बिहारः बज़्म दोस्तां ने खानकाह और शायरी के रिश्तों की रिवायत को किया ज़िंदा

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 03-12-2021
पटना में जमी अदबी महफिल
पटना में जमी अदबी महफिल

 

सेराज अनवर/ पटना

अज़ीमाबाद में आजकल अदब की फ़िज़ा घुली हुई है. शेर और शायरी की महफ़िल सज रही है,पुस्तकों का विमोचन चल रहा है. अज़ीमाबाद की साहित्यिक रिवायत फिर से परवान चढ़ रही है. महफिलों में अदबनवाज़ शख़्सियतों की जुटान हो रही है. उर्दू से मुहब्बत को लेकर शिकवा भी किया गया तो इसकी रौशन तारीख़ की दास्तान से भी रु-ब-रू कराया गया. यह महफ़िल बज़्म दोस्तां ने सजायी थी. तक़रीब तरही मुशायरा के सौ साल के सफर की यादगार में आयोजित की गयी थी.

गौरतलब है कि तरही मुशायरा का आग़ाज़ 1919में हुआ था. शेरी रिवायत को परवाज़ देने में खानकाहों की भूमिका का भी ज़िक्र किया गया. तरही मुशायरा को आयाम देने में बज़्म दोस्तां का अहम रोल रहा है.

शेरी रिवायत को परवाज़ देने में खानकाहों की भूमिका का भी ज़िक्र किया गया


खानक़ाह और मुशायरा का रिश्ता

खानक़ाह शाह अरज़ा में आयोजित साहित्यिक समारोह में मित्तनघाट स्थित खानक़ाह मोनअमिया के सज्जादानशीं मौलाना शमीम अहमद मोनअमी ने खानक़ाहों से उर्दू शायरी के रिश्तों का ज़िक्र करते हुए कहा कि काव्य परंपरा को आगे बढ़ाने में खानकाहों की अहम भूमिका रही है और इल्म तथा अदब को सींचने का भी काम किया है. उन्होंने कहा कि 1919में जिन शख़्सियतो ने तरही मुशायरा कराया था उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि इस मुशायरे की यादगार 100साल बाद शानदार तरीक़े से मनाई जायेगी.

450साल पुराने खानक़ाह में अदबी महफ़िल में शिरकत करने और शायरों को सुनने पर शमीम मोनअमी ने ख़ुशी का इज़हार किया. उन्होंने अदबी तंज़ीम बज़्म दोस्तां की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह नवाबों की भी दोस्त है और फक़ीरों की भी.बज़्म दोस्तां का कमाल यही है. इस मौक़े पर बज़्म दोस्तां की तरफ से ‘एक और काविश’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया.

 

उर्दूवालों से शिकवा

उर्दू के प्रख्यात साहित्यकार प्रो. अलीमुल्लाह हाली ने शिकायत की कि उर्दूवाले ही उर्दू ज़बान की नाक़दरी कर रहे हैं,इस स्तरीय भाषा से दूर होते जा रहे हैं जबकि दूसरे भी मानते हैं कि उर्दू सभ्य और मीठी ज़बान है. प्रो. एजाज अली अरशद ने तरही मुशायरा की प्रासंगिकता बताते हुए कहा कि यह कल भी उपयोगी थी और आज भी है. इसके साथ ही शायरी में नयापन लाने पर ज़ोर दिया. उन्होंने कहा कि बज़्म दोस्तां का तरही मुशायरा को आगे बढ़ाने की पहल सराहनीय है.


खानकाह-ए-मोअज्जम बिहारशरीफ के सज्जादानशीं सैय्यद शाह सैफुद्दीन फिरदौसी ने बज़्म दोस्तां की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इस बज़्म ने बहुत ही कम समय में एक विशिष्ट पहचान बनाई है. दरगाह शाह अरज़ा के सज्जादानशीं सैयद शाह अंजार अहमद ने कहा कि आज का मुशायरा इसी प्राचीन परंपरा की एक उत्कृष्ट कड़ी है.


रवायतों को जिंदा रखने की कोशिश


हामिद अज़ीमाबादी ने रिवायत को ज़िंदा रखा

कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार डॉ. रेहान गनी ने कहा कि ‘एक और काविश’ बज़्म दोस्तां का एक और गुलदस्ता है. इससे पहले, बज्म दोस्तां ने ‘एक और जिस्त’नामक एक गुलदस्ता प्रकाशित किया था. उन्होंने कहा कि अजीमाबाद में कविता की परंपरा और साहित्यिक माहौल को बनाए रखने वाले साहित्यिक व्यक्तित्व हजरत सैयद शाह हामिद हुसैन हामिद अजीमाबादी थे. इस मौक़े पर एक तरही मुशायरा का भी आयोजन किया गया. इस कविता में पहली बार डॉ. सैयद शाह शमीमुद्दीन अहमद मोनअमी ने भी कविता पाठ किया. बज़्म दोस्तां के अध्यक्ष मोईन कौसर ने बज़्म की कारगुज़ारियों को पेश किया.

बुद्धिजीवियों का जमावड़ा (सभी तस्वीरेंः सेराज अनवर)


हर कोई तारीफ़ करता है सबक रफ़्तार की

इस मुशायरे का मिसरा इस तरह था. . . ‘हर कोई तारीफ़ करता है सबक रफ़्तार की’ नशाद औरंगाबादी, मरगुब असर फ़ातमी, नियाज नजर फ़ातमी, मोइन कौसर, जिया-उर-रहमान जिया, इफ्तिखार आकिफ, जफर सिद्दीकी, फरदुल हसन फर्द, बेनाम गिलानी, नसर आलम नसर, जमाल काकवी, मासूमा खातून, तहसीन रोजी, निकहत परवीन, आसिफ अजीम आबादी, शमीम अहमद शमीम, कलीमुल्ला कलीम दोस्त पुरी, मोइन गिरीडीहवी, शकील सासारामी,  सोहेल फारूकी, मीर सज्जाद,अहमद साज़ क़ादरी,शमीम शोला,शफी बाज़िदपुरी,मौलाना अब्दुल रज़्ज़ाक़ पैकर रिज़वी,मोहम्मद राशिद आज़म,मज़हर जाहिदी,सलाहुद्दीन अफज़ल,मसलाहुद्दीन काजिम,डॉ. कंबर अली,असग़र हुसैन कामिल,हैदर इमाम हैदर,नईम सबा आदि ने अपने कलाम सुनाये.