क्या है पीएफआई?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 31-07-2022
क्या है पीएफआई?
क्या है पीएफआई?

 

मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
 
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन बताया जाता है, जो अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है.

बताते हैं कि संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में हुई. संगठन की जडं़े केरल के कालीकट से जुड़ी हैं. इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में है.
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एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द गिर्द घूमती हैं. पूर्व में तमाम मौके ऐसे भी आए जब ये मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आया.
 
संगठन 2006 में उस वक्त सुर्खियों में आया जब दिल्ली के रामलीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया. तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी.
 
बात वर्तमान की हो तो आज देश में 24 राज्य ऐसे हैं जहां पीएफआई पहुंच चुका है. अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है. संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है. मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों, आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए समय समय पर मोर्चा खोलता रहता है.
 
पीएफआई का विवादों से है पुराना नाता

ऐसा बिलकुल नहीं है कि पीएफआइ में सब अच्छा ही अच्छा है. तमाम विवाद हैं जिन्होंने समय समय पर पीएफआइ के दरवाजे पर दस्तक दी है. बात अगर एक संगठन के तौर पर पीएफआइ की हो तो इसे सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) का बी विंग कहा जाता है.
 
माना जाता है कि अप्रैल 1977 में निर्मित संगठन सिमी पर जब 2006 में बैन लगा उसके फौरन बाद ही शोषित मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों के अधिकार के नाम पर पीएफआइ का निर्माण कर लिया गया.
 
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संगठन की कार्यप्रणाली सिमी से मिलती जुलती है. आज पीएफआइ के बैन की मांग तेज है मगर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब संगठन को बैन करने की बात हुई है.
 
संगठन को बैन किए जाने की मांग 2012 में भी हुई थी. दिलचस्प बात यह है कि तब खुद केरल की सरकार ने पीएफआइ का बचाव करते हुए अजीब ओ गरीब दलील दी थी.
 
केरल हाई कोर्ट को बताया था कि ये सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है. ध्यान रहे कि ये सवाल जवाब केरल की सरकार से तब हुए थे जब उसके पास संगठन द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर आजादी मार्च किए जाने की शिकायत आई थीं.
 
हाई कोर्ट ने सरकार के दावों को खारिज कर दिया था मगर बैन को बरकरार रखा. आरोप है कि केरल पुलिस पीएफआइ कार्यकर्ताओं के पास से बम, हथियार, सीडी और तमाम ऐसे दस्तावेज बरामद किए हैं जिनमें पीएफआई अल कायदा और तालिबान का समर्थन करती नजर आ रही थी.
 
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पीएफआई कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लव जिहाद से लेकर दंगा भड़काने, शांति को प्रभावित करने, लूटपाट करने और हत्या में इसके कार्यकर्ताओं का नाम आ चुका है. माना जाता है कि संगठन एक आतंकवादी संगठन है जिसके तार कई अलग अलग संगठनों से जुड़े हैं.
 
पीएफआइ बैन पर राजनीति

इस बात में कोई शक नहीं कि पीएफआई एक ऐसा संगठन है जो कट्टरपंथ को प्रमोट करता है. मगर पीएफआइ के बैन पर भाजपा, कांग्रेस समेत लगभग सभी दलों की अपनी अलग-अलग राजनीति है.
 
बिहार में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद इस पर प्रतिबंध लगाने का विरोध करने वालों में से हैं. पीएफआई खुद को सामाजिक संगठन कहता है, पर इस संगठन ने कभी चुनाव नहीं लड़ा है. संगठन के सदस्यों का रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता.
अन्य संगठनों से संबंध

बताते हैं कि पीएफआइ का एनडीएफ के अलावा कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी , तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराई , गोवा के सिटिजन्स फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, आंध्र प्रदेश के एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस समेत अन्य संगठनों के साथ मिलकर पीएफआई ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना ली है.
 
इस संगठन की कई शाखाएं हैं. जिसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया.