तमाम हुज्जत के बाद अमीर-ए-शरीयत का चुनाव टला, देर रात हुआ ऐलान

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 31-07-2021
इमारत-ए-शरिया का दृश्य
इमारत-ए-शरिया का दृश्य

 

सेराज अनवर / पटना

इमारत-ए-शरिया के सौ साला इतिहास में पहली बार अमीर-ए-शरीयत का चुनाव स्थगित करना पड़ा है. अब हालात के मद्देनजर इमारत के दस्तूर के मुताबिक चुनाव कराया जाएगा, जिसकी तिथि बाद में घोषित की जाएगी. नामांकन के पहले ही दिन देर रात इसका ऐलान किया गया.

29 से 31 जुलाई तक नामांकन की तिथि तय थी. चुनाव 8 अगस्त को था. अगले आदेश तक चुनाव को स्थगित कर दिया गया है. स्थगन के बाद बिहार सहित देश भर के मुसलमानों ने राहत की सांस ली है.

चुनावी प्रक्रिया को लेकर विवाद था. इमारत-ए-शरिया के आठवें अमीर-ए-शरियत का चुनाव बिहार, झारखंड, ओड़िसा, ंगाल के 15 मतदान केंद्र पर होना था.

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फैसल रहमानी अपने मरहूम पिता वली रहमानी के साथ 


गुरुवार को  करीब चार घंटे तक इमारत सभागार में चली आपात बैठक में यह फैसला लिया गया.

बैठक के बाद इमारत द्वारा जारी बयान में  कहा गया कि वीकेंड रविवार को झारखंड और ओड़िसा में लॉकडाउन रहता है. इसलिए चुनाव को स्थगित करना पड़ा.

उन्होंने कहा कि चुनाव स्थगित करने के लिए शूरा की ओर से भी ज्ञापन आया था. अमीर-ए-शरीयत को हमेशा एक स्थान पर बैठकर सर्वसम्मति से चुना गया है. इन्हीं सब कारणों से चुनाव कमेटी को आखिरकार चुनाव को टालना पड़ा.

किस बात पर विवाद था?

विवाद का मूल कारण था कि 100 साल के इतिहास में पहली बार बैलेट पेपर से चुनाव कराने का निर्णय लिया गया. दूसरा विवाद नामांकन पत्र पर अरबाब हल व अक्द (अमीर-ए-शरीयत चुनने का अख्तियार वाली कमेटी) के 151 सदस्यों की सिफारिश को लाजिमी किया गया.

नायब अमीर-ए-शरीयत मौलाना शमशाद रहमानी को चुनाव कराने के लिए अधिकृत किया गया. उन्होंने इसके लिए 11 सदस्यीय कमेटी गठित कर दी.

कमेटी ने निर्णय किया कि अमीर-ए-शरीयत का चुनाव बैलट पेपर से होगा. भारत के इस्लामिक इतिहास में कभी भी मजहबी पेशवा का चुनाव बैलट पेपर से नहीं हुआ है.

आरोप है कि एक व्यक्ति विशेष को पद पर बैठाने के लिए यह रणनीति रची गयी.विवाद का असल जड़ यही था. चुनाव के लिए पंद्रह सेंटर बनाये गये.

इमारत-ए-शरिया पटना फुलवारी शरीफ में है. मगर पटना में एक भी सेंटर नहीं बनाया गया. पटना से दूर बाढ़ में एक सेंटर बनाया गया.

फतवा ने बदल दिया रुख

इमारत-ए-शरिया के दारुल इफ्ता के सदर मुफ्ती सुहैल अहमद कासमी ने फतवा दिया कि जिस तरह से बैलेट पेपर से चुनावी अमल को अंजाम देने की तैयारी चल रही है और एक उम्मीदवार के लिए 151 सदस्यों की सिफारिश जरूरी है, यह तरीका पूरी तरह से गैर शरई और इमारत के दस्तूर के खिलाफ है.

मुफ्ती सुहैल ने दरभंगा के जमालपुर निवासी मोहम्मद नेमतुल्लाह कासमी द्वारा दारुल इफ्ता (फतवा विभाग) से फतवा मांगने पर फतवा दिया.

इस फतवा के आने के बाद अमीर-ए-शरियत का चुनाव कराने वाली 11 सदस्यीय कमेटी के साथ ही इमारत के ओहदेदारों में खलबली मच गई. अपने ही फतवा विभाग को इमारत-ए-शरिया कैसे चुनौती दे सकती है. फतवा के बाद से ही चुनाव स्थगित होने की चर्चा जोर पकड़ने लगी.

चुनावी कमेटी पर भी सवाल

इमारत-ए-शरिया के दस्तूर के बरक्स 11 सदस्यीय कमेटी की गैर जम्हूरी तरीकाकार से नाराज हो कर कमेटी के सबसे अहम सदस्य मुफ्ती नजर तौहिद ने इस्तीफा दे दिया. उनका त्यागपत्र कमेटी के कामकाज के तरीके पर सवाल खड़ा कर रहा है.

शूरा ने नायब अमीर-ए-शरीयत को एक कमेटी गठित करने को अधिकृत किया था.कमेटी का काम सिर्फ उन सदस्यों की रिक्ति को पूर्ति करना था, जिनका निधन हो गया है.

मौलाना शमशाद रहमानी ने 11 सदस्यीय कमेटी गठित कर सभी जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली. शूरा और अरबाब हल वो अक्द (851 सदस्यीय कमेटी, जिसको वोटिंग का अधिकार है) के अख्तियार को गौण कर दिया गया.

कमेटी की मनमानी से खफा मुफ्ती नजर तौहिद ने यह कह कर इस्तीफा दे दिया... साकी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में.

उन्होंने मौलाना शमशाद रहमानी के नाम खुला खत में कहा कि आप अमीर-ए-शरीयत के चुनाव को लेकर निष्पक्ष नहीं हैं. इमारत-ए-शरिया में गैर शरई, असंवैधानिक, अनैतिक हस्तक्षेप इमारत की आत्मा के खिलाफ आपका संरक्षण प्राप्त है. अतः आपकी पक्षपाती मानसिकता के साथ रहना और काम करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है. इस वजह से 11 सदस्यीय कमिटी से इस्तीफा देता हूं.

11 सदस्यीय चुनाव कमेटी से मुफ्ती इमारत-ए-शरिया मोहम्मद सईदुर्रहमान ने भी त्यागपत्र दे दिया.

इस बीच इमारत-ए-शरिया के शूरा (हेड बॉडी) के अहम सदस्य और इमारत-ए-शरिया ट्रस्ट के ट्रस्टी मोहम्मद जावेद इकबाल एडवोकेट ने भी चुनाव को स्थगित करने की मांग की.

उन्होंने नायब अमीर-ए-शरीयत के नाम पत्र में शूरा का इजलास बुलाने की सलाह दी और अमीर ए शरीयत का चुनाव पटना में कराने की मांग रखी.

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मौलाना ख़ालिद सैफुल्लाह रहमानी 


मंजर बदल कैसे गया?

अमीर-ए-शरीयत का चुनाव करीब आते ही मंजरनामा तेजी से बदलने लगा. अभी तक आगे चल रहे अहमद वली फैसल रहमानी को उनके ही रिश्तेदार मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने चुनौती दे दी.

चुनावी गहमा-गहमी के बीच अमीर-ए-शरीयत की उम्मीदवारी से रजामंद नहीं दिखने वाले मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी एक शादी समारोह में शिरकत करने पटना पहुंच गये.

इस दौरान इमारत-ए-शरिया भी गये और राजधानी के एग्जिबिशन रोड स्थित मस्जिद अब्दुल हई में आयोजित एक धार्मिक मजलिस (दर्स ए कुरान) में शरीक हुए. उनके बारे में चर्चा आम थी कि वह अमीर-ए-शरीयत के लिए तैयार नहीं हैं.

मजलिस खत्म होने के बाद उनसे गुजारिश की गयी कि अमीर-ए-शरीयत के चुनाव को लेकर कौम में बेचैनी है. सबकी राय है कि अमीर-ए-शरीयत आपसे बेहतर कोई नहीं है. इसलिए अमीर-ए-शरीयत की पेशकश को आप कुबूल कर लें, ताकि इमारत-ए-शरिया में उत्पन्न विवाद को खत्म किया जा सके.

पहले तो उन्होंने इंकार किया, लेकिन लोगों की गुजारिश पर यह कह कर तैयार हुए कि यदि उनके नाम पर सर्वसम्मति बनती है ,तो मैं फिर तैयार हूं.

इस मौके पर बड़ी संख्या में शहर के सम्मानित शख्सियतें मौजूद थीं. यहीं से नजारा बदल गया.

जो लोग फैसल रहमानी पर हिचकिचा रहे थे, उन्हें उनके मन का उम्मीदवार मिल गया.

इस बीच फतवा ने असल काम किया. बाहरी दबाव भी बना हुआ था.

इस दौरान इनका एक अहम बयान आया कि नायब अमीर-ए-शरीयत मौलाना शमशाद रहमानी ने जो चुनावी प्रक्रिया तय की है, वह शरीयत के खिलाफ है.

कौन हैं सैफुल्लाह रहमानी?

मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी दरभंगा के रहने वाले हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दिवंगत अध्यक्ष काजी मुजाहिदुल इस्लाम कासमी के भतीजा हैं. सैकड़ों किताबों के लेखक हैं. देश के बड़े उलेमा में इनका नाम आता है. वर्तमान में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव हैं. सहाफी भी हैं.

मौजूदा सियासी हालात पर देश भर के अखबारों में इनका लेख प्रकाशित होता है.अभी समान नागरिक संहिता पर इनके लेख को खूब पसंद किया जा रहा है. लेख में इन्होंने इसके नुकसानात का जिक्र किया है. शरीयत और इस्लामी कानून (फिकह) पर इनकी जबरदस्त गिरफ्त है. सामाजिक और सियासी जानकर भी उतना ही हैं. पद का लोभ नहीं है. अमीर-ए-शरीयत मौलाना मोहम्मद वली रहमानी के इंतकाल के बाद इन्हें बोर्ड का महासचिव नियुक्त किया गया. अभी तक अमीर-ए-शरीयत के लिए खुद से तैयार नहीं हैं, पद के लिए किसी तरह की लॉबिंग से परहेज है. इनकी सादगी ही इनकी पहचान है.

अमीर ए शरीयत के कितने दावेदार?

इस पद के चार-पांच दावेदारों में खानकाह रहमानी, मुंगेर के सज्जादानशीं हजरत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी आगे चल रहे थे. वे सातवें अमीर-ए-शरियत हजरत मौलाना मोहम्मद वली रहमानी के बेटे और चौथे अमीर-ए-शरियत हजरत मौलाना मिन्नतुल्लाह रहमानी के पोते हैं.

इसी साल 3 अप्रैल को अमीर-ए-शरीयत मौलाना वली रहमानी का इंतकाल हो गया था.

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मौलाना शिब्ली अल क़ासमी 


इमारत के पूर्व नाजिम मौलाना अनिसुर रहमान कासमी भी एड़ी चोटी लगाये थे. मगर नाजिम रहते हुए कुछ विवादों से वह उम्मीदवारी में पिछड़ गये.

मुफ्ती नजर तौहिद पर भी लोगों की नजर है. वह झारखंड के चतरा निवासी हैं.

इमारत-ए-शरिया बिहार में है. इसलिए बिहार के लोग झारखंड के मौलाना को अमीर-ए-शरीयत बनाना पसंद नहीं करेंगे. अधिक्तर अमीर-ए-शरीयत का पद मुंगेर के खानकाह रहमानी और फुलवारीशरीफ स्थित खानकाह मुजीबिया के इर्द-गिर्द घूमता रहा है.

मौलाना वली रहमानी साहब के कोरोना से निधन के बाद से ही नये अमीर-ए-शरीयत को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.

नायाब अमीर-ए-शरीयत मौलाना शमशाद रहमानी के नेतृत्व में नये अमीर-ए-शरीयत की नियुक्ति होनी थी.

इसके लिए जानकारों का कहना है कि तीन माह का ही समय नायब अमीर-ए-शरीयत के पास रहता है, जो वक्त गुजर गया. अब चुनाव का सारा अख्तियार खुद-ब-खुद शूरा (सुप्रीम बॉडी) के पास चला गया है.

ताजा चुनाव के लिए नाजिम शूरा की बैठक बुला सकते हैं. अब शूरा ही तय करेगा कि चुनाव कब और कैसे होना है?