जब अशोक की अर्थी को मिला मुसलमानों का कंधा

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 19-05-2021
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गाजियाबाद. अशोक कश्यप (48) चाय बेचते थे. यूपी के गाजियाबाद में रावली मार्ग पर चांगी नंबर 3 के पास उनकी दुकान है. वह कई दिनों से बीमार चल रहे थे. सोमवार की सुबह उनका निधन हो गया. उसका परिवार दुकान के पास रहता है.

कश्यप का एक बेटा और एक पत्नी है. परिजन दूर हैं, इसलिए अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच सके. उसके आसपास के लोगों ने करुणा के डर से खुद को दूर कर लिया.

शव घर में रखा था, लेकिन पत्नी और बेटा लाचार थे. अशोक के पास चाय पीने के लिए कई युवा मुसलमान आते थे. पता चलने पर 30-40 युवक घर पहुंचे. उन्होंने अशोक की बेटी सहित पूरे अनुष्ठान के साथ अशोक की अर्थी सहित शव यात्रा निकाली. जब उनसे अनुष्ठान करने वाले मुस्लिम युवकों के नाम के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने नाम बताने से इनकार कर दिया.

अंतिम संस्कार के बाद उनमें से एक ने कहा कि यही सबसे बड़ी मानवता है. किसी भी असहाय व्यक्ति की मदद करना सभी धर्मों का सबसे बड़ा कर्तव्य है. थोड़ी सी मदद से लोग अपनी ब्रांडिंग करने लगते हैं. यह मानवता नहीं है. हमने सिर्फ अपने धर्म का पालन किया है, इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नाम क्या है. कल भागेगा कोरोना, लेकिन अगर हम आज मदद से पीछे हटे, तो यह इंसानियत नहीं है.

इलाज के अभाव में मौत

अशोक की पत्नी ने इलाज न मिलने पर उसकी मौत को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि अशोक कई दिनों से इलाज के लिए अस्पतालों का चक्कर लगा रहा था. किसी ने देखने की जहमत नहीं उठाई.