धर्मशाला (भारत)
तिब्बती महिला संगठन (Tibetan Women’s Association – TWA) ने 1995 में बीजिंग में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के चौथे विश्व महिला सम्मेलन के दौरान हुए ऐतिहासिक ‘साइलेंट प्रोटेस्ट’ की 30वीं वर्षगांठ मनाई। यह विरोध प्रदर्शन चीन के शासन के खिलाफ चीनी भूमि पर तिब्बती निर्वासितों द्वारा किया गया पहला शांतिपूर्ण प्रतिरोध माना जाता है। समारोह का आयोजन धर्मशाला स्थित तिब्बती सेटलमेंट हॉल में हुआ।
फायलुल की रिपोर्ट के अनुसार, इस अवसर पर 1995 के उस ऐतिहासिक विरोध में शामिल नौ साहसी तिब्बती महिलाओं,ग्यालथॉन्ग त्सेरिंग डोल्मा, खेरोल सेलडुप, तेनज़िन डोलकर जिन्पा, चिमे धोंदेन, यूडोन धोंदेन, फुंत्सोक डोल्मा, काल्सांग वांगमो, दोरजे डोल्मा खेरोल और सोमो नामग्याल—को सम्मानित किया गया।
इन महिलाओं ने बारिश में खड़े होकर अपने मुंह पर स्कार्फ बांधकर यह संदेश दिया था कि चीन किस तरह तिब्बतियों की आवाज़ को व्यवस्थित रूप से दबा रहा है।1995 के सम्मेलन में भाग लेने की अनुमति सिर्फ इन्हीं नौ तिब्बती महिलाओं को मिली थी।
कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में उस समय TWA की महासचिव रहीं नगवांग ल्हामो शामिल हुईं, जिन्होंने इन प्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्होंने याद करते हुए कहा कि तिब्बती महिलाओं की आवाज़ को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाने के लिए वर्षों की मेहनत और संघर्ष करना पड़ा।
उन्होंने बताया कि संगठन केवल महिलाओं की समानता के लिए ही नहीं, बल्कि चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों पर भी ध्यान आकर्षित कर रहा था।उन्होंने यह भी कहा कि एक ऐसे देश में संयुक्त राष्ट्र महिला सम्मेलन आयोजित किया जाना, जो दमन के लिए जाना जाता है, अपने आप में एक विडंबना थी।
कार्यक्रम में ईवा हार्ज़र का एक पत्र भी पढ़ा गया, जिन्होंने उस समय तिब्बती प्रतिनिधियों का मार्गदर्शन किया था।उन्होंने लिखा कि चीनी निगरानी से बचाने के लिए विशेष रणनीति तैयार की गई थी,“हमने निर्णय लिया कि हर तिब्बती प्रतिनिधि के साथ 24 घंटे एक पश्चिमी डेलीगेट मौजूद रहेगा।”
इससे सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई और दुनिया भर में तिब्बत की वास्तविक स्थिति को समझने में मदद मिली।मानवाधिकार वकील रीड ब्रॉडी ने वीडियो संदेश के माध्यम से बताया कि सम्मेलन के दौरान चीनी पुलिस लगातार तिब्बती महिलाओं का पीछा कर रही थी और उन्हें परेशान कर रही थी।
इसके बावजूद, उनका शांत लेकिन साहसी विरोध अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियाँ बन गया और तिब्बत की स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में दर्ज हो गया।