राकेश चौरासिया / आगरा
हिंदुस्तान, पाकिस्तान और ईरान में जरदोजी की नयनाभिराम कलाकृतियां शताब्दियों से लोगों के आकर्षण का केंद्र रहीं हैं. आगरा जरदोजी का प्रमुख केंद्र है और यहां राखियों में जरदोजी का अद्भुत फ्यूजन देखने को मिलता है. जरदोजी के काम से जुड़ी यहां की मुस्लिम महिलाएं अपने हाथों से जरदोजी की राखियां बना रही हैं, ताकि वे रक्षाबंधन पर हिंदू भाईयों के हाथों पर फब सकें.
इतिहास के दरीचों से झांकें, तो कभी मुगल रजधानी रही आगरे में जरी की राखियां अब से नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों से बनती आ रही हैं.
तकरीबन 17वीं और 18वीं के दौर-दौरां के मकबूल शायर नजीर अकबराबादी ने भी अपनी राखी पर मशहूर गजल में इसका जिक्र करके जरी की राखियों की समकालीन राखियों की गवाही दी हैः
उठाना हाथ प्यारे वाह-वा टुक देख लें हम भी,
तुम्हारी मोतियों की और जरी के तार की राखी.
राजे-रजवाड़ों के जमाने में राजा-रानी, मंत्री, मनसबदार, किलेदार, हाकिम-हुक्काम और सेठ आदि ऐसे परिधान पहनते थे, जिनके कपड़ों में सोने के तार का काम होता था. इसे ही जरदोजी कहते हैं.
चौबीस कैरेट के शुद्ध सोने को खांचे में खींच-खींचकर बेहद महीन तार बनाया जाता था और उससे कढ़ाई, बुनाई और सिलाई की जाती थी. रेशम के धागों संग स्वर्ण तंतुओं को पिरोकर क्रोशिया का काम भी किया जाता था.
जरदोजी के काम के साथ परिधानों में हीरा, मोती, माणिक, पुखराज और पन्ना आदि आदि रत्न भी जड़े जाते थे.
जरदोजी के पहले परिधान बनते थे. बाद में लेडीज बैग, थैलों, मेजपोश, बेडशीट आदि बनने लगे.
साथ ही जरदोजी की राखियां बनने लगीं.
पहले जरदोजी का काम पूरी तरह हाथ की कारीगरी था. अब थोड़ा यांत्रिक होने के बावजूद अधिकांश काम हाथ से ही किया जाता है.
आगरा में शासन की ओर से माइक्रो स्किल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट चलााया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट से संबद्ध मुस्लिम महिलाएं अब जरदोजी की राखियां का निर्माण कर रही हैं, जो थोड़ी महंगी जरूर हैं, लेकिन ये राखियां बहुत ही आकर्षक और यादगार की तौर पर सहेज कर भी रख ली जाती हैं.
मुस्लिम महिलाएं अपने हाथों के हुनर से राखियों में जर-दोजी करके उन्हें जीवंत कर देगी हैं. एक राखी को बनाने में एक महिला को एक-डेढ़ घंटे तक का भी समय लग जाता है.
इन राखियों को बनाने वाली महिलाएं इमराना और रुखसार ने मीडिया को बताया कि उन्हें बहुत अच्छा लगता है राखियां बनाना. इन्हें कोई बहन अपने भाई के कलाईयों पर बांधती है, तो हमें लगता है कि जैसे हमने अपने किसी हिंदू भाई को राखी बांधी है.
उन्होंने बताया कि राखियां से हमारे लिए काम से ज्यादा जज्बे का रिश्ता है. हम भाई-बहनों की खुशियों में शिरकत करके खुद को खुशनसीब समझते हैं.
मोहम्मद बिलाल जरदोजी के हस्तशिल्पी हैं. उनकी कृ़ितयों के लिए उन्हें पद्मश्री मिल चुका है. उन्होंने यह काम अपने पिता से सीखा था.
बिलाल बताते हैं कि आगरे की जरदोजी सारी दुनिया में मशहूर है. यहां की राखियों की पूरे देश में मांग रहती है.