आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की जांच के लिए त्रिपुरा का दौरा करने वाली फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा रहे दो वकीलों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत नोटिस दिया गया है.
त्रिपुरा पुलिस ने अधिवक्ता अंसार इंदौरी (सचिव, मानवाधिकार संगठन, राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन परिसंघ (एनसीएचआरओ) और अधिवक्ता मुकेश, नागरिक अधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल, दिल्ली) को नोटिस भेजा है. उनसे कहा है कि “ सोशल मीडिया में आपके द्वारा प्रसारित किए गए मनगढ़ंत और झूठे बयानों, टिप्पणियों को तुरंत हटा दें.” नोटिस में उन्हें 10 नवंबर तक पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन के समक्ष पेश होने के लिए भी कहा गया है.
यूएपीए के अलावा, पुलिस ने धारा 153-ए और बी (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 469 (सूचना को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी) के तहत भी आरोप लगाए हैं. आईपीसी की धारा 503 (आपराधिक धमकी), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 120बी (आपराधिक साजिश के लिए सजा).
इसपर अधिवक्ता मुकेश ने कहा कि वह उस टीम का हिस्सा थे जो जमीनी हकीकत जानने के लिए त्रिपुरा गई थी. ‘ मैंने जो देखा, समझा वही लिखा.‘‘
तथ्य-खोज रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी, एडवोकेट अमित श्रीवास्तव (कोऑर्डिनेशन कमेटी, लॉयर्स फॉर डेमोक्रेसी), एडवोकेट अंसार इंदौरी और एडवोकेट मुकेश की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने मंगलवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट जारी की है. इसमें खुलासा किया कि अगर त्रिपुरा में भाजपा सरकार चाहती तो हिंसा रोक सकती थी,लेकिन उसने राज्य में भीड़ को खुली छूट देने का फैसला किया.
रिपोर्ट में तर्क दिया गया कि कुछ संगठनों ने रैलियां कीं और अपने साथ जेसीबी मशीन (आमतौर पर भारी निर्माण कार्य में लगी हुई) भी थीं.