भूकंप पीड़ितों की सहायता और क्रांतिकारियों से मिलने पूर्णिया आए थे बापू

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 01-10-2021
पूर्णिया में बापू प्रतिमा
पूर्णिया में बापू प्रतिमा

 

सुल्ताना परवीन  / पूर्णिया

गांधी जयंती के मौके पर पूरा देश बापू को याद कर रहा है. ऐसे में बिहार का पूर्णिया जिला बापू को याद करने में कैसे पीछे रह सकता है. महात्मा गांधी 1934 में तीन दिन के लिए पुर्णिया आए थे. पहले वो रानीपतरा पहुचे, वहां पर भूकंप पीड़तों की मदद के लिए जनसभा को संबोधित किया. उसके बाद अगले दिन रुपौली प्रखंड के टिकापट्टी गए थे और वहां पर दो दिन रुके थे. टिकापट्टी में उन्होंने आजादी के आंदोलन के लिए काम कर रहे क्रांतिकारियों से मुलाकात की थी और कुर्सेला तक पैदल यात्रा की थी.

महात्मा गांधी जब नेपाल से लौट रहे थे तब 09 अप्रैल 1934 को भूकंप पीड़ितों की सहायता के लिए पूर्णिया पूर्व प्रखंड के रानीपतरा आए थे. जहां पर उन्होंने भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था.

जिस स्थान पर उन्होंने लोगों को संबोधित किया उसी जगह बिहार के गांधी कहे जाने वाले सर्वोदयी नेता वैद्यनाथ चौधरी ने 12 जून, 1952 को सर्वोदय आश्रम की स्थापना की. इस आश्रम में स्वरोजगार और स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए अन्य कार्यों के अलावा खादी तैयार करने के लिए चरखा और करघा उद्योग लगाया गया. यहां की तैयार खादी वस्त्र दूर-दूर तक जाते थे. उनकी याद में आश्रम के बाहर गांधी चबूतरा भी बना है.

संस्थापक बैद्यनाथ प्रसाद चौधरी एवं उनके प्रमुख सहयोगी कमलदेव नारायण सिंह,नरसिंह नारायण सिंह,अनिरूद्ध प्रसाद सिंह, बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह, गुलाब चंद साह, रामाचरण सिंह, रामेश्वर ठाकुर, भृगुनाथ सिंह जैसे नेताओं ने इस आश्रम को राष्ट्रीय स्तर पर ला खड़ा किया था.

लगभग 15 एकड़ जमीन में फैले इस आश्रम की दरो-दीवार इसकी भव्यता के गवाह हैं. इस आश्रम में भूदान के प्रर्वतक आचार्य विनोबा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे महानयकों ने महीनों रह कर सर्वोदय और भूदान का अलख जगाया था. इस आश्रम के अंदर ही सैकड़ों-परिवार निवास करते थे जिन्हें सर्वोदय विचारधारा के अंतर्गत रहना और जीना सिखाया जाता था. आश्रम में सैकड़ों लोग आज भी रह रहे हैं लेकिन वो विचार धारा कहीं खो सी गई है.

राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सेवानिवृत प्रधानाध्यापिका अर्चना देव कहती हैं कि जब बापू रानीपतरा आए थे तो उनके मामा और उनकी मां बापू को सुनने के लिए गए थे. वो कहती हैं कि बापू की याद में यहां पर जो कुछ भी था समय के उसका रंग फीका पड़ने लगा है.

प्रगतिशील किसान और सीमांचल मोर्चा के अध्यक्ष वीके ठाकुर कहते हैं कि रानीपतरा को पर्यटन के रुप में विकसित करने की जरूरत है. बापू से जुड़ी यादों को यहां पर संजोने की जरूरत है.

वर्ष 1934 के 10 अप्रैल को महात्मा गांधी टीकापट्टी पहुंचे थे. बताया जाता है कि वहां पर उन्होंने दो दिन बिताए थे. जिस स्थान पर बापू ने रात्रि विश्राम किया था, उस स्थान का नाम स्वराज आश्रम दिया गया. टीकापट्टी से गांधी जी ने कुर्सेला तक 10 किलोमीटर पदयात्रा भी की थी. कहते हैं कि टिकापट्टी उन दिनों क्रांतिकारियों का अड्डा था. यहीं से आजादी के आंदोलन की रूप रेखा तय होती थी. भोला पासवान शास्त्री और बैजनाथ चौधरी जैसे क्रांतिकारी यहीं से आजादी के लिए काम करते थे. भोला पासवान शास्त्री बाद में बिहार में मुख्यमंत्री बने. इन्हीं क्रांतिकारियों को संबोधित करने और आजादी के आंदोलन को मजबूत करने के लिए महात्मा गांधी टिकापट्टी आए थे.

जब बापू ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो टिकापट्टी के क्रांतिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. रूपौली थाना में आग लगाकर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी.

टिकापट्टी के रहने वाले केंद्रीय विद्यालय के सेवानिवृत शिक्षक आनंदी प्रसाद मंडल कहत हैं कि टिकापट्टी एक राष्ट्रीय धरोहर है. सरकार से यहां के लोगों को जितनी उम्मीद थी वो अभी तक पूरी नहीं हुई है. गांधी जी की याद में टिकापट्टी में गांधी द्वार भी था जिसे 25 दिसंबर, 2018 को तोड़ दिया गया. 15 नवंबर 2019 को जब बिहार के मुख्यमंत्री टिकापट्टी पहुंचे तो उन्होंने स्वराज आश्रम को गांधी सर्किट से जोड़ने और वहां पर भव्य ऑडिटोरियम बनाने का ऐलान किया.