कर्नाटक में अफगान छात्रों पर तालिबान का असर

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 2 Years ago
मैसूर विवि में अफगानी छात्र
मैसूर विवि में अफगानी छात्र

 

प्रतिभा रमन/ बेंगलूरू

करीब दो दशक बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है. उनके उत्पीड़न के इतिहास के बावजूद, तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने की कसम खाई और अधिक उदार होने का वादा किया है. हालांकि, काबुल हवाई अड्डे पर हताशा के दृश्य देखे गए, क्योंकि सैकड़ों-हजारों ने शहर से भागने की कोशिश की.

भारतीय दूतावास के अधिकारियों को आधी रात को निकालने की व्यवस्था के बाद भारत ने अफगानिस्तान से सिखों और हिंदुओं को शरण देने की पेशकश की है. जबकि इस सारे ड्रामे के बीच भारत में अफगानी छात्र बहुत चिंतित हैं.

कर्नाटक के धारवाड़ कृषि विश्वविद्यालय में लगभग 15छात्र अनुसंधान और विकास में मास्टर डिग्री कर रहे हैं. कोविड संक्रमण के बढ़ने के साथ, 5छात्र कक्षाएं न होने से अफगानिस्तान के लिए रवाना हो गए थे. शेष 10छात्र वर्तमान में धारवाड़ कृषि विवि छात्रावास में रह रहे हैं.

धारवाड़ में पढ़ने वाले अफगानिस्तान के छात्र परमवीर कहते हैं,“हम शुरू में डरे हुए थे. मैंने अपने परिवार से बात की. वे सुरक्षित हैं. तालिबान ने बदला नहीं लेने का वादा किया है. हम प्रार्थना कर रहे हैं.”

तालिबान के सत्ता में आने के बाद लगभग 92अफगान छात्रों ने मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति से मुलाकात की. प्रोफेसर हेमंत कुमार, वीसी, ने कहा, "अफगानिस्तान में जो हुआ है वह पहले ही हो चुका है. हम इसे नियंत्रित नहीं कर सकते हैं. लेकिन हम अपने छात्रों की सुरक्षा के लिए अपनी पूरी कोशिश करेंगे. जब तक ये छात्र विश्वविद्यालय में हैं, हम उनकी कठिनाइयों का जवाब देंगे. मैं चाहता हूं कि जब तक उनका वीजा समाप्त न हो जाए, वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें. हम उनके वीजा की अवधि बढ़ाने पर भी चर्चा करेंगे."

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद भारत सरकार की मदद लेने के लिए बेंगलुरु में कुछ छात्र एक साथ आए.

बेंगलुरु में पढ़ रही अफगानिस्तान की एक छात्रा शिला अज़ीमी कहती है, “तालिबान ने कहा है कि वे सुनिश्चित करेंगे कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाए. मानवाधिकार घोषणापत्र में तालिबान द्वारा महिलाओं के अधिकारों को महत्व देने पर भी जोर दिया गया है. अन्यथा, हम तालिबान को एक स्वतंत्र सरकार के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते. हम भारत में तब तक रहना चाहते हैं जब तक वहां स्थिति सामान्य नहीं हो जाती. हमें उम्मीद है कि जरूरत पड़ने पर हमारा वीजा बढ़ा दिया जाएगा.”

24साल के शरीफ अहमदजई पिछले 3-4साल से बेंगलुरु में हैं. वह कहते हैं, “शहर और उसके लोगों ने हमेशा मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया है जैसे मैं उनमें से एक हूँ. मैंने यहां कभी बाहरी व्यक्ति की तरह महसूस नहीं किया. मेरे मन में भारत के लिए बहुत सम्मान और प्यार है और मुझे उम्मीद है कि भारत सरकार इस कठिन परिस्थिति में अफगानिस्तान के साथ खड़ी रहेगी.”

अहमदजई का परिवार काबुल में फंसा हुआ है. “वे सुरक्षित हैं, लेकिन वे घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं. यह लॉकडाउन की स्थिति की तरह है. मैं पढ़ने के लिए बेंगलुरु आया था ताकि मैं अपने वतन वापस जा सकूं और अपने देश के लोगों की सेवा कर सकूं. दुर्भाग्य से, अभी वहां की स्थिति इतनी खराब है, हम यह सोचकर डरे हुए हैं कि क्या वहां की स्थिति 25साल पहले जैसी हो जाएगी. हम अपने देश और अपने लोगों की स्वतंत्र रूप से सेवा नहीं कर पाएंगे और यह बेहद निराशाजनक है."

सत्ता पलट के बाद पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने इस तथ्य पर जोर देने की कोशिश की कि समूह 1990के दशक से बदल गया है.

हालाँकि, अहमदज़ई की राय कुछ और है. वह कहते हैं, "तालिबान हमेशा वादे करता है और अंततः उन वादों को तोड़ देता है. इस बार फिर से वे बदलने का दावा कर रहे हैं, लेकिन अगर वे इस वादे को तोड़ते हैं, और अगर वे अफगानों के अधिकार छीन लेते हैं, तो अफगानिस्तान के लोग उनके खिलाफ खड़े होंगे और देश के लिए लड़ेंगे.”