यूपी चुनाव: जानें, कैसे एक बहन ने जीती अपने भाई की सियासी जंग

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
यूपी चुनावयूपी चुनाव: जानें, कैसे एक बहन ने जीती अपने भाई की सियासी जंग: जानें, कैसे एक बहन ने जीती अपने भाई की सियासी जंग
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आवाज द वाॅयस, शामली

भाई-बहन के रिश्ते और प्यार के अनगिनत किस्से मौजूद हैं. खूबसूरत त्योहार ‘रक्षा बंधन‘ इसी खूबसूरती का हिस्सा है. बहनों की कुर्बानी और भाइयों के लिए प्यार को अमूल्य माना जाता है.ऐसा ही एक किस्सा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. जहां जेल में बंद भाई के लिए उसकी बहन ने चुनावी जंग जीती है.

दरअसल, शामली जिले में बीजेपी और सपा के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिला. पश्चिमी यूपी की सबसे अहम सीट मानी जाने वाली कैराना विधानसभा सीट से ऑस्ट्रेलिया से शिक्षा लेने वाले समाजवादी पार्टी उम्मीदवार नाहिद हसन ने बीजेपी के मृगांका सिंह को मात दे दी. मगर इसका श्रेय उनकी बहन को जाता है, जो न केवल अपने भाई के लिए मैदान में डटी रहीं, चुनाव जीतने में भी सफल रहीं.

नाहिद हसन ने कैराना से यह चुनाव 26800 मतों से जीता है.नाहिद हसन की जीत से उनकी बहन इकरा हसन अचानक सुर्खियों में आ गई है.

 दरअसल, चुनाव से ठीक पहले गुंडा एक्ट के एक मामले में यूपी पुलिस ने नाहिद हसन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. बहन इकरा हसन के चुनाव प्रचार की कमान संभालने के बाद अपने भाई के लिए घर-घर जाकर मतदाताओं से वोट मांगे. उनके परिश्रम का फल भाई को 10 मार्च को चखने को मिला.

पिता की मृत्यु के बाद, 2012 के विधानसभा चुनाव में नाहिद हसन ने कम उम्र में सहारनपुर की गंगोह सीट से बसपा के टिकट पर नामांकित किया था, लेकिन चुनाव से ठीक पहले, बसपा ने नाहिद का टिकट काट दिया. टिकट शगुफ्ता खान को दे दिया.

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 उस समय नाहिद हसन ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा , पर हार गए. यहां से कांग्रेस के प्रदीप कुमार जीते. नाहिद हसन 33,288मतों के साथ चौथे स्थान पर रहे थे.

चुनाव प्रचार के दौरान इकरा हसन

जबकि 2014-15में किराना से उप चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने नाहिद हसन ने जीत की हैट्रिक बनाई है. नाहिद के पिता चौधरी मुनव्वर हसन एक अनुभवी नेता थे.वह विधान परिषद, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे. एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी तबस्सुम हसन ने अपनी सीट के लिए लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की.

फिर 2018के लोकसभा उपचुनाव में तबस्सुम हसन ने एक बार फिर जीत हासिल की. लेकिन वो 2019का चुनाव हार गईं.

परिवार का इतिहास

नाहिद के परिवार का एक लंबा राजनीतिक इतिहास रहा है. उनके दादा से लेकर माता-पिता, चाचा-चाची और चचेरे भाई-बहन सभी स्थानीय निकाय चुनाव से लेकर विधायक, सांसद चुने गए हैं. यूपी से लेकर हरियाणा तक परिवार के कई सदस्य राजनीति में सक्रिय हैं.

ऑस्ट्रेलिया से शिक्षा प्राप्त नाहिद हसन के पिता चौधरी मुनव्वर हसन की शादी 1986 में सहारनपुर की बेगम तबस्सुम से हुई थी. नाहिद की छोटी बहनों में से एक, चैधरी इकरा हसन ने 2021 में लंदन से अंतरराष्ट्रीय कानून में डिग्री के साथ स्नातक की है.

 नाहिद हसन को विरासत में राजनीति मिली है. नाहिद हसन के दादा चौधरी अख्तर हसन 1984 में कैराना लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. वे नगर पालिका के अध्यक्ष भी थे. चैधरी अख्तर की विरासत को नाहिद के पिता चैधरी मुनव्वर हसन ने आगे बढ़ाया.

मुनव्वर का राजनीतिक इतिहास

चौधरी मुनव्वर हसन ने 1991और 1993 के विधानसभा चुनाव में कैराना सीट जीती थी. उन्होंने हुकम सिंह को हराया, जो दोनों चुनावों में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. हुकुम सिंह उन दिनों कांग्रेस में थे.

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भाई के लिए बहन का चुनाव प्रचार

इन सबके बीच यूपी में हालात बदले और मुलायम सिंह यादव जनता दल से अलग हो गए. उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया. कैराना विधानसभा से लगातार दो बार विधायक चुने जाने के बाद मुनव्वर हसन सपा में शामिल हो गए. 1995 में किराना ने लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

 हालांकि, वह 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में दो बार हारे. इस बीच, वह 1998-2003 तक राज्यसभा और फिर एमएलसी के सदस्य रहे.

2004 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो मुनव्वर हसन को सीटें बदलनी पड़ीं. अनुराधा चैधरी ने रालोद के टिकट पर कैराना सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. जबकि मुजफ्फरनगर सीट से मुनव्वर हसन सपा के टिकट पर जीते थे.