कौन क्‍या कहता है, जिसकी जैसी सोच है, वैसा कह रहे हैं. इस मामले में जब तक किसी चीज की तस्‍दीक नहीं हो, उस मामले में बोलना वाजिब नहीं है. सोशल मीडिया से लोगों में गलत-फहमी पैदा हो रही है. तस्‍दीक हो जाए, किस वजह से हराम बताया जा रहा है, या ऐसे मामलता है या नहीं.

इसमें एक आदमी की राय नहीं, सभी लोगों की राय लेनी चाहिए, क्‍योंकि इस समय पूरी दुनिया इस वायरस से बहुत परेशान है और बहुत दिनों बाद कोई दवाई आ रही है, तो इसका इस्‍तेमाल किया जाना चाहिए, जो हराम हलाल का मसला है, इसे मुफ्ती एकराम तय करें तो ज्‍यादा अच्‍छा है कोई इंडीविजुअल बोले तो यह ठीक नहीं है.