हैदराबाद का एक ऐसा परिवार जो तीन पीढ़ियों से कर रहा है इत्र का व्यापार

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] • 1 Years ago
हैदराबाद का एक ऐसा परिवार जो तीन पीढ़ियों से बेचते हैं इत्र
हैदराबाद का एक ऐसा परिवार जो तीन पीढ़ियों से बेचते हैं इत्र

 

मोहम्मद अकरम / हैदराबाद

इत्र लगाना हर कोई पसंद करता है. शादी ब्याह हो या फिर ऑफिस जाने के दौरान लोग अपने आपको खुशबूदार रखना चाहता हैं. बहुत सारे लोग इसे प्रतिदिन लगाते हैं. आज हम आपको इत्र के ऐसे कारोबारियों से मिलाते हैं, जो अपने बुजुर्गों के कारोबार को बढ़ा रहे हैं. हैदराबाद शहर के ऐतिहासिक मोअज्जम जांही मार्केट में स्वर्गीय मोहम्मद बशीर उल्लाह सिद्दीकी के पोते, परपोते इत्र की पुश्तैनी दुकान चला रहे हैं. साथ ही घर पर इत्र तैयार करके विदेश में भेजते हैं.

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गांधी भवन के नजदीक मौजूद इस मार्केट में इत्र की 6 दुकानें हैं, जो मोहम्मद बशीर उल्लाह सिद्दीकी के पोते या फिर लड़के ही चलाते हैं. उनके पोते मोहम्मद नजीर उल्लाह सिद्दीकी बताते हैं कि इस मार्केट में जितनी दुकानें इत्र की हैं. सभी हमारे खानदान के ही लोग हैं. जैसे-जैसे परिवार बढ़ता गया, तोयहां इत्र की दुकान भी बढ़ती चली गईं. शहर के लोगों को जब इत्र या परफ्यूम की जरुरत होती हैं, वह यहां पहुंच जाते हैं. हम सब के काम को देखते हुए यहां के गवर्नर एनडी तिवारी ने गोल्ड मेडल से नवाजा था.

कैसे हुई इत्र के कारोबार की शुरुआत

इस बारे में मोहम्मद नजीर उल्लाह सिद्दीकी बताते हैं कि हमारे दादा मोहम्मद बशीर उल्लाह सिद्दीकी नवाब के यहां इत्र देते थे. उत्तर प्रदेश के कन्नौज से सामान लाकर इत्र तैयार करते और नवाब परिवार के यहां देते,े जिसे बहुत पसंद किया जाता था. साल 1946 में नवाबों ने हमारे दादा को मोअज्जम मार्केट में एक जगह दी और इत्र बेचने के लिए कहा. दादा ने छोटी दुकान शुरू की, जो धीरे‘धीरे शहर के अंदर मशहूर हो गई. हमारे अब्बू मोहम्मद बरकतुल्लाह सिद्दीकी जब बड़े हुए, तो उन्होंने इस काम में हाथ बटाना शुरू किया.

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मोहम्मद नजीबुल्लाह सिद्दीकी की दुकान के बगल में मौजूद उनके बड़े भाई मोहम्मद हमीदुल्लाह के लड़के मोहम्मद सआदत उल्ला सिद्दीकी ने बताया कि हमारे परदादा ने इस जगह पर छोटी सी दुकान में इत्र बेचने का काम शुरू किया था.

उनके दुनिया से जाने के बाद हमारे दादा, पिता जी और अब हम इस दुकान को चलाते हैं. दादा जी खुद इत्र बनाते थे, जिससे हम लोगों को विरासत में इत्र बनाने का काम भी मिल गया.

विदेश भेजा जाता है इत्र

नजीर उल्लाह सिद्दीकी बताते हैं कि हमारे परिवार में पढ़ाई-लिखाई के बाद इसी काम में बच्चों को लगाया जाता है, जिससे वह कारोबार करने, ग्राहक से बातचीत करने का तरीका धीरे-धीरे सीख लेते हैं और फिर हैदराबाद शहर में किसी भीड़-भाड़ वाली जगह पर इत्र की दुकान चलाने के लिए दिया जाता हैं.

हमारी दुकान मलकपेट, फलकनुमा जैसी जगहों पर हैं. हम लोग अपने इत्र को  साल 1990 के बाद से सऊदी अरब, दुबई, ओमान, कुवैत, यूएस अफ्रीका और दूसरे देशों में भेज रहे हैं.

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मोहम्मद सआदत उल्ला सिद्दीकी कहते हैं कि जब हम लोगों ने इस मैदान में कदम रखा, तो इत्र को दूर दराज तक पहुंचाने का किया है, जो बड़े पैमाने पर जारी है. विदेश में सप्लाई होने के साथ राज्य के कई हिस्सों में हम सबके हाथ के बने हुए इत्र लोग बड़े शौक से खरीदते हैं.

परिवार के सभी लोग इसी क्षेत्र में

मोहम्मद सादुल्लाह ने बताया कि घर पर 42 प्रकार के इत्र तैयार करते हैं, जो हमें विरासत में मिला हैं. इसके लिए उत्तर प्रदेश के शहर कन्नौज से सामान लाते हैं. इत्र को तैयार करने में कई घंटे लग जाते हैं. फूलों के पत्तों को पानी में पकाना. इस काम में घर के सभी पुरुष शामिल होते हैं. इसे देखकर हमारे बच्चे भी सीखते हैं.

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नजीबुल्लाह ने कहा कि इस काम में घर के लोगों के अलावा मजदूर भी रखते हैं, जो इत्र तैयार करने से लेकर बाजार में लाने तक के लिए तैयार करते हैं. इससे कई लोगों को रोजगार भी मिलता हैं.

आगे का प्लान क्या हैं?

इस सवाल के जवाब में नजीबुल्लाह सिद्दीकी ने कहा कि हम लोग अपने इत्र को दुनिया के कोने-कोने में ले जाना चाहते हैं. इसके लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है, जिसके के लिए कोशिश जारी हैं. हमारा मानना है कि जब तक हम इसे लोगों के बीच नहीं ले जाएंगे, उस समय तक लोगों को इत्र की खुशबू से अपनी तरफ नहीं खींच सकते हैं. कुछ देश में समान जाता हैं, लेकिन इसे ब्रांड बनाना है.

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महीने में कमाई

मोहम्मद सआदत उल्ला सिद्दीकी ने बताया कि सभी लोगों की रोजी-रोटी इसी से जुड़ी हुई है, तो महीने में 70-80 हजार रुपये कमा लेते हैं. रमजान के दिनों में इससे ज्यादा आमदनी होती है. हम सबकी दुकान सालों से एक जगह होने पर लोग दूर-दराज से खरीदने पहुंचे हैं.