सारे मौलवी मिलकर फतवा दें तो आतंकवाद रुक सकता है : मौलाना कल्बे जव्वाद

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 3 Years ago
पाकिस्तान में शिया समुदाय की हत्याओं पर चिंतित हैं कल्बे जव्वाद
पाकिस्तान में शिया समुदाय की हत्याओं पर चिंतित हैं कल्बे जव्वाद

 

शिया मुस्लिम धर्मगुरु कल्बे जव्वाद विभिन्न मसलों पर अपनी बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं. वह कहते हैं कि हजरत अली शेरखुदा की तालीम पर अगर दुनिया चले तो कभी जंग नहीं होगी. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में शियाओं के नरसंहार को लेकर मौलाना कल्बे जव्वाद बेहद चिंतित हैं और कहते हैं कि शियाओं के कत्ल पर या आतंकवाद के खिलाफ कोई मौलाना फतवा क्यों नहीं देता.

आतंकवाद के मसले पर वह पाकिस्तान और अरब मुल्कों को आड़े हाथो लेते हैं. पेश है आवाज द वॉयस के संपादक मलिक असगर हाशमी के साथ उनकी बातचीत के चुनिंदा अंशः

सवालः 26 तारीख को हजरत अली शेरखुदा का जन्मदिन है. मौजूदा दौर में हजरत अली शेरखुदा की तालीम कितनी प्रासंगिक है?

मौलाना कल्बे जव्वाद: उनकी जिंदगी हजरत अली (रजि.) की ऐसी है कि उसके हर पहलू से हम कुछ न कुछ सीख सकते हैं. कयामत तक, जब तक दुनिया कायम है उनका सीरत और कैरेक्टर,  किरदार हमारे भी बशर-ए-आदाब बना हुआ है. चाहे वह आम जिंदगी हो, चाहे वह घरेलू जिंदगी हो, चाहे वह सियासी जिंदगी हो, सबमें वह बेहतरीन नमूने अमल थे. बेहतरीन आइडियल.

आज के लिए उन्होंने अपने गर्वनर को जो खत लिखा है उससे पता चलता है कि काम कैसे होना चाहिए, गजट कैसा होना चाहिए, पब्लिक के साथ बर्ताव कैसा होना चाहिए. उन्होंने एक खत में सरकार के जितने भी नियम थे, सब लिख डाले. यहां तक कि 2002में यूनाइटेड नेशंस में पास हुआ था कि हजरत अली ने जो खत लिखा है अपने गर्वनर को, अरब की जितनी हुकूमतें हैं, सभी को उनपर चलना चाहिए.

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यू‍नाइटेड नेशंस की ओर से डायरेक्‍शन दिया गया कि मौला अली ने जो लेटर लिखा था, अरबवाले उस लेटर को पढ़ें और अपनी हूकूमत को उस लैटर के ऊपर चलाएं, जो हजरत अली ने 1350साल पहले लिखा था.

यह खत इतना अहम है कि उसमें सबकुछ लिखा है कि गरीबों के साथ कैसा सुलूक हो, अमीरों के साथ कैसे सुलूक हो, फौज में कैसे लोग हो, जज कैसे बनना चाहिए. ताजिर जो तिजारत करनेवाले है, उनके साथ कैसा सलूक होना चाहिए. कोई ऐसा पहलू नहीं है, जिसके बारे में जिक्र नहीं किया गया है.

जंग के सि‍लसिले में उन्‍होंने लिखा है कि जंग कभी कोई अपनी तरफ से शुरू नहीं करे. इसी बात पर हुकूमत अमल करें तो दुनिया में कही जंग ही नहीं होगी. मौला अली की इसी बात पर अमल करें तो दुनिया में अमन कायम हो जाएगा, इसी तरह से एक हुक्मरान कैसा होना चाहिए, आप उसकी भी मिसाल देंखें कि जितना एक मजदूर को मिलता था, उतना ही वह सरकारी खजाने से अफसरी की लेते थे.

महज साढ़े चार साल ही उनकी हुकूमत रही थी. उन्होंने तब जितने गर्वनर थे, सबको जमा किया, पूछा कि तुम्‍हारे इलाके में कोई ऐसा तो नहीं है, जिसके पास घर नहीं हो, सबने कहा कि सबके पास घर है. उन्‍होंने पूछा कि कोई ऐसा तो नहीं है कि कोई भूखा सोता हो, तो सबने कहा ऐसा कोई भी नहीं है, जो भूखा सोता है.

फिर उन्होंने पूछा, ऐसा तो नहीं है जिनके पास लिबास नहीं हो, तो सबने कहा कि कोई ऐसा नहीं है, जिसके पास नहीं हो. इसका मतलब है कि साढ़े चार साल की हुकूमत में सबको घर, खाना और लिबास मुहैया करा दिया. उसके बाद उन्होंने कहा, तुम गवाही दो, मेरे पास वही लिबास है, जो साढ़े चार साल पहले था.

मेरा लिबास वही है. मैंने हुकूमत के खजाने से कोई पैसे लेकर लिबास नहीं बनवाए, घोड़े भी वही हैं  और घर भी वहीं है जो हुकूमत से पहले था. तो मेरा कहना है कि इस पर अमल करते हुए अगर चले तो दुनिया में इंसाफ ही इंसाफ होगा, गरीबों का भला होगा. किसी के साथ नाइंसाफी नहीं होगी.गरीबों का उत्‍थान उसी वक्‍त हो सकता है, जबकि मौला अली के सीरत पर उनके कथन पर अमल करें. उसी वक्‍त दुनिया सुधर सकती है.

सवालः पाकिस्तान-अफगानिस्तान में शिया समुदाय पर ज्यादतियां हो रही हैं. क्या ऐसे मसलों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया जाना चाहिए ?

मौलाना कल्बे जव्वादः अब तक पाकिस्‍तान-अफगानिस्‍तान में लाखों शिया मार दिए गए. यह आतंकवाद असल में शियाओं के खिलाफ है. इसमें अरब मुल्‍क, पाकिस्‍तान और दूसरे मुल्‍क भी शामिल है. शियाओं का कत्‍लेआम किया गया है, बच्‍चों के स्‍कूल में धमाके कराए गए हैं और यह सब इस्‍लाम के नाम पर हुआ है.

ईरान में कई लाख शियाओं को मार दिया गया, अफगानिस्‍तान में हजारा कबीले लाखों की तादाद में थे, मार दिया गया उन्‍हें. अब वह हजार में भी नहीं बचे हैं. इसी तरह, पाकिस्‍तान में तकरीबन कई लाख शिया मार दिए गए. सबको टारगेट करके मारा गया. लेकिन संयुक्त राष्ट्र की तरफ से कोई कदम नहीं उठााया गया.

एक अमेरिकन मर जाए तो पूरी दुनिया में हंगामा हो जाता है. लाखों-लाख शिया मारे गए और अब भी मारे जा रहे हैं, लेकिन कहीं से मुखालफत की कोई आवाज नहीं होती है. एक फ्रेंच मर जाता है तो फतवे भी दिए जाते हैं, लोग कहते हैं बुरा हो रहा है.

लेकिन शियाओं के मरने पर किसी मुसलमान मौलवी का फतवा नहीं आया कि शिया को मारना हराम है, नाजायज है. इस काम में मौलवी भी शामिल हैं और हुकूमतें भी. पाकिस्‍तान में यही हो रहा है.

सवाल: इस दिशा में आपकी तरफ से कैसी पहल हो रही है?

मौलाना कल्बे जव्वादः जब भी मुझे मौका मिला, मैंने उसे उठाया है. दिल्‍ली में एक बहुत बड़ा जलसा हुआ था, जिसमें दिल्‍ली जामा मस्जिद के इमाम थे, पाकिस्‍तान से भी कई बड़े उलेमा आए थे. तो उसमें मैंने कहा था झूठ कहा जाता है कि हम आतंकवाद के खिलाफ है. लेकिन दिल से आतंकवाद के साथ-साथ हैं.

लेकिन किसी मौलवी का फतवा नहीं आया, जब धमाके हुए और लाखों शिया मारे गए. यह हराम है, नाजायज है, इस्‍लाम के खिलाफ है. इसमें कोई भी फतवा नहीं आया. वह कहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ हैं, लेकिन कोई यह नहीं कहता कि शिया को मारना भी इस्‍लाम के खिलाफ है.

बहुत बड़ी कमी मौलवियों की भी है. वह ऐसे फतवा नहीं देते कि वह इस आतंकवाद के खिलाफ हैं. सारे मौलवी अगर मिलकर फतवे दे तो यह आतंकवाद रुक सकता है. इस में हमारे ठेकेदार बन रहे अरब मुल्‍क और पाकिस्‍तान भी शामिल है. यहां के मौलवी कभी भी आतंकवाद के‍ खिलाफ फतवा नहीं दिया.

सवालः मुस्लिम देशों का इज्रायल के करीब आना कितना उचित है?

मौलाना कल्बे जव्वादः कई लोग खुलकर आ गए सामने. इज्रायल का जो नक्शा है, वह भूल जाते हैं. इज्रायल के मैप में मक्‍का, मदीना और कर्बला भी शामिल है. उनकी योजना है इन सब चीजों पर कब्‍जा करने की. इज्रायल से दोस्‍ती का मतलब है, इस्‍लाम से दुश्‍मनी. क्‍योंकि जो नक्शा उनकी संसद में लगा है उसमें दो नीली लकीरे हैं, यह दोनों नीली लकीरें दरियाओं का इशारा है. दरिया-ए-नील (नील नदी) और दरिया-ए-तजरा. उनका कहना है कि नील और तजरा दरिया के बीच ‍जितनी जमीन है, सब इज्रायल की जमीन है. इसमें सारे अरब मुल्‍क आ जाते हैं.

सवालः जो बाइडेन के आने से क्या ईरान के प्रति अमेरिका का नजरिया बदलेगा?

मौलाना कल्बे जव्वादः बाइडेन के आने से उम्‍मीद थी कि कुछ नजरिया बदलेगा, लेकिन जो उम्‍मीद थी वह अब खत्‍म हो रही है क्‍योंकि अमेरिका की विदेश नीति पर सीआइए का कब्‍जा है. इनकी पॉलिसी यही है कि ईरान आगे नहीं बढ़ पाए. उसकी तरक्‍की नहीं हो पाए. पाबंदी बाकी है क्‍योंकि ईरान के अंदर इतना पोटेंशियल है कि ईरान को तरक्‍की करने की इजाजत मिल जाए तो वह दुनिया का सबसे खुशहाल देश बन जाएगा.

लेकिन वह लोग नहीं चाहते हैं कि कोई मुल्‍क उनकी गुलामी से दूर हो. पर ईरान ही एक ऐसा मुल्‍क है जो उनकी गुलामी के खिलाफ आवाज उठा रहा है. हम तो समझते हैं उनकी जो पॉलिसी ट्रंप के जमाने में थी, अब भी वही रहेगी और हमारी भी वही पॉलिसी रहेगी.  

जारी...