नई दिल्ली. 40 से अधिक आंदोलनकारी किसान संघों के एकछत्र मंच संयुक्त किसान मोर्चा ने सोमवार को सभी प्रतिनिधिमंडल की बैठक की और घोषणा की कि आंदोलन कार्यक्रम के अनुसार जारी रहेगा, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखा जाएगा.
मीडियाकर्मियों को जानकारी देते हुए किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, ‘हम एमएसपी समिति, उसके अधिकार, उसकी समय सीमा, उसके कर्तव्यों, बिजली विधेयक 2020 और किसानों के खिलाफ मामलों को वापस लेने सहित लंबित मांगों का उल्लेख करते हुए प्रधान मंत्री को एक खुला पत्र लिखेंगे. हम लखमीपुर खीरी कांड को लेकर मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त करने के लिए भी पत्र लिखेंगे.’
किसान नेता ने प्रधान मंत्री मोदी द्वारा घोषित कृषि कानूनों को वापस लेने के कदम का स्वागत किया और कहा, ‘यह एक अच्छा कदम था, हम इसका स्वागत करते हैं. लेकिन बहुत सी चीजें अभी भी बाकी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हमने कृषि कानूनों को निरस्त करने पर चर्चा की. इसके बाद, कुछ निर्णय लिए गए. एसकेएम के पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम जारी रहेंगे - 22 नवंबर को लखनऊ में किसान पंचायत, 26 नवंबर को सभी सीमाओं पर सभा और 29 नवंबर को संसद मार्च आदि.’
राजेवाल ने कहा कि एसकेएम की एक और बैठक 27 नवंबर को होगी, जिसमें भविष्य की रणनीति पर चर्चा की जाएगी.
उन्होंने कहा, ‘आगे के घटनाक्रम पर निर्णय के लिए 27 नवंबर को एसकेएम की एक और बैठक होगी. तब तक की स्थिति के आधार पर निर्णय लिया जाएगा.’
संयुक्त किसान मोर्चा, 40 से अधिक विरोध कर रहे किसान संघों के एक छत्र निकाय ने शनिवार को अपनी कोर कमेटी की बैठक के बाद आज एक बैठक की. आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख संगठनों में से एक भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राकेश टिकैत बैठक में शामिल नहीं हुए, क्योंकि वह इस समय लखनऊ में हैं.
सिंघू सीमा पर चल रही संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की बैठक रविवार को संपन्न हुई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के बाद किसानों के विरोध पर भविष्य की कार्रवाई पर चर्चा करने के लिए बैठक बुलाई गई थी.
चूंकि सरकार तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए सहमत हो गई है, किसान संघों ने अपना ध्यान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर स्थानांतरित कर दिया है, इस पर एक कानून की मांग की है.
किसान विरोध प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के लिए मुआवजे और उनके खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की भी मांग कर रहे हैं.
किसान पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं.